कोरोना के इलाज के लिए 100 साल पीछे गए डॉक्टर्स, ठीक हुए मरीजों के ब्लड में दिखी उम्मीद की किरण
नई दिल्ली। वैश्विक महामारी का तोड़ निकालने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक इसका टीका (वैक्सीन) बनाने में जुटे हुए हैं। हालांकि इस महामारी से मरने वालों के मुकाबले ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा है, इससे यह तो साफ हो जाता है कि कोरोना वायरस होने पर मरने के चांस बहुत कम है, इसलिए लोगों को इसे लेकर ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा कोरोना वायरस के मरीजों को ठीक करने के लिए डॉक्टर 100 साल पुरानी पद्धति को भी अपना रहे हैं। इस पद्धति में स्वस्थ्य व्यक्ति के प्लाज्मा से बीमार का इलाज किया जाता है।
अमेरिका में 7,406 लोगों की मौत
दरअसल, सुपर पॉवर अमेरिका ने कोरोना वायरस के मरीजों के मामले में विश्व के सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है। वहां 2 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं और कई हजार लोगों की जान जा चुकी है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ट्रैकर के अनुसार, पिछले 24 घंटों में अमेरिका में कोरोना वायरस संक्रमण से 1,480 लोगों की मौत हुई जो किसी भी देश में इस संक्रमण से एक दिन में हुई सर्वाधिक मौतें हैं। अमेरिका में अभी तक 7,406 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, संक्रमण के मामले 2,77,953 हो गए हैं जो दुनिया में सर्वाधिक हैं।
एक सदी पुराने तरीके से होगा मरीजों का इलाज
कोरोना वायरस के इस संकट से खुद को निकालने के लिए अब अमेरिका के डॉक्टर्स अब एक सदी पुराने तरीके से मरीजों का इलाज करने की कोशिश कर रहे हैं। न्यूयॉर्क में कोरोना के संक्रमण से बाहर निकली महिला ने अपना ब्लड डोनेट किया। इसका इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज करने में किया जाएगा। महिला के अलावा अब ऐसे कई मरीज सामने आ रहे हैं जिन्होंने कोरोना को मात देने के बाद अपना खून दान किया है।
ब्लड डोनेट कर रहे ठीक हो चुके मरीज
कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों को ठीक करने में यह कितना कारगर है इसका कोई पक्का सबूत तो नहीं है लेकिन अमेरिका के ह्युस्टन और न्यूयॉर्क में कई व्यक्तियों ने अपने ब्लड डोनेट किया है जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं। इस तहर की शोध का जिक्र अमेरिका के फूड ऐंड ड्रंग एजेंसी एफडीए ने किया है। उनका कहना है कि इससे मेडिकल टीम यह जान पाएगी कि यह सही तरीका है या नहीं और यह प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग करने में मदद करेगा।
100 साल पुराना ये इलाज का ये तरीका
ब्लड डोनेट करने वालीं टिफनी उन्हीं में से हैं जो कोरोना वायरस को हरा चुकी हैं। उनका मानना है कि शायद उनके प्लाज्मा में ऐसा कुछ है जो कोरोना वायरस के मरीजों को ठीक कर सकता है। बता दें कि यह पद्धति 100 साल पुरानी है, वर्ष 1918 में फ्लू, चेचक और निमोनिया सहित कई अन्य तरह के संक्रमण को ठीक करने में यह तरीका कारगर साबित हुआ था। चूंकि अभी कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं है इसलिए डॉक्टर्स इस पद्धति को भी आजमा कर देख लेना चाहते हैं।
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