क्या आदित्य को मंत्री बनाकर उद्धव ठाकरे ने किया चौतरफा नुकसान? जानिए
नई दिल्ली- उद्धव ठाकरे ने अपने पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार में जिस तरह से वरिष्ठ और समर्पित पार्टी नेताओं को नजरअंदाज कर पहली बार विधायक बने बेटे को कैबिनेट मंत्री बनाया है, उससे उन्हें चौतरफा नुकसान होता दिखाई दे रहा है। शुरू में लग रहा था कि उन्होंने जिस तरह से भाजपा को गच्चा देकर सत्ता के सिंहासन पर कब्जा किया, उसके बाद सबकुछ उनके हक में जा रहा है। लेकिन, सोमवार को हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद परिस्थितियां अचानक उनके विपरीत नजर आने लगीं। आने वाले वक्त में वे इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन आइए अभी जानते हैं कि उनका एक फैसला कैसे उन्हें फिलहाल चौतरफा नुकसान करता नजर आ रहा है।
आदित्य की वजह से शिवसेना के वरिष्ठों में मायूसी
शिवसेना के बड़बोले प्रवक्ता और पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादक भले ही खुद की नाराजगी की बात सार्वजनिक तौर पर खारिज कर रहे हों, लेकिन उनके ऐक्शन से जाहिर होता है कि वह सोमवार की घटना से बेहद मायूस हैं। यह चर्चा आम है कि अगर आदित्य ठाकरे मंत्री नहीं बनते तो उनके भाई सुनील राउत को उद्धव कैबिनेट में जगह मिल सकती थी। शायद यही वजह है कि उन्होंने नए मंत्रियों के शपथग्रहण समारोह से दूरी बना ली। यही नहीं 'सामना' में भी उन्होंने कहीं न कहीं 'मूल शिवसैनिकों' की अनदेखी की बात उठाई है। अलबत्ता गठबंधन की मजबूरियों का राग अलाप कर वे विद्रोही दिखने से बचते जरूर नजर आए हैं। राउत ही नहीं तानाजी सावंत, सुनील प्रभु और भास्कर जाधव की शपथग्रहण समारोह से गैरमौजूदगी भी उनकी मायूसी बयां करने के लिए काफी हैं। 'सामना' के संपादकीय में राउत ने ही पहली बार के एमएलए बने आदित्य ठाकरे को मंत्री बनाने और रामदास कदम समेत बाकी दिग्गज मूल शिवसैनिकों को अवसर खो देने का जिक्र किया है।
सहयोगी दल के नेता भी नाराज
बीड जिले के मजलगांव विधानसभा क्षेत्र से एनसीपी विधायक प्रकाश सोलंकी भी भले ही साफ-साफ कुछ नहीं कह रहे हों, लेकिन उनकी बातों से जाहिर है कि वह मंत्रिमंडल विस्तार से खुश नहीं हैं। उन्होंने इशारों में ही अपनी भावना जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि कैबिनेट विस्तार से साबित होता है कि "मैं राजनीति करने के योग्य नहीं हूं।" इस वजह से तो उन्होंनेअपनी विधायकी छोड़ने की घोषणा तक कर दी है। दरअसल, वे चार बार के विधायक हैं, लेकिन फिर भी मंत्री लायक नहीं समझे जाने के चलते वे काफी आहत हुए हैं। मंत्री नहीं बनने से नाराज विधायकों की लिस्ट में एनसीपी के मकरंद पाटील और राहुल चव्हाण का भी नाम आ रहा है, जो विस्तार के हिस्सा नहीं बने हैं। नाराज विधायकों की फेहरिस्त में कांग्रेस के संग्राम थोप्टे का भी नाम जुड़ चुका है, जिनके समर्थकों ने प्रदर्शन भी किया है।
शिवसेना कैडर में गया गलत संदेश
