TATA Group: एक बार फिर संभाल सकती है डूबते जहाज एयर इंडिया की कमान!
बेंगलुरू। करीब 88 वर्ष पूर्व भारत के बड़े उद्योगपतियों में शुमार रहे जमशेद आरडी टाटा की एयर लाइन कंपनी रही एयर इंडिया एक बार होमकमिंग के लिए तैयार है। वर्ष 1932 में टाटा एयर सर्विसेज के तौर पर शुरू की गई एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण होने के बाद टाटा एयर सर्विसेज बदलकर एयर इंडिया हो गई थी, लेकिन नहीं बदली तो उसकी किस्मत, क्योंकि घाटे में चल रहे एयर इंडिया को उसका पुराना मालिक फिर मिलने जा रहा है।
टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए मन बना चुकी है। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित बोली में टाटा ग्रुप सिंगापुर एयरलाइन्स के साथ मिलकर बोली लगा सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि टाटा ग्रुप फैसला एयर इंडिया की 100 हिस्सेदारी खरीदने के लिए अंतिम दौर में है और टाटा ग्रुप की ओर अब डील को अंतिम रूप दिया जा चुका है।
गौरतलब है एयर इंडिया की शुरूआत और स्थापना टाटा ग्रुप ने ही 88 वर्ष पूर्व किया था और अब एयर इंडिया अपने पुराने मालिक के पास जा रही है। वर्ष 1953 में एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण होने के बाद टाटा ग्रुप ने एयर लाइन बिजनेस में अनवरत रूप से बनी रही। अभी टाटा संस और सिंगापुर एयरलाइन्स साथ में विस्तारा एयरलाइन का परिचालन कर रहे हैं, जबकि एयर एशिया इंडिया में टाटा ग्रुप की 51% हिस्सेदारी है।
टाटा ग्रुप एयर इंडिया के साथ ही एयर इंडिया की सहयोगी कंपनी एयर इंडिया एक्स्प्रेस के अधिग्रहण भी करेगी। एयर इंडिया एक्सप्रेस एक घरेलू व बजट एयरलाइन्स है, जो घाटे में बिल्कुल नहीं है और दक्षिण भारतीय राज्यों से खाड़ी देशों में प्रमुख रूप से सेवा देती है।
दरअसल,
वित्तीय
संकट
में
फंसी
सरकारी
एयरलाइन
एअर
इंडिया
को
बेचने
के
लिए
सरकार
मजबूर
है
और
अगर
टाटा
ग्रुप
एयर
इंडिया
की
बोली
नहीं
लगाती
है
तो
सरकार
को
जून,
2021
तक
एयर
इंडिया
के
परिचालन
बंद
करना
पड़
सकता
है।
माना
जा
रहा
है
कि
टाटा
ग्रुप
एयर
इंडिया
की
बोली
में
दो
वजहों
से
रूचि
दिखा
रही
है।
एक तो एयर इंडिया टाटा ग्रुप की अपनी कंपनी रही है, जो राष्ट्रीयकरण के बाद उससे ले गई थी। दूसरी, एयर इंडिया की खरीदारी से उसे एयर इंडिया का बना बनाया बाजार मिलेगा। मौजूदा समय में एयर इंडिया के पास 118 एयरक्राफ्ट्स का बेड़ा है। इस तरह एयरक्राफ्ट्स के मामले में एयर इंडिया निजी एयरलाइन्स कंपनी इंडिगो के बाद दूसरी बड़ी कंपनी है।
उल्लेखनीय है पहले भी एयर इंडिया के विनिवेश की कोशिश की गई थी, लेकिन तब सरकार खरीदार ढूंढने में असफल रही थी। इस बार सरकार ने एयरइंडिया के विनिवेश को अधिक आकर्षक बनाने के लिए सरकार ने बोलियां लगाने के नियम आसान बनाए हैं। यानी अब 3,500 करोड़ रुपए की नेटवर्थ वाले समूह भी एयर इंडिया के लिए बोली लगा सकेंगे।
वहीं, किसी समूह में उसके अलग अलग भागीदारों की न्यूनतम हिस्सेदारी भी 10 फीसदी तय कर दी है। इससे पहले, वर्ष 2018 में जब सरकार ने एयर इंडिया की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की निविदा जारी की थी, तब किसी संभावित खरीदार की नेटवर्थ 5,000 करोड़ रुपए और बोली लगाने वाले समूह में शामिल भागीदारों की न्यूनतम हिस्सेदारी 26 प्रतिशत रखी गई थी।
सरकार ने इस बार 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के बजाय कर्ज बोझ से दबी एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया, जिसके लिए प्राथमिक सूचना ज्ञापन (पीआईएम) भी जारी कर दिया है। सरकार ने इच्छुक खरीदारों व पक्षों से 17 मार्च तक आरंभिक बोलियों के रुचि पत्र मंगाए हैं। एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश के तहत एयरलाइन की सस्ती विमानन सेवा 'एयर इंडिया एक्सप्रेस में भी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी।
स्वाभाविक है कि टाटा ग्रुप एयर इंडिया के साथ साथ एयर इंडिया एक्सप्रेस की खऱीदारी में कोताही नहीं बरतेगी। यह इसलिए क्योंकि लेकिन एयर इंडिया की तरह एयर इंडिया एक्सप्रेस घाटे में नहीं है। यह लो कॉस्ट एयरलाइन भारत के दक्षिण भारतीय शहरों से मध्य पूर्व और खाड़ी देशों में अपनी सेवाओं के लिए जानी जाती है।
