डायबिटीजः अब इंसुलिन के लिए इंजेक्शन नहीं रहा एकमात्र विकल्प!
बेंगलुरू। डायबिटीज यानी मधुमेह रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए बदलती जीवनशैली प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों में एक बात कॉमन पाई जाती है, वह उनका मोटापा और तेजी से बदलते खानपान और जीवनशैली में मोटापा नामक बीमारी ने सभी को जकड़ना शुरू कर दिया है, क्योंकि मोटापा अमीर और गरीब में भेद तक नहीं करती है। दिलचस्प बात यह है कि विकासशील देश भारत में तेजी से डायबिटीज के रोगी बढ़ रहे हैं और उससे बड़ी बात यह है कि आधे से अधिक डायबिटीज के रोगियों को पता नहीं चल पता है कि वो डायबिटीज नामक रोग की चपेट हैं।
गौरतलब है दुनिया भर में करीब 35 करोड़ लोग मधुमेह का शिकार हैं और उनमें से करीब 6.3 करोड़ डायबिटीज के रोगी अकेले भारत में मौजूद हैं। इस मामले पर वर्ष 2014 में राज्यसभा में दिए एक सवाल के जवाब में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने बताया कि कैंसर, स्ट्रोक और डायबिटीज की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को सभी राज्यों में लागू किया जा चुका है, लेकिन वर्तमान सयम भारत डायबिटीज का राजधानी के रूप में तब्दील हो चुका है, जो यह बताता है कि भारत में डायबिटीज रोगी डायबिटीज रोग की जानकारी और उसके उपचार की सही जानकारी होने से तेजी से बढ़ रहे हैं। इनमें ग्रामीण इलाकों का योगदान सर्वाधिक है।
दरअसल, डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जो पूरी तरह कभी ठीक नहीं होती है मरीज के लिए जरूरी है कि वह ब्लड शुगर की लगातार मॉनीटरिंग करें, क्योंकि ब्लड शुगर को कंट्रोल करके ही डायबिटीज रोग और उसके असर को कम रखा जा सकता है। आमतौर पर डायबिटीज के मरीजों को ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है, लेकिन हाल में ही वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिल गई है, जो डायबिटीज मरीजों के लिए वरदान साबित होने वाला है। यानी अब डायबिटीज के मरीजों इंसुलिन इंजेक्शन का दर्द सहने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि वैज्ञानिकों ने इंसुलिन की ओरल तकनीक विकसित कर ली है।
आविष्कारित इंसुलिन की ओरल तकनीक अब डायबिटीज मरीजों को इंसुलिन के इंजेक्शन से न केवल छुटकारा दिलाएगी बल्कि डायबिटीज मरीजों को इंजेक्शन के दर्द से राहत प्रदान करेगी। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इंसुलिन की ओरल तकनीक को कैप्सूल की तरह खाया जा सकेगा, जो बिना पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाए शरीर में पहुंचकर पीड़ित के ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद करेगी। दरअसल, इंसुलिन हार्मोन को ओरल लेने से पेट में पहुंचते ही एसिड इंसुलिन को असरहीन बना देती थी, जिससे इंसुलिन हार्मोन ब्लड शुगर का कम करने में उतनी कारगर नहीं होती थी, जितनी इंजेक्शन से संभव हो पाता है।
मैसेचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ओरल इंसुलिन जरूरी प्रोटीन्स से भरी एक सामान्य कैपसूल्स की तरह होगी, जिसे सामान्य दवाओं की तरह मरीज खा पाएगा। इससे डायबिटीज के मरीजों की एक बड़ी मुश्किल हल होगी, क्योंकि वर्तमान में डायबिटीज पीड़ितों को इंसुलिन हार्मोन की कमी को पूरा करने के लिए हमेशा अपने साथ इंसुलिन का इंजेक्शन लेकर चलना पड़ता है, लेकिन ओरल इंसुलिन के विकसित होने के बाद सामान्य दवाओं की तरह अब इंसुलिन भी लिया जा सकेगा और वह भी दर्दरहित होगा।
उल्लेखनीय है विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक वर्ष 2030 तक डायबिटीज लोगों की मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण हो सकता है, जिसके लिए तेजी से बदलते खानपान (जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता प्रचलन) और जीवन शैली ( फिजिकल एक्टीविटी में कमी) सीधे-सीधे जिम्मेदार है। इससे लोगों में मोटापे की बीमारी तेजी से फैल रही है, जो डायबिटीज रोगों की चपेट में पहुंचने की आदर्श स्थिति होती है।
