केंद्र सरकार को दिया गया प्रस्ताव, मॉब लिंचिंग में मौत पर दोषी को हो उम्रकैद की सजा
दिल्ली: मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि अगर जरूरत पड़े तो ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून बनाए जाएं। वहीं, इसको लेकर केंद्र सरकार और मॉब लिंचिग केस में याचिकाकर्ता के बीच मीटिंग बैठक हुई, जिसमें सरकार ने नया कानून बनाने के बजाए हत्या और हत्या की कोशिश को लेकर आईपीसी की धाराओं में बदलाव का प्रस्ताव रखा। सरकार ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में मॉब लिंचिंग के मामलों कानून बनाने को लेकर मंत्रियों की एक टीम भी गठित की है।
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मॉब लिंचिंग के मामलों में सजा को लेकर प्रस्ताव
सूत्रों ने बताया कि बैठक में केंद्रीय गृह सचिव, कानून सचिव, न्याय सचिव, सामाजिक न्याय सचिव और एनसीकेबी के प्रतिनिधि मौजूद थे। सरकार भीड़ द्वारा हिंसा की बढ़ती घटनाओं को रोकने की कोशिश में जुटी है और लिंचिंग रोकने के लिए कानून लाने की दिशा में काम कर रही है। केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा के नेतृत्व में गठित पैनल की पहली मीटिंग वकील अनस तनवीर और सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला के साथ हुई, जोकि मॉब लिंचिंग केस में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में से एक हैं। हालांकि एक अन्य याचिकाकर्ता तुषार गांधी को इस बैठक में नहीं बुलाया गया था।
आजीवन कारावास और 5 लाख रु के जुर्माने के प्रावधान की सिफारिश
अनस तनवीर ने सरकार को दिए प्रस्ताव में मॉब लिंचिंग के दौरान हुई मौत के मामले में आजीवन कारावास और 5 लाख रु के जुर्माने के प्रावधान की सिफारिश की है। वहीं, उन्होंने इस अपराध को गैरजमानती बनाने का प्रस्ताव भी दिया है। प्रस्तावित ड्राफ्ट के अनुसार, मॉब लिंचिंग के मामलों में पुलिस की लापरवाही सामने आने पर 6 महीने की सजा और 50 हजार रु तक के जुर्माने की बात कही गई है। जबकि मॉब लिंचिंग के मामलों में पीड़ित की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
पीएम मोदी के समझ रखी जाएगी अंतिम रिपोर्ट
गृहसचिव इन तमाम सुझावों को गृह मंत्रालय के सामने 4 हफ्ते के भीतर रखेंगे। इसके बाद राजनाथ सिंह के नेतृत्व में गठित कमेटी सभी पहलूओं को जांचने-परखने के बाद पीएम मोदी के समझ पूरी रिपोर्ट रखेगी। बता दें कि हाल ही में राजस्थान के अलवर में गो तस्करी के शक में 28 साल के रकबर खान की भीड़ द्वारा पिटाई की गई थी। जबकि 17 जुलाई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों मॉब लिंचिंग के मामलों में कदम उठाने के निर्देश दिए थे और साथ ही सोशल मीडिया में भड़काऊ और हिंसा को बढ़ावा देने वाले संदेशों पर रोक लगाने का निर्देश भी दिया था।
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