केंद्र सरकार की शर्तों के मुताबिक़ एयर एंडिया के खरीदार की नेट वर्थ कम से कम 3,500 करोड़ होनी अनिवार्य है। टाटा की स्थिति एयर इंडिया को खरीदने के लिए बिल्कुल अनुकूल हैं, क्योंकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के अनुसार टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड की मौजूदा नेट वर्थ 6.5 ट्रिलियन रुपए है।
मौजूदा वक़्त में टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड, सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर विस्तारा एयरलाइन चलाते हैं। इस संयुक्त उपक्रम (वेंचर) में टाटा की 51 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। इसके अलावा एयर एशिया इंडिया में भी टाटा सन्स की 51 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी वेबसाइट के मुताबिक़ पिछले वित्त वर्ष में टाटा ग्रुप का रेवेन्यू 729,710 करोड़ था। वहीं 31 मार्च, 2019 को टाटा ग्रुप की मार्केट कैपिटल 1,109,809 करोड़ था।
सूत्रों के मुताबिक टाटा ग्रुप एयर इंडिया को खरीदने के अपने प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के काफ़ी करीब है और वो सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर कंपनी के अधिग्रहण को अंजाम देने की तैयारियां शुरू कर चुकी है। सरकार ने एयर इंडिया के बोली लगाने की इच्छुक कंपनियों के लिए उनके प्रस्ताव (एक्सप्रेशन ऑफ़ इंट्रेस्ट) सौंपने की आख़िरी तारीख़ 17 मार्च, 2020 तय की है और 31 मार्च तक सरकार खरीदारों के नाम की घोषणा करेगी।
मौजूदा वक़्त में एयरलाइन्स पर लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ है, लेकिन अधिग्रहण के बाद खरीदार को लगभग 23,286 करोड़ रुपए ही चुकाने होंगे। बाकी का कर्ज़ ख़ुद सरकार उठाएगी। कर्ज़ को कम करने के लिए सरकार ने ऋण विशेष इकाई का गठन किया है। हालांकि वर्ष 2000 तक यह मुनाफे में चलती रही।
लेकिन 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था और शायद इसी के चलते वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय किया और दोनों कंपनियों का विलय के वक्त संयुक्त घाटा 770 करोड़ रुपये था, जो विलय के बाद बढ़कर के 7200 करोड़ रुपए हो गया।
वर्ष 2009 में यूपीए सरकार 2 के कार्यकाल में एयर इंडिया के घाटे की भरपाई के लिए उसके तीन एयरबस 300 और एक बोइंग 747-300 को बेच दिया गया। बावजूद इसके मार्च 2011 में कंपनी का कर्ज बढ़कर के 42600 करोड़ रुपए और परिचालन घाटा 22000 करोड़ रुपए का हो चुका था।
वर्ष 2011 तक करीब 58 हजार करोड़ के कर्ज में दबी एयर इंडिया को वित्त वर्ष 2018-19 में 8,400 करोड़ रुपए का जबरदस्त घाटा हुआ और केंद्र में काबिज मोदी सरकार ने एयर इंडिया में सरकाार 100 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने का फैसला किया।
मालूम हो, एयर इंडिया को एक महीने में 300 करोड़ रुपए कर्मचारियों को वेतन के रूप में देने होते हैं। इस वित्त वर्ष एयर इंडिया 9,000 करोड़ रुपए के कर्ज का भुगतान करने पर काम कर रही है। इसके लिए कंपनी ने सरकार से मदद मांगी है, क्योंकि एयर इंडिया को ज्यादा ऑपरेटिंग कॉस्ट और विदेशी मुद्रा में घाटे के चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
इन्हीं हालातों के चलते एयर इंडिया तेल कंपनियों को ईंधन का बकाया नहीं दे पा रही है। हाल ही में तेल कंपनियों ने ईंधन सप्लाई रोकने की भी धमकी दी थी, लेकिन फिर सरकार के हस्तक्षेप से ईंधन की सप्लाई को दोबारा शुरू कर दिया गया था।
हालांकि केंद्र सरकार के एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी के ऐलान को बीजेपी राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने देश हित में नहीं बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके सरकार ने उन्हें कोर्ट जाने पर मजबूर किया है। बकौल सुब्रमण्यम स्वामी हम अपने परिवार के सदस्य को इस तरह से बेच नहीं सकते?"
