पटना के महिला कॉलेजों में जींस क्यों नहीं पहनती लड़कियां?
इतना ही नहीं, यहां लिपस्टिक और आईलाइनर भी नहीं लगाने की सलाह दी जाती है. आखिर क्यों?
कॉलेज की छात्राओं को क्या पहनना चाहिए? उनको मेकअप करना चाहिए या नहीं? उन्हें लिपस्टिक लगानी चाहिए या नहीं? क्या महिलाओं के जींस और लेगिंग्स पहनने से छेड़खानी को बढ़ावा मिलता है?
ये चर्चाएं इन दिनों पटना के महिला कॉलेजों में चल रही हैं. लेकिन ये चर्चाएं छात्राओं में नहीं, कॉलेज के प्रशासनिक अधिकारियों के बीच हो रही हैं.
इन चर्चाओं का परिणाम यह निकला है कि पटना के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में शुमार मगध महिला कॉलेज में जींस और लेगिंग्स पहनने पर रोक लगा दी गई है. इतना ही नहीं, छात्राओं को सलाह दी गई है कि गाढ़ी लिपस्टिक और आईलाइनर लगाकर कॉलेज न आएं.
छात्राओं के लिए एक ड्रेस कोड भी तय कर दिया गया है- सलवार, कुरता, दुपट्टा और कॉलेज का ब्लेजर. इसके अलावा वो कुछ पहनती हैं तो उन्हें कॉलेज से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
'को-एड कॉलेजों में ऐसी पाबंदियां नहीं'
यह कहानी सिर्फ मगध महिला कॉलेज की नहीं है. पटना वूमेंस कॉलेज में भी इसी तरह के नियम छात्राओं पर लागू होते हैं.
ये फ़ैसले सख्ती से लागू किए जाते हैं. छात्राएं प्रशासनिक कार्रवाई के डर से इसका विरोध नहीं करतीं. बीबीसी ने इस विषय पर कई छात्राओं से बात करने की कोशिश की, लेकिन कुछ बोलने को वो तैयार नहीं हुईं.
पटना वूमेंस कॉलेज से इस साल पास हुईं शाम्भवी शोभना और अलका ने बीबीसी के साथ कॉलेज के अपने अनुभव साझा किए.
शाम्भवी कहती हैं, "ऐसी पाबंदियां पटना के को-एड कॉलेजों में देखने को नहीं मिलती है. जबकि पटना वूमेंस कॉलेज सहित अन्य महिला कॉलेजों में इसे थोपा जाता है. लड़कियों को इन्हें बर्दाश्त भी करना पड़ता है."
अलका कहती हैं, "अगर हम एक महिला कॉलेज में पढ़ रहे हैं तो वहां लड़के तो होंगे नहीं. माहौल सुरक्षित होता है फिर भी पहनावे पर रोक लगाई जाती है."
'लड़की हैं, इसलिए इतनी पाबंदियां हैं'
कॉलेज का तर्क
जींस और लेगिंग्स पर रोक लगाने के पीछे कॉलेज प्रशासन के अपने तर्क हैं. मगध महिला कॉलेज की प्राचार्या डॉ. शशि शर्मा कहती हैं कि यह कोई नया फैसला नहीं है.
वो कहती हैं, "यह ड्रेस कोड पहले से लागू है, मैंने बस इसे दोबारा लागू किया है. ड्रेस कोड अमीर और गरीब छात्राओं के बीच भेदभाव ख़त्म करने के उद्देश्य से लागू किया गया है."
वो दावा करती हैं कि इसे छात्राओं की मांग पर लागू किया गया है. वहीं पटना वूमेंस कॉलेज की मीडिया कोऑर्डिनेटर मिनती चकलानविस भी इसी तरह के तर्क देती हैं.
इन दोनों अधिकारी से जब पूछा गया कि ड्रेस कोड में जींस या लेगिंग्स को शामिल क्यों नहीं किया जाता, वो भी एक पहनावा है तो उन्होंने इस पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.
छात्राएं ड्रेस कोड का पालन करें इसकी जांच के लिए कॉलेजों में स्टूडेंट कैबिनेट भी सक्रिय रहता है.
मगध महिला कॉलेज के स्टूडेंट कैबिनेट की वर्तमान सांस्कृतिक सचिव नेहा कुमारी कहती हैं कि अगर लड़कियां जींस या लेगिंग्स पहनती हैं तो छेड़खानी की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि ये कपड़े शरीर से चिपक जाते हैं और भड़काऊ लगते हैं.
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'पितृसत्ता सोच को बढ़ा रहे कॉलेज'
छेड़खानी की शिकार होने की आंशका पर अलका कहती हैं कि हर तरह की पाबंदियां लड़कियों पर ही थोपी जाती हैं. लड़कों को कुछ नहीं बोला जाता है.
अलका एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं, "एकबार मैं सुबह छह बजे कहीं जा रही थी. मैं कुरता-पजयामा पहने हुए थी, फिर भी एक लड़के ने मुझे बहुत परेशान किया. हमेशा लड़कियों को ही शरीर ढकने को कहा जाता है. 21वीं सदी में भी लोग ऐसा सोचते हैं, तो ये गलत है."
वहीं शाम्भवी शोभना का मानना है कि इस तरह का ड्रेस कोड लागू करके महिला कॉलेज पितृसत्ता सोच वाले समाज के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहे हैं. जबकि उस सोच को अब तोड़ा जाना चाहिए.
वो कहती हैं कि कॉलेजों को ऐसे फ़ैसले लेने चाहिए जो समाज की रूढ़िवादी सोच को ख़त्म कर सके. उन्हें बच्चों को सिखाना चाहिए कि इस तरह की सोच बदलें.
शाम्भवी पूछती हैं, "क्या आपने कभी सुना है कि पटना के ब्यॉज़ कॉलेज में लड़कों को अपना नज़रिया बदलने को कहा गया हो? क्या यह शर्मनाक स्थिति नहीं है?"
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'सरकार हस्ताक्षेप करे'
ऑल इंडिया पीपल वेलफेयर एसोसिएशन (ऐपवा) की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी कहती हैं कि बिहार सरकार एक तरफ लड़कियों की उम्मीदों को साइकिल के ज़रिए पंख दे रही है, दूसरी तरफ महिला कॉलेज ऐसे फ़ैसले लेकर उनके पंख कतरने का काम कर रहे हैं.
वो कहती हैं, "आज महिलाओं की आज़ादी की बात हो रही है और शिक्षण संस्थान उनके लिपस्टिक लगाने तक पर रोक लगा रहे हैं."
मीना कहती हैं कि ये सामंती सोच है जिसके तहत महिलाएं क्या पहनें और क्या करें, इसका फैसला कोई और लेता है. वो उम्मीद जताती हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री इस तरह के फ़ैसलों पर रोक लगाएंगे और लड़कियों को एक बेहतर माहौल देंगे.
शाम्भवी और अलका मानती हैं कि समाज में हर तरह के पहनावे को बढ़ावा देना चाहिए ताकि लोग सभी तरह के परिधानों को सहजता से स्वीकार कर सकें.
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