क्या केरल में भी चुनाव लड़ना चाहते हैं असदुद्दीन ओवैसी, मुस्लिम लीग के अभी से छूट रहे हैं पसीने!
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल के साथ ही इस साल केरल विधानसभा के लिए भी चुनाव (kerala assembly election 2021) होने हैं। वहां के कई युवा मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सर्वेसर्वा और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) से गुजारिश कर रहे हैं कि वह केरल में भी अपनी पार्टी की इकाई गठित करें। केरल में 26 फीसदी मुस्लिम (Muslim) आबादी है। अभी केरल में चुनाव लड़ने को लेकर ओवैसी की ओर से कुछ भी नहीं कहा गया है, लेकिन वहां के मुस्लिम युवा संगठनों की मांग ने अभी से मुस्लिम लीग के पसीने छुड़ाने शुरू कर दिए हैं। यह बात सही है कि पश्चिम बंगाल के बाद उनकी तमिलनाडु पर जरूर नजर है, जहां डीएमके(DMK) के साथ आने वाले चुनावों के लिए उनकी बात जरूर चल रही है।
केरल में भी चुनाव लड़ना चाहते हैं असदुद्दीन ओवैसी?
सामने से मुस्लिम लीग (IMUL) के नेता तो यही जता रहे हैं कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi)जिस तरह की राजनीति करते हैं, वह केरल (kerala)में नहीं चलने वाली, लेकिन वह पहले से ही सावधान होने लगी है। मुस्लिम लीग की चिंता की वजह ये है कि हाल में हुए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से उसे लग रहा है कि उसके पीछे मुसलमानों की गोलबंदी के खिलाफ क्रिश्चियन समुदाय (आबादी करीब 18 फीसदी) पूरी तरह से सत्ताधारी एलडीएफ (Left Democratic Front) के पीछे गोलबंद हो गया है। ऐसे में अगर ओवैसी का मन ललच गया तो उसकी दशकों की मुस्लिम लीग(Muslim League) की राजनीति की ऐसी की तैसी हो सकती है। क्योंकि, हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि मुस्लिम युवाओं में ओवैसी का क्रेज काफी बढ़ चुका है।
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मुस्लिम लीग से दूर जा रहे हैं युवा मुसलमान ?
केरल में राजनीति के जानकार मानते हैं कि हाल के समय में वहां के मुस्लिम समुदाय में इस बात का संदेश गया है कि मुस्लिम लीग के सांसद संसद में राम मंदिर (Ram temple),नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship (Amendment) Act-CAA) और तीन तलाक (triple talaq) जैसे मुद्दों पर उनकी भावनाओं को सही तरीके से पेश नहीं कर पाए हैं। इसको लेकर मुसलमानों में कट्टर विचारधारा रखने वाले वर्ग का मुस्लिम लीग से मोहभंग होना शुरू हो गया है। ऐसे ही लोगों ने संसद में राम मंदिर और सीएए पर बहस के बाद उत्तर केरल में ओवैसी के बड़े-बड़े पोस्टर भी लगाए थे।
ओवैसी की राजनीति केरल में नहीं चलेगी-मुस्लिम लीग
वैसे लीग के नेता सामने से ये कहकर मुस्लिम युवाओं में ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता के मुद्दे को टालते रहे हैं कि यह सिर्फ भावनात्मक प्रतिक्रिया है और ओवैसी को लेकर कुछ युवाओं में ही उत्साह जैसी बात है। मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेता और मलाप्पुरम (Malappuram) के सांसद पीके कुन्हालिकुट्टी (PK Kunhalikutty) के मुताबिक, 'कई दशकों से केरल में मुस्लिम लीग का मजबूत जनाधार है और कोई भी व्यक्ति उसके आधार को कमजोर नहीं कर सकता। इससे पहले भी कई कट्टर विचारधारा वाले संगठनों ने हमारे तख्त को हाइजैक करने की कोशिश की है, लेकिन नाकाम हो गए। ओवैसी की राजनीति केरल के लिए उपयुक्त नहीं है।.......(यहां) लोग शिक्षित हैं और उनके पास जानकारी है, जो कि नफरत और कट्टरवादी विचारों के खिलाफ काम करती है।'
पांच दशकों से कांग्रेस के साथ है मुस्लिम लीग
केरल में 1970 की दशक से जब से गठबंधन की राजनीति शुरू हुई है, मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ जुड़ी रही है। इसके नेता ई अहमद मनमोहन सिंह सरकार में दो-दो बार मंत्री रह चुके हैं। लेकिन, बदली हुई सियासत और प्रदेश में संघ परिवार के बढ़ते प्रभाव के चलते अब इसके युवा नेता भी पार्टी का पूरे देश में विस्तार करने का मंसूबा पालने लगे हैं। इस बीच केरल के युवाओं में ओवैसी के प्रति बढ़ते लगाव के बारे में मुस्लिम इतिहासकार और लेखक अशरफ कडक्कल ने कहा है, 'ओवैसी दक्षिण के दूसरे राज्यों जैसे कि केरल और तमिलनाडु में कोई प्रभाव नहीं डाल सकते, क्योंकि यहां पर इस समुदाय का लक्ष्य तय है और वह सामाजिक रूप से विकसित हैं। पिछले दो-तीन दशकों में इस समुदाय ने शिक्षा को बहुत ज्यादा महत्त्व दिया है, इसलिए उत्तर भारत की तरह भावनात्मक मुद्दों पर इन्हें आसानी से बहकाया नहीं जा सकता।'
जहां मुसलमानों की पार्टी पहले से है, वहां नहीं जाते ओवैसी?
केरल चुनाव से पहले ओवैसी के नाम उछलने से मुस्लिम लीग में भले ही मंथन शुरू हो गई हो, लेकिन खुद एआईएमआईएम (AIMIM) भी इस दक्षिणी राज्य में अपनी सियासी संभावनाओं को लेकर ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आती। पार्टी के एक नेता ने पहचान जाहिर नहीं होने देने की शर्त पर बताया है कि, 'शुरुआत से ही ओवैसी साहब यह साफ कर रहे हैं कि पार्टी कम से कम तीन राज्यों में नहीं जाएगी- केरल, असम और कश्मीर। हम इसी पर कायम हैं। केरल में हमारी पार्टी का कोई आधार नहीं है और इसलिए वहां हमारे चुनाव लड़ने की कोई संभावना नहीं है।'
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