गांधी या गोड्से के सवाल पर प्रशांत किशोर ने क्या नीतीश को किया एक्सपोज?
पटना। प्रशांत किशोर ने गांधी या गोड्से के सवाल पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिल्कुल एक्सपोज कर दिया। उन्होंने कहा कि नीतीश ने सिर्फ गांधी के नाम का इस्तेमाल किया है। सच ये है कि उन्होंने सत्ता के लिए गोड्से के समर्थकों से समझौता कर लिया। नीतीश कुमार कुर्सी के लिए भाजपा के पिछलग्गू बन गये। बिहार को एक मजबूत नेता चाहिए, पिछलग्गू नहीं। नीतीश कुमार ने विकास के नाम पर कम्प्रोमाइज किया लेकिन विकास भी तो नहीं हुआ। बिहार अगर गरीब है तो इसके लिए वही जिम्मेवार हैं। बदलाव के लिए 15 साल कम नहीं होते। इन्हीं बातों पर नीतीश कुमार से मेरा विरोध था। जदयू से निकाले जाने के बाद पहली बार पटना आये प्रशांत किशोर ने प्रेसवार्ता में नीतीश कुमार की धज्जियां उड़ा दीं। लगे हाथ अमित शाह को भी जम कर लपेटा।
नीतीश को बताया, गोड्से समर्थकों का सहयोगी
पीके ने कहा कि नीतीश से मेरे मतभेद की सबसे पहली वजह थी गांधीवाद की अनदेखी। महात्मा गांधी ने सात कार्यों को सामाजिक पाप करार दिया है। इनमें सिद्धांत के बिना राजनीति, मेहनत के बिना धन और त्याग के बिना पूजा जैसी बातों का जिक्र है। नीतीश कुमार पूरे बिहार में इन सात पापों की शिलापट्ट लगा कर लोगों को बचने की सलाह देते रहे हैं। दूसरी तरफ वे गांधी के हत्यारे गोड्से के समर्थकों के साथ गठबंधन में सरकार भी चलाते हैं। आप दो नावों पर कैसे सवार हो सकते हैं ? या तो गांधीवाद के पक्ष में रहिए या फिर गोड्से समर्थकों के पक्ष में। प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के उस फैसले का विरोध किया जब उन्होंने जुलाई 2017 में भाजपा से दोबारा मेल कर सरकार बनायी थी। जदयू के उपाध्यक्ष रहते उन्होंने इस मुद्दे पर नीतीश का सार्वजनिक विरोध किया था। प्रशांत के मुताबिक, नीतीश ने केवल सत्ता के लिए भाजपा के सामने घुटने टेक दिये। प्रशांत किशोर ने नीतीश को गोड्से समर्थकों का सहयोगी बता उनकी राजनीतिक जमीन हिला दी है।
नीतीश को कहा, भाजपा का पिछलग्गू
प्रशांत किशोर ने कहा कि 2005 के नीतीश कुमार और आज के नीतीश कुमार में जमीन-आसमान का फर्क है। नीतीश पहले सिद्दांतों की राजनीति करते थे। अब सत्ता के लिए समझौतावादी हो गय़े हैं। पीके की अमित शाह से पुरानी अदावत है। उन्होंने अमित शाह का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों-इशारों में जबर्दस्त वार किये। पीके ने कहा, नीतीश कुमार बिहार के साढ़े दस करोड़ जनता के मुख्यमंत्री हैं। वे अपनी क्षमता से सीएम की कुर्सी पर पहुंचे हैं। लेकिन यह देख कर दुख होता है कि गुजरात का एक नेता उनके लीडर होने का प्रमाण पत्र देता है तो वे खुश हो जाते हैं। कुछ दिनों पहले अमित शाह ने कहा था कि नीतीश ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे और उन्ही के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। पीके ने अमित शाह के इसी बयान पर कटाक्ष किया। क्या गुजरात का नेता नीतीश कुमार को बिहार का लीडर बनाएगा ? नीतीश कुमार की यह हालत देख कर तकलीफ होती है। इससे बेहतर तो नीतीश तब थे जब वे केवल दो सांसदों वाली पार्टी के नेता थे। हारे जरूर थे लेकिन बिहार के स्वाभिमान के लिए मुस्तैदी से खड़े रहे। नीतीश के पास आज 16 सांसद हैं लेकिन पहले की तुलना में वे बेहद कमजोर हैं। सत्ता के लिए वे भाजपा के पिछलग्गू बन गये हैं।
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भाजपा ने किया अपमान फिर भी साथ
प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश जिस विकास के नाम पर भाजपा के साथ हैं वह उम्मीद भी पूरी नहीं हुई। भाजपा उनका लगातार अपमान करती रही फिर भी नीतीश सब कुछ सहते रहे। नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हाथ जोड़ कर पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की गुजारिश की थी। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने मंच पर ही इस मांग को खारिज कर दिया था। आज तक उस पर कोई जवाब नहीं दिया। नीतीश कुमार कई साल से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मुहिम चतला रहे हैं। इसको भी भाजपा सरकार ने मानने से इंकार कर दिया। इतने कम्प्रोमाइज के बाद भी क्या मिला? नीतीश का भाजपा के साथ गठबंधन जब फायदेमंद ही नहीं है तो फिर इसकी जरूरत क्या है? क्या नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहने के लिए भाजपा का अपमान सह रहे हैं?