विवादों के क़िले फ़तह करने वाले तारेक़
ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो आप तारेक़ फ़तह के बारे में शायद नहीं जानते होंगे.
पिछले कुछ हफ़्तों से तारेक फ़तह अपने दिल्ली के होटल में एक कैदी जैसी ज़िंदगी बिता रहे हैं. वो बिना किसी सुरक्षाकर्मी के बाहर नहीं निकल सकते और न ही किसी सार्वजनिक समारोह में भाग ले सकते हैं.
कुछ दिन पहले ही जब वो उर्दू के जलसे जश्न-ए-रेख़्ता में एक दर्शक की तरह पहुंचे तो वहां कुछ नवयुवकों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने वहां कुछ ऐसी बात कही जिसके बाद कुछ लोगों ने उनके साथ धक्कामुक्की की. पुलिस को तारेक को रेख्ता के जश्न से बाहर ले जाना पड़ा.
आख़िर तारेक फ़तह ऐसा क्या कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान का एक बड़ा वर्ग उन्हें बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है?
बकौल उनके वो मुसलमानों से जुड़े उन मुद्दों जैसे एक से ज़्यादा शादियाँ, बाल विवाह और गैरमुस्लिमों को काफ़िर कहने का जिस तरह से विरोध करते हैं, कट्टरपंथी मुसलमानों को वो हज़म नहीं होता.
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तारेक टीवी चैनल ज़ी पर एक कार्यक्रम करते हैं, 'फ़तह का फ़तवा.' इसमें वो मुसलमानों से जुड़े उन विषयों पर बात करते हैं जिन पर मुसलमानों के बीच सदियों से कभी खुल कर बात नहीं हुई है.
मुसलमानों के मुद्दे
दूसरी ओर, भारतीयों का एक वर्ग उन्हें सिर आँखों पर बैठाने के लिए तैयार है क्योंकि वो पाकिस्तान के बहुत बड़े आलोचक हैं जहाँ उनका जन्म हुआ है.
जब वो पहली बार 2013 में भारत आए थे तो उन्होंने 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' को दिए गए इंटरव्यू में कहा था, "पाकिस्तान को तो अब भूल जाइए. इसको एक न एक दिन टूटना ही है. वो दिन भी दूर नहीं जब बलूचिस्तान उससे अलग हो जाएगा. पाकिस्तानी सेना एक औद्योगिक माफ़िया है जिसका अपने देश के अनाज, ट्रकों, मिसाइलों से ले कर बैंकों तक पर नियंत्रण हैं."
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तारेक अपने आप को मुसलमान तो कहते है लेकिन ये भी कहते हैं कि उनके पूर्वज हिंदू थे. वो मानते हैं कि उनके इस्लाम की जड़ें यहूदीवाद में हैं और उनकी पंजाबी संस्कृति, सिखों से जुड़ी हुई है.
'मिडनाइट चिल्ड्रेन'
उनका पसंदीदा वाक्य है, 'मुसलमान अपनी आत्मा का इस्लामीकरण करे, अपने देश का नहीं. वो अपने अहं पर हिजाब रखें, अपने सिर पर नहीं.'
अपना खुद का परिचय देते हुए वो अपने ब्ल़ॉग में लिखते हैं, 'मैं एक भारतीय हूँ जो पाकिस्तान में पैदा हुआ है. मैं सलमान रुश्दी के बहुत सारे 'मिडनाइट चिल्ड्रेन' में से एक हूँ जिसे एक महान सभ्यता के पालने से उठा कर स्थाई शरणार्थी बना दिया गया. मैं इस बात का खुद गवाह हूँ कि किस तरह उनकी उम्मीदों के सपनों को नाकामयाबी के दु:स्वप्न में बदल दिया गया.'
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20 नवंबर, 1949 को पाकिस्तान में जन्मे तारेक फ़तेह पढ़ने में शुरू से ही तेज़ थे. उन्हें कराची विश्वविद्यालय में बायोकेमेस्ट्री पढ़ने के लिए वज़ीफ़ा दिया गया था. उसी दौरान उनकी मुलाकात एक शिया युवती नरगिस तपाल से हुई जिनसे उन्होंने चार साल बाद शादी कर ली.
सऊदी अरब
अपनी दोनों बेटियों का ज़िक्र करते वक़्त वे उन्हें 'सु-शि' कहा करते हैं जो कि सुन्नी शिया का छोटा रूप है. 1970 में पढ़ाई करते हुए ही उनकी कराची के एक अख़बार 'सन' में नौकरी लग गई. बाद में वो पाकिस्तान टेलीविजन में प्रोड्यूसर हो गए.
इस बीच उन्हें वहाँ की सैनिक सरकार ने विरोध प्रकट करने के लिए दो बार जेल में भेजा. 1978 में उन्होंने पाकिस्तान छोड़ कर सऊदी अरब का रुख़ किया, जहाँ उन्होंने दस सालों तक एक एडवरटाइज़िंग अधिकारी के रूप में काम किया.
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1987 में वो वहां से कनाडा जा कर टोरंटो के पास एजेक्स शहर में बस गए. शुरू में वो और उनकी पत्नी मिल कर वहाँ एक ड्राइक्लीनिंग कंपनी चलाते थे. ख़ाली समय में वो सीटीएस टेलीविजन पर मुस्लिम क्रॉनिकल कार्यक्रम भी किया करते थे.
