सपा को बचाने के लिए अखिलेश यादव को हटाकर मुलायम संभालना चाहते हैं कमान ?
नई दिल्ली- अपने बेटे अखिलेश यादव के हाथों पार्टी की सत्ता गंवाने के करीब तीन साल बाद चर्चा है कि मुलायम सिंह यादव फिर से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि सपा से जिस तरह से नेता एक के बाद एक करके पार्टी छोड़कर जा रहे हैं उससे बुजुर्ग मुलायम खुश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि अगर पार्टी को बचाना है तो अखिलेश यादव से पार्टी की कमान अपने हाथों में लेनी ही पड़ेगी। वैसे तीन साल पहले पार्टी में सत्ता परिवर्तन के हंगामेदार इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि अखिलेश इसबार भी पिता की बात आसानी से मानने के लिए तैयार होंगे।
कहां से उठी ऐसी खबर?
न्यूज 18 में के छपी एक लेख के मुताबिक समाजवादी पार्टी में ऐसी अटकलें इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। इसके मुताबिक मुलायम ने अपने चचेरे भाई और सपा महासचिव रामगोपाल यादव को बुलाकर यह कहा है कि वे अखिलेश यादव से कहें कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर नए अध्यक्ष का चुनाव करें। गौरतलब है कि रामगोपाल यादव अखिलेश यादव से ज्यादा करीबी रहे हैं और अखिलेश के हर निर्णय का खाका वही तैयार करते आए हैं।
अखिलेश नहीं पहुंचे तो मुलायम ने फहराया झंडा
अभी तक अखिलेश यादव की ओर से पिता की इच्छाओं को लेकर को जवाब नहीं दिया गया है। लेकिन, उनकी ओर से जो संकेत मिले हैं उससे यह जरूर लग रहा है कि पार्टी में अंदर ही अंदर कुछ चल जरूर रहा है। मसलन, पिछले 15 अगस्त को लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी दफ्तर में अखिलेश को झंडा फहराना था। मुलायम सिंह यादव भी वहां मौजूद रहने वाले थे। लेकिन, अखिलेश ऐसा महत्वपूर्ण कार्यक्रम छोड़कर अपने गृह जिले इटावा चले गए और परिवार के साथ रक्षा बंधन मनाना ज्यादा मुनासिब समझा। जब पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश यादव मुख्य कार्यक्रम से नदारद हो गए तो उनकी गैर-मौजूदगी में मुलायम सिंह यादव ने ही झंडोतोलन किया।
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खुद कमान क्यों संभालना चाहते हैं मुलायम
सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में बीएसपी से असफल गठबंधन और राज्यसभा सांसदों के पार्टी छोड़कर जाने की घटनाओं ने बुजुर्ग मुलायम को चिंतित कर दिया है। वे पार्टी के जनाधार खिसकने से बहुत आहत बताए जा रहा हैं। एक वरिष्ठ समाजवादी पार्टी नेता ने कहा है, "नेताजी को यकीन हो गया है कि पार्टी के मामलों को मैनेज करने की राजनीतिक चतुराई अखिलेश यादव के वश से बाहर है और अगर पार्टी को गुमनामी में जाने से बचाना है तो उन्हें उसकी कमान हाथों में लेनी ही पड़ेगी। " उस नेता ने बताया कि खासकर नीरज शेखर जिस तरह से राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं, उससे मुलायम बहुत ही चिंतित हैं, क्योंकि इससे पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी के भविष्य पर संकट छाने का खतरा मंडरा रहा है।
मुलायम को हटाकर अखिलेश बने थे अध्यक्ष
2017 की बात है। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने अपने पिता को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर जनवरी 2017 में खुद ही कमान संभाल ली थी। तब अखिलेश ने चाचा रामगोपाल के समर्थन से पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुला ली थी, जिसमें उन्हें पार्टी अध्यक्ष चुन लिया गया था। अखिलेश ने खुद को पार्टी से निकालने के पिता की कार्रवाई का भी विरोध किया था। तब मुलायम ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सारे फैसलों को असंवैधानिक करार दिया था, क्योंकि उसकी बैठक बिना उनकी इजाजत के बुलाई गई थी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान ही मुलायम परिवार का ये सियासी झगड़ा चुनाव आयोग में भी पहुंचा, जिसने मुलायम खेमे की सभी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया था।
अखिलेश इतनी आसानी से मानेंगे मुलायम की बात?
हो सकता है कि मुलायम को कांग्रेस में हाल में हुए सत्ता परिवर्तन से कुछ हौसला मिला हो। लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक अखिलेश इतनी आसानी से पिता की बात मानने वाले नहीं हैं। जबसे उन्होंने सपा पर कब्जा किया है उन्होंने अपनी मर्जी से पार्टी चलाई है और मुलायम और अपने चाचा शिवपाल यादव को किसी भी फैसले में फटकने तक नहीं दिया है। 2017 में चाहे कांग्रेस के साथ गठबंधन किया हो या 2019 में मायावती के साथ। अखिलेश ने किसी की नहीं सुनी, चाहे परिणाम जो भी रहा हो। सूत्र ये भी कह रहे हैं कि जिन तीन राज्यसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ी है, वे मुलायम खेमे के बताए जाते हैं, इसलिए अखिलेश उनकी परवाह भी नहीं करना चाहते।