एक घंटे के अंतराल में एक के बाद किए गए दो ट्वीट में उन्होंने प्रधानमंत्री से गुहार लगाते हुए कहा कि एयर इंडिया रिकवरी मोड में आ गई है। अप्रैल से दिसंबर के महीने में घाटा कम हुआ है। प्रधानमंत्री जी, हमें इसे मज़बूत करने के बजाए क्यों बेच रहे हैं।"
यह भी पढ़ें- एयर इंडिया को लेकर शिवसेना ने सरकार पर कसा तंज, कहा- 'एक तरफ 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का वादा और दूसरी तरफ.....'
क्या टाटा ग्रुप एयर इंडिया में लगाएगी दांव?
दावा किया जा रहा है कि टाटा ग्रुप एयर इंडिया को खरीदने के लिए वाकई इच्छुक दिख रही है, लेकिन एयर इंडिया मौजूदा वक़्त में एयरलाइन्स पर लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ है। चूंकि अधिग्रहण के बाद खरीदार को केवल 23,286 करोड़ रुपए ही चुकाने होंगे और बाकी का कर्ज़ ख़ुद सरकार उठाएगी। इसलिए माना जा रहा है कि टाटा ग्रुप एयर इंडिया की खरीदारी के लिए आगे आई है। यही नहीं, कर्ज़ को कम करने के लिए सरकार ने ऋण विशेष इकाई का गठन किया है।
विस्तारा एयरलाइन्स अभी एक छोटी एयरलाइन?
टाटा ग्रुप की 51 फीसदी हिस्सेदारी वाली विस्तारा एयरलाइन अभी अभी एक छोटी एयरलाइन सेवा है। मार्केट शेयर के मुताबिक इंडिगो, स्पाइसजेट, एयर इंडिया और गो एयर के बाद विस्तारा पांचवें नंबर पर आती है। इसी तरह एयर एशिया इंडिया भी छोटी एयरलाइन ही है, जो छठें-सातवें नंबर पर आती है। टाटा ग्रुप एयरलाइन सेक्टर में आगे बढ़ने के लिए एयर इंडिया का अधिग्रहण में रूचि दिखा रही है और एयर इंडिया के अधिग्रहण के बाद भारत से संचालित विमान सेवा कंपनी इंडिगो के बाद एयर इंडिया दूसरी बड़ी निजी विमानन कंपनी में शुमार हो जाएगी।
जानिए, टाटा ग्रुप के सामने क्या होंगी मुश्किलें?
