ट्रंप ने तालिबान के साथ कैंसिल की शांति वार्ता, जानें कैसे भारत को फायदा और पाकिस्तान को दोगुना नुकसान
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान के साथ शांति वार्ता को कैंसिल करने का फैसला करके हर किसी को हैरान कर दिया। ट्रंप के फैसले के बाद अफगानिस्तान में शांति की कोशिशें जहां से शुरू हुई थीं, वापस वहीं पहुंच गई हैं। ट्रंप के इस ऐलान से इस क्षेत्र में मौजूद सिर्फ एक देश की मुश्किलें बढ़ गई हैं और अफगानिस्तान समेत भारत ने राहत की सांस ली है। जिस देश के लिए ट्रंप के फैसले से परेशानियां बढ़ने वाली हैं, वह देश कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान है। भारत ने इस वार्ता में शुरुआत से ही कोई उत्साह नहीं दिखाया था।
जम्मू कश्मीर का फैसला इससे जुड़ा
इस पूरे मसले से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो ट्रंप के फैसले के बाद क्षेत्र में स्थिरता आने की संभावना बढ़ गई है। किसी भी तरह की डील, युद्ध खत्म करके शांति कायम की डील नहीं होती बल्कि वह सैनिकों को वापस बुलाने का सौदा होती। अफगानिस्तान की सरकार इस डील को लेकर काफी संवेदनशील थी। भारत की तरफ से पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का फैसला लिया गया था। सरकार ने राज्य को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने का फैसला उन इनपुट्स के आधार पर लिया था जिसमें कहा गया था कि अगर पाकिस्तान-तालिबान और अमेरिका के बीच किसी भी तरह की डील हुई तो फिर उससे घाटी में अस्थिरता का खतरा बढ़ जाएगा। सरकार ने एक माह पहले जो फैसला लिया था उसके पीछे 22 जुलाई को वॉशिंगटन में हुई ट्रंप और पाक पीएम इमरान खान की मुलाकात ही सिर्फ अकेली वजह नहीं थी। ट्रंप की ओर से इस मुलाकात में कश्मीर मसले पर मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया गया था।
बद से बदतर हो जाते हालात
अमेरिका की ओर से तालिबान के साथ डील के बाद अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान से चली जातीं। इसके बाद यह देश फिर से सिविल वॉर के दौर में वापस लौट जाता। साथ ही पाकिस्तान फिर अफगानिस्तान के रास्ते कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ को बढ़ावा देता। सरकार को इस बात का भी डर था कि अगर अमेरिका यहां से चला जाता तो फिर अफगानिस्तान के हालात सोवियत दौर के बाद की स्थितियों से हो जाते और कश्मीर तक इसका असर देखने को मिलता। पिछले 18 वर्षों से भारत की किसी भी सरकार ने तालिबान के साथ कोई वार्ता नहीं शुरू की है और हर बार इस तरह की वार्ता में शामिल होने से इनकार भी किया है।
तालिबान को सत्ता में लाने का हितैषी पाक
ट्रंप का यह ऐलान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की एक बैठक इस्लामाबाद में होने वाली थी। इस बैठक में उन भावी योजनाओं के बारे में बात होने वाली जिनका खाका अमेरिका-तालिबान के शांति समझौते के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। पाकिस्तान ने पिछले वर्ष तालिबान के को-फाउंडर मुल्ला बरादर को जेल से आजाद करके यह इशारा किया था कि वह तालिबान को शांति वार्ता के लिए राजी कराने और समझौते की टेबल तक लाने की कोशिशें कर रहा है। पाक हमेशा से यह कहता आया था कि तालिबान को काबुल में सत्ता में रखकर ही अफगानिस्तान में शांति लाई जा सकती है। वहीं, तालिबान लगातार चुनी हुई सरकार से बात करने से इनकार करता आ रहा था।
फेल हो गए पाकिस्तान के सारे प्लान
ट्रंप के ऐलान के बाद से पाकिस्तान पर दबाव दोगुना हो गया है। अब शांति वार्ता कैंसिल होने के बाद उसे आतंकियों को नियंत्रण में लाने की कोशिशें करनी होंगी। इसके अलावा इस वार्ता के सफल होने के बाद अमेरिका में पाक को उम्मीद थी कि अमेरिका उसके साथ बेहतर बर्ताव करेगा और उसे खास जगह मिल सकेगी, अब ऐसा कुछ नहीं होगा। इसके अलावा कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ पाक जो एक अभियान चलाने की तैयारी में लगा था, अब उसके वे सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं।