क्या आप जानते हैं कैसे काम करती है ईवीएम मशीन, जानिए
यूपी और उत्तराखंड में भाजपा की प्रचंड जीत हुई है, जिसके बाद मायावती और हरीश रावत ने आरोप लगाए हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से उनकी हार हुई है।
नई दिल्ली। हाल ही में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर हैं। यूपी और उत्तराखंड में भाजपा की प्रचंड जीत हुई है, जिसके बाद मायावती और हरीश रावत ने आरोप लगाए हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से उनकी हार हुई है। आइए जानते हैं कैसे काम करती है ईवीएम।
कैसे काम करती है ईवीएम?
ईवीएम में एक कंट्रोल यूनिट होती है और एक बैलेटिंग यूनिट होती है। यह दोनों आपस में 5 मीटर लंबी तार से जुड़े रहते हैं। कंट्रोल यूनिट चुनाव आयोग की तरफ से नियुक्त किए गए चुनाव अधिकारी के पास होती है, वहीं बैलेटिंग यूनिट एक वोटिंग बूथ में होती है, जहां जाकर कोई भी मतदाता अपना वोट डालता है। मतदाता इस बैलेटिंग यूनिट पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह के सामने का बटन दबाकर अपना वोट देता है। कंट्रोल यूनिट ईवीएम का दिमाग होता है। बैलेटिंग यूनिट तभी ऑन होती है, जब चुनाव अधिकारी कंट्रोल यूनिट के बैलेट बटन को दबाता है। ईवीएम 6 बोल्ट की एक अल्कालाइन बैटरी से चलती है और उन हिस्सों में भी काम कर सकती है, जहां पर इलेक्ट्रिसिटी नहीं होती है। ये भी पढ़ें- 14 दिन की न्यायिक रिमांड पर भेजे गए गैंगरेप के आरोपी गायत्री प्रजापति
चुनाव आयोग ने ईवीएम से चुनाव के बारे में कब सोचा?
ईवीएम के आने से पहले पेपर बैलेट से चुनाव होते थे, लेकिन वह प्रक्रिया काफी लंबी और परेशानी वाली होती थी। पेपर बैलेट से चुनाव में पेपरों की छपाई, उनके रख-रखाव और ट्रांसपोर्टेशन में भारी लागत आती थी। साथ ही, हर चुनाव केंद्र पर बैलेट बॉक्स की जरूरत होती थी, जिसके चलते लाखों बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता था। इसके अलावा, पेपर बैलेट को सुरक्षित तरीके से रखने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता था। वहीं दूसरी ओर बैलेट पेपरों की गिनती में पूरा दिन या उससे भी अधिक का समय लग जाता था।
इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए चुनाव आयोगग ने 1977 में इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से ईवीएम बनाने के लिए कहा। 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को उस ईवीएम को दिखाया, जिस पर सभी ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। इसी के साथ चुनाव आयोग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की स्थापना की, जिसे ईवीएम बनाने का काम सौंपा गया।
ईवीएम पहली बार चुनाव में कब इस्तेमाल की गई?
चुनाव आयोग ने सबसे पहले 1982 में हुए केरल विधानसभा चुनाव में इसका ट्रायल लेने का फैसला किया। उस समय तक सिर्फ बैलेट पेपर से चुनाव कराने की अनुमति थी, इसलिए सरकार से कानून में बदलाव करने के लिए कहा गया, लेकिन कोई बदलाव नहीं हो सका। हालांकि, संशोधन का इंतजार करते हुए चुनाव आयोग ने धारा 324 के तहत मिली ताकतों के आधार पर कुल 84 में से 50 चुनाव केंद्रों पर ईवीएम का ट्रायल किया। चुनाव के बाद सिवान पिल्लई ने चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम का इस्तेमाल करने के खिलाफ केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हालांकि यहां पर चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार एसी जोस को सीपीआई ने सिवान पिल्लई ने हरा दिया। इसके बाद फिर सिवान ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट ने फैसला चुनाव आयोग के हक में सुनाया, लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट में केस हुआ और आखिरकार 50 चुनाव केंद्रों पर दोबारा चुनाव कराए गए। ये भी पढ़ें- बीरेन सिंह आज लेंगे सीएम पद की शपथ, मणिपुर में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री
ये देश बैन कर चुके हैं ईवीएम
जर्मनी और नीदरलैंड ने ईवीएम को पारदर्शिता न होने की वजह से बैन कर दिया है। इटली ने भी माना है कि ईवीएम से वोटिंग रिजल्ट को बदला जा सकता है। वहीं दूसरी ओर आयरलैंड ने 3 सालों तक ईवीएम पर 5.1 करोड़ पाउंड खर्च करने के बाद उसके इस्तेमाल को नकार दिया। वहीं अमेरिका में कैलिफोर्निया और कई अन्य राज्यों ने इसका ट्रायल लिए बिना ही बैन कर दिया।