अगर टाटा एयर इंडिया का अधिग्रहण करती है तो छूट के बाद भी उसे कर्ज़ के करीब साढ़े 23 हजार करोड़ चुकाने ही होंगे। इसके साथ ही यात्रियों की लगातार कम होती संख्या से निबटने के बारे में भी कोई मज़बूत रणनीति बनानी होगी। चूंकि गिरते रुपए ने एविएशन सेक्टर में 'ऑपरेशनल लॉस' को और बढ़ा दिया है। अब विमान का ईंधन ख़रीदने में ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता है, इसके लिए भी तैयार रहना होगा।
अधिग्रहण को लेकर टाटा के सामने है तकनीकी अड़चन
एयर इंडिया के अधिग्रहण को लेकर टाटा के सामने एक तकनीकी अड़चन है। वो है, एयर एशिया इंडिया में उसकी 51 फीसदी साझेदारी। एयर एशिया इंडिया के दूसरे साझेदार यानी टोनी फर्नांडिज के साथ हुए समझौते में एक प्रावधान है कि टाटा किसी बजट या लो कॉस्ट एयरलाइन में 10 फ़ीसदी से ज़्यादा निवेश नहीं कर सकता और अगर वो ऐसा करना चाहता है तो उसे दूसरे हिस्सेदार यानी टोनी फर्नांडिज़ की सहमति लेनी ज़रूरी होगी। हालांकि टाटा ग्रुप ने मंजूरी के लिए टोनी फर्नांडिज को चिट्ठी भेज दी है।
एयर इंडिया एक्सप्रेस का अधिग्रहण भी अनिवार्य
चूंकि एयर इंडिया की सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस एक बजट एयरलाइन है और सरकार की शर्तों के अनुसार खरीदार के लिए एयर इंडिया के साथ-साथ एयर इंडिया एक्सप्रेस का अधिग्रहण भी अनिवार्य है। ऐसे में टाटा के लिए यह ज़रूरी होगा कि टोनी फ़र्नांडिज़ उसके एयर एशिया एक्सप्रेस में 100 फ़ीसदी निवेश पर सहमति जताए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो टाटा के लिए यह डील लगभग नामुमकिन होगी। हालांकि अभी यह भी साफ़ नहीं है कि एयर एशिया इंडिया, टाटा और सिंगापुर एलायंस के साथ एयर इंडिया के लिए लगाई जाने वाली बोली में शामिल होगी या नहीं।
एयर इंडिया को खरीदने के लिए कई हैं मजबूत पक्ष
अगर कर्ज़ को थोड़ी देर के लिए नज़रअंदाज़ किया जाए तो एयर इंडिया के कई मज़बूत पक्ष हैं। इनमें विशाल एयरोनॉटिकल संपत्ति है यानी अच्छे हवाई जहाज़, प्रशिक्षित पायलट, इंजीनियर और अन्य प्रशिक्षित स्टाफ़ प्रमुख रूप से शामिल है। एयर इंडिया के दुनिया के कई शहरों में स्लॉट्स हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एयर इंडिया के लगभग 18 फीसदी, राष्ट्रीय बाज़ार में लगभग 13 फीसदी शेयर हैं।
फायदे में है लो कास्ट सब्सिडियरी कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस
केंद्र सरकार एयर इंडिया के साथ ही उसकी लो कॉस्ट सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी भी बेच रही है। यह एयर इंडिया की तरह एयर इंडिया एक्सप्रेस घाटे में नहीं है। यह लो कॉस्ट एयरलाइन भारत के दक्षिण भारतीय शहरों से मध्य पूर्व और खाड़ी देशों में अपनी सेवाओं के लिए जानी जाती है। ऐसे में यह स्वाभाविक भी है कि एयर इंडिया खरीदने वाली कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस को अपने हाथों से नहीं जाने देगी।
एयर इंडिया और टाटा ग्रुप का पुराना कनेक्शन
जाने-माने उद्योगपति जेआरडी टाटा ने भारत की आज़ादी से पहले ही 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी। टाटा एयरलाइंस के लिए साल 1933 पहला वित्त वर्ष रहा था। ब्रितानी शाही 'रॉयल एयर फोर्स' के पायलट होमी भरूचा टाटा एयरलाइंस के पहले पायलट थे जबकि जेआरडी टाटा और विंसेंट दूसरे और तीसरे पायलट थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब उड़ान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस 'पब्लिक लिमिटेड' कंपनी बन गई और उसका नाम बदलकर 'एयर इंडिया लिमिटेड' रखा गया। आज़ादी के बाद यानी 1947 में टाटा एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली थी। 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया था।
क्यों एयर इंडिया का अधिग्रहण है फायदे का सौदा ?