आंकड़ों के मुताबिक चीन में डायबिटीज के करीब साढ़े नौ करोड़ मामले हैं जबकि भारत में डायबिटीज रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए करीब 7 करोड़ के आसपास पहुंच गया है। शायद यही कारण है कि भारत को डायबिटीज रोगियों का राजधानी भी करार दिया जा रहा है। शरीर की इंसुलिन पैदा करने की क्षमता खत्म होने से डायबिटीज रोग का जन्म होता है और अभी तक इंसुलिन हार्मोन की कमी की आपूर्ति के लिए पीड़ितों के पाम एकमात्र विकल्प इंजेक्शन ही मौजूद था, लेकिन विकसित ओरल तकनीक पीड़ितों के लिए राहत की खबर लेकर आई है।
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 15 से 49 आयु वर्ग के केवल आधे वयस्क अपनी डायबिटीज यानी मधुमेह की स्थिति के बारे में जानते तक नहीं हैं। यही नहीं, डायबिटीज बीमारी से ग्रस्त सिर्फ एक चौथाई लोगों को इलाज मिल पाता है और उनकी ब्लड शुगर कंट्रोल में रह पाता है। भारत को डायबिटीज रोगियों की राजधानी बनने से रोकने के लिए सरकार को सबसे पहले यह पहल करनी जरूरी है कि लोग डायबिटीज की पहचान कर पाएं।
ऐसा इसलिए क्योंकि लोग डायबिटीज से निपटने की कोशिश तब कर पाएंगे जब उन्हें जानकारी होगी कि वो डायबिटीज से पीड़ित हैं, क्योंकि अभी भी डायबिटीज से ग्रस्त 47.5 फीसदी लोगों को अपनी बीमारी के बारे में पता ही नहीं है, जिससे सही समय पर इलाज नहीं मिलने से रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है।
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इंजेक्शन से क्यों लेना पड़ता था इंसुलिन?
इंसुलिन एक प्रकार का हार्मोन है, जो हमारे शरीर में शुगर को नियंत्रित रखता है और इसके सही इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। जब किसी व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन ठीक से काम नहीं करता है, तो उसके शरीर में बनने वाला शुगर, सेल्स में जाने के बजाय खून में घुलने लगता है, जिसे ब्लड शुगर कहते हैं। इसी हार्मोन को संतुलिन करने के लिए डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है।
पहले पेट में नष्ट हो जाते थे ओरल इंसुलिन
इंसुलिन हार्मोन प्रोटीन्स से बना होता है। इसलिए यदि इसे सामान्य दवाओं की तरह मुंह से लिया जाए, तो सबसे पहले ये आंतों में जाएगा और वहां पाचन-क्रिया के तहत इसका पाचन होगा। इस प्रक्रिया में इंसुलिन हार्मोन्स नष्ट हो जाते हैं। इसलिए ही अब तक इंसुलिन की दवा नहीं बनाई जा सकी थी, और इसे इंजेक्शन के द्वारा लेना पड़ता था।
स्ट्रांग है नई विकसित ओरल इंसुलिन हार्मोन्स
वैज्ञानिक काफी समय से ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए ऐसी दवा बनाना चाहते थे, जिसे टैबलेट की तरह खाया जा सके। वैज्ञानिकों का दावा है कि उनके द्वारा बनाई हुई नई दवा इतनी स्ट्रॉन्ग है कि ये पेट में बनने वाले एसिड से नष्ट नहीं होगी और छोटी आंत तक बिना किसी नुकसान के पहुंच जाएगी। वहां जाकर ये कैप्सूल घुलेगी और शरीर इस दवा का इस्तेमाल कर सकेगा।
छोटा पैकेट बड़ा धमाका है ओरल इंसुलिन
MIT के प्रोफेसर और इस रिसर्च पेपर के लेखक रॉबर्ट लैंगर के मुताबिक ओरल इंसुलिन हार्मोन की खोज में लैब मेंबर्स ने आखिर समय में सफलता पाई है, जो भविष्य में डायबिटीज के मरीजों समेत अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए काफी लाभदायक होने वाली है। उन्होंने बताया कि ओरल इंसुलिन कैप्सूल की साइज 30 मिलीमीटर है, जिसमें पर्याप्त इंसुलिन है, जितना कि एक डायबिटीज के मरीज के लिए जरूरी है। खास बात यह है कि विकसित ओरल इंसुलिन हार्मोन कैप्सुल तेजी से घुलकर खून में पहुंच जाती है, जिससे डायबिटीज के मरीज को तुरंत लाभ मिलेगा।