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जानिए, कितनी सुरक्षित है ईवीएम और कैसे हो सकती है छेड़छाड़

मायावती और हरीश रावत ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। आइए जानते हैं आखिर ईवीएम मशीन कैसे काम करती है और यह कितनी सुरक्षित होती है।

By Anujkumar Maurya
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नई दिल्ली। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। आइए जानते हैं आखिर ईवीएम मशीन कैसे काम करती है और यह कितनी सुरक्षित होती है।

चुनाव आयोग क्यों भरोसा करता है ईवीएम पर?

चुनाव आयोग क्यों भरोसा करता है ईवीएम पर?

भारत में ईवीएम सिर्फ दो पब्लिक सेक्टर की कंपनियों द्वारा बनाई जाती है। चुनाव आयोग के पूर्व सीईसी एस वाई कुरैशी ने बताया कि कौन सी मशीन किस विधानसभा को भेजनी है, इसका निर्धारण कंप्यूटर द्वारा रेंडम तरीके से किया जाता है। मशीनें भेजने के बाद चुनाव से महीनों पहले उनकी पहली जांच होती है, इस दौरान पार्टियों के प्रतिनिधि भी मौजूद होते हैं।

जब उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट आ जाती है, उसके बाद चुनाव से 13 दिन पहले ईवीएम की दोबारा से उम्मीदवारों या पार्टी एजेंट की उपस्थिति में जांच की जाती है और एक सर्टिफिकेट पर साइन होता है कि मशीन सही काम कर रही है। बूथ पर भेजने से पहले ईवीएम को एक यूनीक सिक्योरिटी नंबर के साथ पेपर सील कर दिया जाता है। एक बार जब मशीन बूथ पर पहुंच जाती है तो हर उम्मीदवार/प्रतिनिधि को सील को साइन करना होता है। इसके बाद मशीन की जांच के लिए एक नकली टेस्ट होता है।

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आखिर किन बातों को लेकर ईवीएम पर हो रहा है शक?

आखिर किन बातों को लेकर ईवीएम पर हो रहा है शक?

चुनाव से पहले बिना किसी चुनाव अधिकारी की भूमिका के ही चिप/कंपोनेंट बदले जा सकते हैं, जो दिखने में एकदम वास्तविक लगते हैं। नकली टेस्ट को मात देने के लिए एक प्रोग्राम डिजाइन किया जा सकता है, जो सिर्फ एक बार ही रन करता है। इस तरह से जब टेस्ट होता है तब तो मशीन सही रिजल्ट दिखाती है, लेकिन उसके बाद जब असल में चुनाव होता है तो परिणाम बदल सकते हैं। अगर ईवीएम में एक ब्लूटूथ चिप लगा दी जाए तो मशीनों को मोबाइल से भी ऑपरेट किया जा सकता है।

चुनाव के दौरान कोई भी मतदाता यह नहीं समझ सकता है कि उसका वोट उसी पार्टी को गया है, जिसके सामने का बटन उसने दबाया है या फिर किसी और को गया है। वोटों की गिनती में होने वाली गलतियों से निपटने के लिए कोई भी विश्वसनीय तरीका नहीं है। चुनाव के बाद स्थानीय अधिकारियों से मिलकर पोर्टेबल हार्डवेयर डिवाइस में रिकॉर्ड वोट को भी बदला जा सकता है।

किन मुद्दों को लेकर हैं दिक्कतें?

किन मुद्दों को लेकर हैं दिक्कतें?

ईवीएम तक पहुंच वाले अंदर के किसी ऑथराइज्ड व्यक्ति द्वारा मशीन के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है। साथ ही, जो दो कंपनियां बीईएल और ईसीआईएल ईवीएम बनाती हैं, वह चिप के लिए विदेशी फर्म से भी मदद लेती हैं, जिनसे भी हेरा-फेरी की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, इन मशीनों में इंटरनेट कनेक्शन न होने की वजह से इन्हें हैक करना नामुमकिन है।

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ये देश बैन कर चुके हैं ईवीएम

ये देश बैन कर चुके हैं ईवीएम

जर्मनी और नीदरलैंड ने ईवीएम को पारदर्शिता न होने की वजह से बैन कर दिया है। इटली ने भी माना है कि ईवीएम से वोटिंग रिजल्ट को बदला जा सकता है। वहीं दूसरी ओर आयरलैंड ने 3 सालों तक ईवीएम पर 5.1 करोड़ पाउंड खर्च करने के बाद उसके इस्तेमाल को नकार दिया। वहीं अमेरिका में कैलिफोर्निया और कई अन्य राज्यों ने इसका ट्रायल लिए बिना ही बैन कर दिया।

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English summary
do you know how safe is the EVM?
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