DK शिवकुमार: कांग्रेस के संकट मोचक, क्या इस बार बचा पाएंगे सरकार?
नई दिल्ली- कांग्रेस के संकट मोचक डीके शिवकुमार कर्नाटक की सरकार बचाने के लिए मुंबई में बुधवार को बारिश के बावजूद अकले ही संघर्ष करते दिखे। उन्हें रेनिसन्स होटल में घुसने की इजाजत नहीं मिली, तो वो छाता लेकर बाहर ही डट गए। अभी तक कांग्रेस कर्नाटक से लेकर महाराष्ट्र और गुजरात तक में जब-जब संकट में घिरी है, उन्होंने ही पार्टी की डूबती नैया पार लगाई है। लेकिन, इस बार की चुनौती उनके लिए भी बहुत बड़ी है। वे 10 विधायकों को रिझाने के लिए मुंबई पहुंचे, तो उधर बेंगलुरु में दो और कांग्रेसी विधायकों ने विधायकी छोड़ने का ऐलान कर दिया। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इस बार प्रदेश के मंत्री डीके शिवकुमार कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार को बचा पाने में कामयाब हो पाएंगे?
मुंबई में अकेले मोर्चा संभालने की कोशिश
इस बार भी जब से एचडी कुमारस्वामी सरकार से नाराज होकर कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने इस्तीफा देना शुरू किया है, डीके शिवकुमार उन्हें रोकने के लिए दिन-रात एक कर चुके हैं। पहले उन्होंने बागी विधायकों को बेंगलुरु में ही रोकने की कोशिश की, लेकिन वे चूक गए और बागियों को मुंबई पहुंचा दिया गया। बुधवार को वो बागियों को समझाने-बुझाने के लिए खुद मुंबई जा धमके और सीधे अपने लिए भी रूम बुक कराकर रेनिसन्स होटल पहुंच गए। वहां उन्हें पता चला कि उनकी बुकिंग कैंसिल कर दी गई है। लेकिन, हर हाल में बागियों से एक मुलाकात करने के लिए जिद पर अड़ गए। वो इतना भर चाहते थे कि सिर्फ एक बार उन्हें कांग्रेस के 10 बागी विधायकों से मिला दिया जाय। कई घंटे तक अकेले लड़ाई लड़ने के बाद उनके पास मुंबई कांग्रेस के नेता मिलिंद देवड़ा भी पहुंचे। बाद में लोगों की बढ़ती भीड़ के चलते पुलिस ने वहां धारा-144 लगा दिया और डीके शिवकुमार और मिलिंद देवड़ा दोनों को हिरासत में ले लिया। बाद में उन्हें पुलिस ने बेंगलुरू रवाना कर दिया और उन्हें बिना मिशन पूरा किए लौटना पड़ गया।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट के खिलाड़ी हैं डीके
डीके शिवकुमार राजनीतिक गोटियां फिट करने में कितने माहिर हैं, यह मई 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद भी देख लिया गया था। सबसे बड़ी पार्टी के होने के दम पर बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने अल्पमत वाली सरकार बना ली थी। सदन में बहुमत हासिल करने के लिए वे इधर-उधर हाथ-पैर मार रहे थे। तभी यह खबर जंगल की आग की तरह फैली कि कांग्रेस के दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह दो दिनों से गायब हैं। कांग्रेस की ओर से बीजेपी पर उन्हें अगवा करने तक का आरोप लगाया जा रहा था। विश्वासमत के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया। शिवकुमार बाहर ही रहकर उन दोनों विधायकों के आने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही दोनों विधायक पहुंचे, शिवकुमार ने उन्हें समझाने की कोशिश शुरू कर दी। थोड़ी देर तक तो उन्होंने आनाकानी की, लेकिन फिर वे उन्हीं के साथ लंच करते देखे गए। डीके शिवकुमार के चलते कांग्रेस के एक भी विधायक नहीं टूटे और येदियुरप्पा को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ गया, जिससे कांग्रेस-जेडीएस सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ।
कई मौकों पर कांग्रेस को बचाया
सोनिया गांधी के पॉलिटिकल सेक्रेटरी अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा में दाखिल होना चाहते थे। लेकिन, गुजरात के कांग्रेसी विधायक एक-एक कर भाजपा की ओर रुख करने लगे। कांग्रेस में हड़कंप मच गया। कांग्रेस किसी तरह से अपने बाकी बचे 44 विधायकों को बेंगलुरु पहुंचाने में सफल हो गई। उन सबको डीके शिवकुमार के ही आलीशान 'ईगलटन' रिजॉर्ट में ठहराया गया। शिवकुमार ने विधायकों की ऐसी बाड़ेबंदी कर दी कि कोई भी अंत-अंत तक छिटक नहीं पाया। अहमद पटेल चुनाव जीत गए। हालांकि, गुजरात के विधायकों को उनके रिजॉर्ट में ठहराने के बाद उनके यहां इनकम टैक्स का छापा भी पड़ा। तब उनके रिजॉर्ट से तो कुछ नहीं मिला, लेकिन उनके दिल्ली वाले घर से 7.5 करोड़ रुपए कैश जरूर बरामद किए गए थे। वैसे उनका करामती रिजॉर्ट उससे पहले भी कांग्रेस के लिए लकी साबित हुआ था। 2002 की बात है। महाराष्ट्र में कांग्रेस की विलासराव देशमुख सरकार पर खतरा मंडरा रहा था। पार्टी ने वहां से अपने विधायकों को कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक पहुंचाने का फैसला किया। उस दौरान भी कांग्रेसी विधायकों को शिवकुमार के रिजॉर्ट में ही ठहराया गया था और विलासराव की सरकार बच गई। 2018 में विधानसभा चुनावों के बाद भी कांग्रेसी विधायकों को पहले सुरक्षा के दृष्टिकोण से उन्हीं के ईगलटन रिजॉर्ट में रखा गया था। बाद में जब उन्हें बेंगलुरू से हैदराबाद शिफ्ट किया जा रहा था, तब विधायकों की बस की सबसे अगली सीट पर खुद डीके शिवकुमार ही उन्हें एकजुट रखने के लिए मोर्चा संभाले हुए थे।
वोक्कालिगा समुदाय के बड़े नेता हैं
डीके शिवकुमार कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। 2013 में जब कर्नाटक में कांग्रेस सरकार आई थी, तब उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। लेकिन, तब सिद्धारमैया की सरकार में सिर्फ ऊर्जा मंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा। वे प्रदेश के सबसे अमीर नेताओं में शुमार हैं। वैसे उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि उनके राजनीतिक दुश्मन दूसरी पार्टियों में कम हैं और उन्हें कांग्रेस के अंदर से ही ज्यादा खतरा है।
गांधी परिवार के चहेते हैं
2002 में जब उन्होंने महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख सरकार बचाने में सहायता की थी, तभी से गांधी परिवार की नजरों में छा गए थे। पार्टी ने 2009 में उन्हें कर्नाटक में कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया था। तब से लेकर अब तक वे कर्नाटक में पार्टी के मेन ट्रबलशूटर बने हुए हैं। इस बार भी अपनी ड्यूटी को निभाने के लिए वे जी-जान से जुटे हुए हैं, लेकिन इस बार उनकी चुनौती बहुत ही बड़ी है, जिसमें अगर उन्होंने बाजी मार ली तो उनका राजनीतिक कद और भी ज्यादा बढ़ना तय है।
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