तारेक फ़तेह के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि जब वो सिर्फ़ दस महीने के थे तो उनके दोनों पैरों के ऊपर से एक कार गुज़र गई थी, जिसके निशान अभी तक उनके पैरों पर है. तीन साल की उम्र में वो अपने घर के ही स्वीमिंग पूल में डूबते डूबते बचे थे और उन्हें उनके पश्तून ड्राइवर ने बचाया था.
ये बातें उन्होंने कनाडा के एक अख़बार में लिखे लेख में कभी लिखी थीं.
छह वर्ष पहले उनकी रीढ़ की हड्डी के पास कैंसर हो गया था. तारेक़ ने लिखा है कि उन्होंने इस बुरी ख़बर को बहुत सहजता से लिया एक बार एक शख़्स उन्हें देखने अस्पताल आया तो उसने देखा कि वो अपने माथे पर क्रिकेट की गेंद को बैलेंस करने की कोशिश कर रहे थे.
हालांकि ये वाकया तारेक अपने बारे में खुद बताते हैं.
उसने मन ही मन सोचा कि ये भी बीमार होने का कोई तरीका है. उनके एक और नज़दीकी दोस्त जब उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे तो उन्हें टेलिविजन पर एक क्रिकेट मैच देखते हुए दंग रह गए. बाद में तारेक ने लिखा कि मेरे दोस्त ने मन ही मन में सोचा कि मुझे बीमार होने की भी तमीज़ नहीं है.
कट्टर मुसलमानों ने उनके इस तरह गंभीर रूप से बीमार होने पर भी खुशियाँ मनाई. एक वेबसाइट ने यहाँ तक लिखा, 'ईश्वर ने उन्हें समलैंगिकों का समर्थन करने की सज़ा दी है.' कुछ महीनों के इलाज के बाद उन्होंने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पार पा लिया.
तारेक फ़तह की बेटी नताशा फ़तेह एक पत्रकार हैं.
कनाडा के चैनल सीबीएस के साथ एक इंटरव्यू में वो बताती है कि उनके पिता टेक्निकल जीनियस हैं और उन्हें फ़ेसबुक की लत लगी हुई है. कैंसर का ऑपरेशन होने के बाद जब वो बाहर निकले तो उन्होंने पहली चीज़, अपना आई-फ़ोन माँगा. पूरे इलाज के दौरान उनका आई फ़ोन और लैपटॉप हमेशा उनकी बगल में ही रहा.
दिलचस्प बात ये है कि कट्टर इस्लाम का इतना विरोध करने वाले तारेक अपने बचपन में हर शुक्रवार को नमाज़ पढ़ने मस्जिद जाया करते थे. घोर दक्षिणपंथी होने का ठप्पा चस्पा होने के बावजूद तारेक कई अमरीकी नीतियों का विरोध करते रहे हैं.
उनका कहना है कि विश्व का सबसे मज़बूत लोकतंत्र होने के वावजूद अमरीका हमेशा से दुनिया के बड़े तानाशाहों का समर्थन करता आया है चाहे वो सऊदी अरब हो या मिस्र या पाकिस्तान. उनके शब्दों में अमरीका मुस्लिन कट्टरपंथ से ज़्यादा साम्यवाद से डरता चला आया है.
तारेक का मानना है कि एक अच्छे मुसलमान होने के लिए उनका सऊदी अरब में पैदा होना ज़रूरी नहीं है. एक बार जब तारेक से पूछा गया कि क्या आप नहीं मानते कि मुसलमानों के साथ भारत में भेदभाव होता है?
फ्राइडे टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में उनका कहना था, 'मैं इसका खंडन नहीं करता. लेकिन मैं इस तथाकथित भेदभाव के बावजूद यहीं रहना चाहूँगा क्योंकि यहाँ मुझे कम से कम अपनी बात कहने का अधिकार तो है. उन देशों में रहने से क्या फ़ायदा जहाँ इस्लाम के नाम पर औरतों को निशाना बनाया जाता है.'
तारेक फतेह पाकिस्तान पर तंज़ करने का कोई मौका नहीं चूकते.
वो कहते हैं, 'पाकिस्तान भारत और अफ़गानिस्तान को अपना दुश्मन समझता है जिसके साथ उसकी साझा संस्कृति है जबकि उसकी इज़्ज़त न करने वाले ईरान और सऊदी अरब उसके सबसे बड़े ख़ैरख़्वाह हैं.'
इसी इंटरव्यू में जब तारेक से ये सवाल किया जाता है कि पाकिस्तान में पैदा होने के बावजूद आप अपने आप को भारतीय मुसलमान क्यों कहते हैं, तारेक का जवाब होता है, 'भारत की 5000 साल पुरानी सभ्यता है. सिंधु और उसकी सहायक नदियों के बीच पैदा होने वाले की भारतीयता पर सवाल उठाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता.'
फ्राइडे टाइम्स के साथ बातचीत में वो कहते हैं, 'यह बिल्कुल उसी तरह हुआ कि एक फ़्राँसवासी से कहा जाए कि वो यूरोपीय नहीं है. पाकिस्तान में एक बालक और युवा के तौर पर रहते हुए मुझे इस बात का एहसास था कि मैं बुल्ले शाह और बाबा फ़रीद का उतना ही करीबी वंशज था जितना अशोक महान का.'
लेकिन तारेक पर सबसे बड़ा आरोप ये है कि वो पूरे मुस्लिम समुदाय को एक स्टीरियोटाइप के रूप में देखते हैं जहाँ कुछ लोगों के व्यवहार को पूरे समुदाय के व्यवहार के रूप में पेश किया जाता है.
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