अगर कोई निवेशक इस विमानन कंपनी को खरीदता है तो उसे बना बनाया बाजार मिलेगा। साथ ही उसे घरेलू स्तर पर उड़ान के लिए जरूरतों की पूर्ति भी आसानी से पूरी हो जाएगी। 118 एयरक्राफ्ट के साथ एयर इंडिया का बेड़ा इंडिगो के बाद दूसरे नंबर पर है। एयर इंडिया निवेशकों को मौका दे रही है कि वो इसे दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रुप में विस्तार दे पाए।
मातृ कंपनी के आधार पर बोली लगा सकते हैं खरीदार
पीआईएम की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि कोई कंपनी अपनी 'मातृ कंपनी की ताकत के आधार पर भी बोली लगा सकती है। पहले इसका प्रावधान नहीं था। एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया के तहत कोई समूह भी बोली लगा सकता है। समूह में हर प्रतिभागी की हिस्सेदारी कम से कम 10 प्रतिशत और कुल 3500 करोड़ रुपए की नेटवर्थ के 10 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए। समूह का नेतृत्व करने वाले सदस्य की हिस्सेदारी भी कम से कम 26 प्रतिशत होनी चाहिए। व्यक्तिगत निवेशक समूह का हिस्सा बनकर निवेश कर सकते हैं। यदि कोई घरेलू विमानन कंपनी बोली लगाती है तो वह बिना नेटवर्थ के 51 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रख सकती है। हालांकि सहयोगी कंपनी को 3,500 करोड़ रुपये की नेटवर्थ की योग्यता पूरी करनी होगी।
17 मार्च, 2020 तक कंपनियों को सौंपना है अपना प्रस्ताव
सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर टाटा ग्रुप, एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की योजना बना रहा है। टाटा समूह एयर इंडिया को खरीदने के अपने प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के काफ़ी करीब है और वो सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर कंपनी के अधिग्रहण को अंजाम देने की तैयारियां शुरू कर चुका है। इसके मद्देनज़र कंपनियों के लिए अपने प्रस्ताव (एक्सप्रेशन ऑफ़ इंट्रेस्ट) सौंपने की आख़िरी तारीख़ 17 मार्च, 2020 रखी गई है। 31 मार्च तक सरकार खरीदार के नाम की घोषणा करेगी।
76 के बजाय अब पूरे 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेच रही है सरकार
सरकार पहले भी एयर इंडिया को बेचने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन इसके लिए खरीदार नहीं मिले थे। सरकार ने इस बार एयर इंडिया को बेचने की शर्तों में काफ़ी बदलाव किए हैं। अब सरकार ने 76 फ़ीसदी के बजाय पूरे 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव भी सामने रखा है। इसके अलावा सरकार ने कुछ और शर्तों में भी ढील दी है, ताकि इस बार उसे ख़रीदार मिल सके। सरकार ने कहा है कि अगर किसी संभावित खरीदार को मौजूदा शर्तों को लेकर कोई दिक्कत है तो वो इस बारे में बात करने को तैयार है।
एयर इंडिया का सिर्फ ऑपरेशन एसेट ही बेच रही है सरकार
सरकार एयर इंडिया के 100 फीसदी हिस्सेदारी के लिए निविदा आमंत्रित किया है, लेकिन सरकार एयर इंडिया का सिर्फ ऑपरेशन एसेट ही बेंच रही है। इसमें रियल एसेट शामिल नहीं है। यानी अधिग्रहण करने वाली कंपनी को सरकार जहाज़, एयरक्राफ़्ट और कंपनी का प्रबंधन पूरी तरह सौंप देगी, लेकिन दिल्ली और मुंबई स्थित एयर इंडिया के दफ़्तर नीलामी के दायरे से बाहर हैं। हालांकि अधिग्रहण के बाद खरीदार को कुछ वक़्त तक इन दफ़्तरों से काम करने की इजाज़त होगी।
एयर इंडिया का नाम नहीं बदल सकेंगे खरीदार
अधिग्रहण के बाद भी कंपनी या कंपनियां एयर इंडिया का नाम फ़िलहाल नहीं बदल सकेगी। यानी विनिवेश के बाद भी एयरलाइन का नाम 'एयर इंडिया' ही रहेगा। खरीदार को एयर इंडिया के साथ ही एयर इंडिया एक्सप्रेस का अधिग्रहण भी करना होगा।
अधिग्रहण के बाद एयर इंडिया कर्मियों को मिलेगी उचित स्तर की सुरक्षा
विनिवेश के लिए सरकार की शर्तों के मुताबिक सरकार ने अधिग्रहण के बाद एयर इंडिया में कार्यरत कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा वादा किया है। एयर इंडिया के कर्मचारियों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करते हुए सरकार की ओर से कहा गया है कि कर्मचारियों का ध्यान रखा जाएगा और उन्हें 'उचित स्तर की सुरक्षा' दी जाएगी। चूंकि एयर इंडिया की कर्मचारी यूनियन काफ़ी मज़बूत है इसलिए सरकार और अधिक सतर्क है, जो एयरलाइन के निजीकरण का विरोध करते आए हैं।