मोदी की भतीजी Sonal Modi को टिकट ना देकर क्या BJP ने बुरा किया?
क्या सोनल मोदी की गलती ये है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भतीजी हैं ? अहमदाबाद नगर निगम के चुनाव में सोनल मोदी को भाजपा ने इसलिए टिकट नहीं दिया क्यों कि वे प्रधानमंत्री की भतीजी हैं। क्या नरेन्द्र मोदी ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए घर के लोगों के हितों की बलि चढ़ा दी है ? नरेन्द्र मोदी ने ये नियम सिर्फ अपने लिए क्यों बना रखा है ? ताकि वे चुनावी सभाओं में ताल ठोक के ये कह सकें कि उनका कोई सगा-संबंधी राजनीति में नहीं है। सोनल मोदी नरेन्द्र मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी की पुत्री हैं। उन्होंने सिर्फ वार्ड काउंसलर का चुनाव लड़ना चाहा तो कह दिया गया कि बड़े नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट नहीं देने का नियम है। सोनल ने एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता की हैसियत से लोकतंत्र की शुरुआती सीढ़ी पर चढ़ने की इजाजत मांगी थी। लेकिन भाजपा को यह मंजूर न हुआ। अब इसमें सोनल की क्या गलती है कि वे प्रधानमंत्री की रिश्तेदार हैं ? उन्होंने कोई सांसदी या विधायकी के लिए टिकट तो मांगा नहीं था। ये कैसी अंधेरगर्दी है कि मोदी की भतीजी के लिए तो नियम है लेकिन राजनाथ सिंह, हेमा मालिनी, मेनका गांधी, वसुंधराराजे जैसी बड़ी हस्तियों के लिए कोई बंदिश नहीं । भाजपा में यह भेदभावपूर्ण नीति क्यों?
छोटे भाई प्रह्लाद मोदी
प्रह्लाद मोदी, नरेन्द्र मोदी के छोटे भाई हैं। सोनल मोदी प्रह्लाद मोदी की पुत्री हैं। सोनल की उम्र करीब 37-38 साल की है। वे पहले भाजपा की कार्यकर्ता थीं। लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश के लिए राजनीति से दूरी बना ली थी। जब उनके बच्चे बड़े हो गये तो उन्होंने चुनावी राजनीति की पहली सीढ़ी पर चढ़ने की सोची। अहमदाबाद नगरपालिका चुनाव में बोदकदेव वार्ड से उम्मीदवारी के लिए भाजपा में आवेदन दिया। ये सीट महिलाओं के लिए रिजर्व है। लेकिन भाजपा ने टिकट नहीं दिया। प्रह्लाद मोदी या सोनल मोदी ने अपने किसी फायदे के लिए कभी भी पीएम (नरेन्द्र मोदी) के नाम का इस्तेमाल नहीं किया। प्रह्लाद मोदी खुद्दार आदमी हैं। सरकारी सस्ता गल्ला की दुकान चलाते हैं। प्रह्लाद मोदी आखिल भारतीय सस्ता गल्ला दुकानदार संघ के उपाध्यक्ष हैं। वे थोड़े मुखर हैं।
प्रह्लाद मोदी का दिल्ली में प्रदर्शन
उन्होंने 2018 में जनवितरण प्रणाली में गड़बड़ियों का आरोप लगा कर दिल्ली में प्रदर्शन भी किया था। उनका कहना था कि आमतौर पर डीलरों को बेईमान समझा जाता है लेकिन उनकी परिस्थितियों के बार में कोई नहीं सोचता। केन्द्र सरकार राशन पर तो एक लाख 25 करोड़ की सब्सिडी देती है लेकिन डीलरों को कमीशन देने में पैसों की कमी का हवाला देने लगती है। उन्होंने एक किलो अनाज पर ढाई रुपये का कमीशन देने की मांग की थी। उनकी इतनी आमदनी तो होनी चाहिए कि वे ईमानदारी से काम कर सकें। इससे समझा जा सकता है कि प्रह्लाद मोदी की माली हालत कैसी है। उन्होंने कहा, मैं खुद अपनी मेहनत से कमाता-खाता हूं। फिर भी सोनल को टिकट नहीं मिला।
क्या नियम के पालन में अमानवीय हो गये हैं मोदी ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के छोटे भाई प्रह्लाद मोदी की एक और बेटी थीं- निकुंजबेन। 2016 में निकुंजबेन का दिल की बीमारी के कारण 41 साल की उम्र में निधन हो गया था। निकुंजबेन की शादी एक कम्प्यूटर मैकेनिक के साथ हुई थी। निकुंजबेन की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। गरीबी के कारण उनका ठीक से इलाज नहीं हो सका। अहमदाबाद के यूएन मेहता ह्दयरोग संस्थान में ही उनका इलाज चलते रहा। कहा जाता है कि गरीबी से उबरने के लिए निकुंजबेन दिनरात सिलाई के काम में लगी रहती थीं। इसलिए उनकी सेहत गिरती चली गयी। नरेन्द्र मोदी उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे। क्या एक प्रधानमंत्री अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा लिए इतना कठोर हो जाएगा कि वह अपनी भतीजी के समुचित इलाज से भी ध्यान नहीं दे ? अगर नरेन्द्र मोदी अपनी भतीजी को दिल्ली या कहीं और इलाज के लिए ले जाते तो क्या उन पर परिवारवाद का आरोप लगा जाता ? ये तो राजनीति की हद है। उस सिद्ंधात का क्या फायदा जो अमानवीय बना दे ?
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जब भतीजी की मौत हुई
जब निकुंजबेन की मौत हुई उस समय नरेन्द्र मोदी जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए चीन गये हुए थे। वे अपनी भतीजी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके। चीन से ही उन्होंने शोक संदेश भेजा। अगले दिन भारत आने पर वे घर के लोगों से मिलने के लिए अहमदाबाद आये। मान्यता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बन जाता है उसे परिवार से दूरी बना कर रखनी होती है। लेकिन क्या यह दूरी इतनी हो जानी चाहिए कि इंसानियत ही आंख से ओझल हो जाए ? क्या ईमानदार और निष्पक्ष हो कर किसी की मदद नहीं की जा सकती है ?
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जब भतीजी से झपटमारी हुई
भारत के लोग तरक्की कर रहे हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी के भाइयों के दिन जैसे-तैसे कट रहे हैं। 2019 में प्रह्लाद मोदी की एक और पुत्री दमयंती बेन से बदमाशों ने दिल्ली में झपटमारी की थी। वे ऑटो से उतर कर गुजरात भवन जा रही थीं कि बदमाश उनका बैग झपट कर भाग गये थे। एक प्रधानमंत्री की भतीजी से राजधानी दिल्ली में झपटमारी हो गयी तो क्या यह परेशान होने की बात नहीं है ? क्या भाई-भतीजियों के लिए प्रधानमंत्री निवास के दरवाजे बंद हैं ? क्या भाइयों का गरीब रहना ही नरेन्द्र मोदी की राजनीति के लिए हितकर है ? ताकि राजनीतिक मंचों पर ये कहा जा सके कि प्रधानमंत्री के भाई सिर्फ आठ-दस हजार रुपये महीना कमाते हैं और दो कमरे के साधारण घर में रहते हैं। इसका तो मतलब ये हो गया कि नरेन्द्र मोदी की राजनीति उनके भाइयों के विकास में रोड़ा बन गयी।