शिवसेना के मुखपत्र में मंत्रिमंडल विस्तार में 'मूल शिवसैनिकों को नुकसान' की स्पष्ट तौर पर चर्चा हुई है। भाजपा के साथ गठबंधन की जीत के बाद उद्धव ठाकरे और संजय राउत बार-बार ये बात कह रहे थे कि उन्होंने अपने पिता और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे से वादा किया था कि एक दिन एक शिवसैनिक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा। उद्धव ने अपने पिता से किया वो वादा (जो वे दावा करते हैं) पूरा कर दिया है। जाहिर है कि यहां तक तो बात आम शिवसैनिकों के गले के नीचे उतर सकती थी और इसलिए वह बीजेपी का साथ छोड़ने के बावजूद नेतृत्व के फैसले के साथ अडिग भी रहे होंगे। लेकिन, जब वे खुद सत्ता की कमान संभाले हुए हैं तो बेटे आदित्य को कैबिनेट में लाने की इतनी जल्दबाजी क्या थी? उनके चलते रामदास कदम,तानाजी सावंत, सुनील प्रभु ,भास्कर जाधव और दीपक केसरकर जैसे दिग्गज शिवसैनिकों को नजरअंदाज क्यों किया गया? एक आम शिवसैनिकों के मन में ये सवाल जरूर पैदा हो रहे होंगे। क्योंकि, शिवसेना एक परिवार पर आधारित पार्टी तो है, लेकिन उसका संगठन शिवसैनिकों के मजबूत कंधों पर ही टिका हुआ है। ये कोई जातिगत पार्टी नहीं है, बल्कि एक विचारधारा पर चलकर आगे बढ़ी है। अब आम शिवसैनिक इस सवाल का जवाब जरूर ढूंढ़ रहे होंगे कि जो बालासाहेब ने सारी सियासी ताकत अपने हाथों में रखने के बावजूद अपने परिवार के किसी सदस्य को चुनावी राजनीति तक में फटकने नहीं दिया, आखिर आज परिवार की दो-दो पीढ़ियों और वह भी पिता-पुत्र की जोड़ी को सत्ता सुख लेने का नशा क्यों चढ़ गया है?
आम लोगों में भी अच्छा संदेश नहीं गया
जो लोग बाल ठाकरे के जमाने की शिवसेना को जानते हैं, उन्हें पता है कि सियासत में चाहे नफा हो या नुकसान उन्होंने अपने विचारों से कभी समझौता नहीं किया। शिवसेना की चाहे लाख आलोचना हो जाए, लेकिन बालासाहेब अपने फैसले के पक्के थे। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह थी कि पार्टी के एक आम समर्थक को उनकी जुबान पर बहुत ज्यादा यकीन था। अपने प्रति बालासाहेब ने यह विश्वास परिवार को सत्ता से दूर रखकर बनाई थी। महाराष्ट्र में पहले भी शिवसेना के दो-दो मुख्यमंत्री रहे, लेकिन बालासाहेब ने कभी खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की नहीं सोची। यही उनकी ताकत थी कि वह अपने नुमाइंदों के जरिए ही सत्ता चलाना जानते थे। लेकिन, आज उसी सत्ता के लिए बालासाहेब के अपने बेटे ने ही जिस तरह से अपने बेटे को भी कैबिनेट मंत्री बना दिया है, पार्टी समर्थक या किसी आम आदमी में भी इसका अच्छा संदेश गया होगा, ऐसा लगता नहीं है।
सोमवार को हुआ मंत्रिमंडल विस्तार
सोमवार को महाराष्ट्र में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में कुल 36 विधायकों को जगह मिली है। इसमें एनसीपी के 14, शिवसेना के 12 और कांग्रेस के 10 विधायक मंत्री बनाए गए हैं। इसी विस्तार में एनसीपी कोटे से अजित पवार डिप्टी सीएम बनाए गए हैं तो उद्धव ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भी कैबिनेट मंत्री के तौर पर जगह दी है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 56 और एनसीपी के 54 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस विधायकों की संख्या 44 है।
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