क्या सुशांत सिंह राजपूत केस में दो महीनों तक झक मारती रही मुंबई पुलिस ?
नई दिल्ली- सुशांत सिंह राजपूत केस में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में जो लिखित दलील पेश की है, उससे यह सवाल उठता है कि क्या दो महीनों तक मुंबई पुलिस ने जांच करने का जो दावा किया, वह बेमतलब था? गौरतलब है कि सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच की मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है। अब तो बॉलीवुड का एक तबका भी उनके परिवार वालों और फैंस के साथ इस मुहिम में कूद चुका है और संदिग्ध हालातों में मर चुकी अभिनेता जिया खान की मां राबिया खान ने भी इस मुहिम का समर्थन कर दिया है। आइए समझते हैं कि देश के सॉलिसिटर जनरल के लिखित तर्कों से ऐसा क्यों लगने लगा है कि मुंबई पुलिस सुशांत सिंह राजपूत केस में जांच के नाम पर दो महीने तक झक तो नहीं मारती रह गई ?
मुंबई पुलिस दो महीने बाद भी खाली हाथ ?
सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत को आज दो महीने गुजर गए। इस दौरान जांच में मुंबई पुलिस की उपलब्धि मात्र ये रही है कि उसने 56 गवाहों के बयान दर्ज करने का दावा किया है। महाराष्ट्र में सत्ताधारी शिवसेना की ओर से आधिकारिक रूप से कहा गया है कि सुशांत के परिवार वालों को अभी जांच पूरी होने तक शांत बैठ जाना चाहिए। सवाल ये है उस होनहार अभिनेता की मौत के दो महीने बाद मुंबई पुलिस ने जांच में ऐसा कौन सा तीर मार लिया है, जिसके चलते उसकी जांच पर लोग आसानी से यकीन करने के लिए तैयार हो जाएं? तथ्य तो यह है कि दो महीने की जांच में पुलिस ने इतने हाई प्रोफाइल केस में एक औपचारिक एफआईआर तक दर्ज करने की जरूरत नहीं समझी है। यह बात सुप्रीम कोर्ट में भी उठाई गई है, लेकिन इसके चलते केस पर जो असर पड़ने की आशंका पैदा हुई है, वह और भी गंभीर है।
बिना एफआईआर बयानों की कोई कानूनी वैद्यता नहीं- सॉलिसिटर जनरल
सुप्रीम कोर्ट में सुशांत सिंह राजपूत केस में केंद्र सरकार ने अपना जो पक्ष रखा है, अब जरा उसपर गौर फरमाइए। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलील पेश करके इस मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से जारी रखने के लिए जो इजाजत मांगी है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। सौलिसिटर जनरल की लिखित दलील के मुताबिक, 'महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी एफिडेविट में कहा है कि उसने 56 लोगों का बयान दर्ज किया है। इस स्थिति में जबकि इस केस में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और पुलिस अधिकारी मात्र धारा-174 के तहत कार्य कर रहे हैं, उन बयानों की कोई वैद्यता या कानूनी मान्यता नहीं है और ये बमतलब हैं।'
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तो क्या दो महीनों तक झक मारती रही मुंबई पुलिस
सॉलिसिटर जनरल के लिखित दावों के आधार पर सवाल उठता है कि जब मुंबई पुलिस की अबतक की जांच का कोई कानूनी आधार ही नहीं है तो क्या वह पिछले दो महीनों से झक मार रही थी? ऐसे में अगर सुशांत के परिवार वाले मुंबई पुलिस की जांच पर अविश्वास जता रहे हैं तो उनका डर वाजिब लगता है। ऊपर से इस मामले में महाराष्ट्र सरकार जिस तरह से शुरू से इस केस में ऐक्टिव रही है और अब सत्ताधारी पार्टी पीड़ितों को ही चुप रहने को कह रही है, बिना आधार पीड़ितों पर ही लांछन लगाने कोशिश कर रही है तो मामला बहुत ही संदिग्ध होता जा रहा है। गौरतलब है कि सुशांत की मौत के दो दिन बाद ही प्रदेश के गृहमंत्री ने उसे सुसाइड की ओर ही इशारा करने की कोशिश की थी और अब सत्ताधारी शिवसेना की ओर से इस मामले में देश को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। अगर पार्टी में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के बाद सबसे प्रभावशाली नेता संजय राउत के पास कोई ठोस जानकारी नहीं थी तो उन्होंने पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में सुशांत के पिता के चरित्र हनन (दूसरी शादी करने का दावा) की कोशिश क्यों की?
सीबीआई जांच का अबतक का आधार
गौरतलब है कि बिहार सरकार की सिफारिश के आधार पर सीबीआई इस मामले में पहले ही एफआईआर दर्ज कर चुकी है और उससे पहले पटना पुलिस ने सुशांत के पिता केके सिंह की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज किया था। वहीं केंद्र सरकार की एक और एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय प्रिवेंशन ऑफ मनी लाउन्ड्रिंग ऐक्ट, 2002 के तहत इस केस की जांच अलग से कर रही है। बता दें कि पटना पुलिस में सुशांत के पिता ने जिन धाराओं में रिया चक्रवर्ती और उसके परिवार वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, उनमें आईपीसी की धारा-306(आत्महत्या के लिए उकसाने),341 (गलत तरीके से नियंत्रण करने),342 (गलत तरीके से बंदी बनाने), 380 (रिहायशी घर में चोरी), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति का वितरण ) शामिल हैं।
सुशांत की मौत का राज क्या है ?
गौरतलब है कि सुशांत सिंह राजपूत आज से ठीक दो महीने पहले 14 जून, 2020 को मुंबई के बांद्रा स्थित अपने अपार्टमेंट के अपने बेडरूम में संदिग्ध हालात में मृत पाए गए थे। उनके कमरे में मुंबई पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। मुंबई पुलिस ने आजतक उस चाबी वाले के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की, जिसने कथित तौर पर सुशांत के कमरे का ताला खोला था या उसकी मौजूदगी में उसका दरवाजा तोड़ा गया था। आजतक सुशांत के फंदे से लटकी हुई कोई तस्वीर सामने नहीं आई है। ऊपर से जबकि उसे पोस्टमॉर्टम के लिए कूपर ले जाने वाले एम्बुलेंस के अटेंडेंट ने उनका शरीर पीला पड़ने और पैर के मुड़े हुए होने का दावा किया है। लेकिन, फिर भी शुरू से ही यह दावा किया जाने लगा था कि उन्होंने खुदकुशी ही कर ली है। बाद में सुशांत के कुछ करीबियों और परिवार वालों ने जो दावे किए हैं, उससे उनकी सुसाइड की थ्योरी संदिग्ध हो गई है और इसी वजह से पीड़ित परिवार इसकी सीबीआई से जांच चाहता है। लेकिन, महाराष्ट्र सरकार किसी भी सूरत में इसके लिए तैयार नहीं है।
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