सेठ जीवन के घर चोरी के इरादे से गए थे धर्मेंद्र, महामारी पर बनी फिल्म से बने सुपर स्टार
नई दिल्ली। कोरोना की महामारी से पूरी दुनिया तबाह है। भारत में भी अब इसका खौफ बढ़ गया है। मौत का तांडव जारी है फिर भी कुछ लोग धोखा और फरेब से बाज नहीं आ रहे। इस महामारी के समय कुछ खुदगर्ज लोग फर्ज के आड़े आ रहे हैं। जिंदगी कुदरत की सबसे बड़ी नेमत है। इसे बचाने की हर मुमकिन कोशिश होनी चाहिए। ये कहानी फिल्मी है लेकिन महामारी के वक्त इंसान के बनते बिगड़ते रिश्तों की एक मुकम्मल तस्वीर भी है। भारत की इस सुपरहिट फिल्म की थीम प्लेग पर आधारित है। इस गोल्डेन जुबली फिल्म ने ही धर्मेंद्र को हिन्दी सिनेमा का सुपर स्टार बनाया था। इसने बॉक्सअफिस पर ऐसा तहलका मचाया था कि इसका तमिल और तेलुगू रिमेक बनाया गया। तमिल वर्जन में धर्मेंद्र की भूमिका एमजी रामचंद्रन और तेलुगू वर्जन में एनटी रामाराव ने निभायी थी। इस फिल्म का नाम है फूल और पत्थर जो 1966 में रिलीज हुई थी। ओपी रल्हन की ये फिल्म भारतीय सिनेमा की यादगार फिल्मों में एक है।
फूल और पत्थर
इस फिल्म में धर्मेंद्र ने एक चोर का किरदार निभाया है जिसका नाम शाका है। इस चोर गिरोह का सरगना मदनपुरी है। एक दिन मदनपुरी, धर्मेंद्र (शाका) को एक सेठ के घर चोरी करने के लिए भेजता है। शाका उस गांव में पहुंचता है। शाका अपने एक दोस्त (ओपी रल्हन) से मिलता है जो मजमा लगा कर लोगों को ठगता है। शाका सेठ के घर में घुसने के लिए रात का इंतजार कर रहा होता है। लेकिन तभी पुलिस की एक जीप लाउडस्पीकर से गांव में प्लेग फैलने की चेतावनी देते हुए गुजरती है। सभी लोगों को जल्द से जल्द घर छोड़ने का फरमान दिया जाता है। इस बीच कई लोग प्लेग से मरने लगते हैं। महामारी फैलते ही गांव के लोग जैसे-तैसे घर छोड़ कर भागने लगते हैं। तब शाका का दोस्त भी उसे भागने की सलाह देता है। वह शाका से कहता है कि जिंदा बचे तो कुछ भी कर लेंगे। अभी जिंदा रहना सबसे जरुरी है। लेकिन शाका(धर्मेंद्र) चोरी के इरादे पर अटल रहता है।
महामारी और इंसान की फितरत
महामारी के डर से पूरा गांव खाली है। शाका सेठ जीवन दास (जीवन) की हवेली में दाखिल होता है। वह वेंटिलेटर तोड़ कर कमरे में आता है और एक-एक कर तिजोरियों और आलमारियों को खोलता है। लेकिन उनमें कुछ भी नहीं होता। सारे गहने और पैसे सेठ जीवन लाल अपने साथा ले गया होता है। निराश शाका ऊपरी मंजिल पर पहुंचता है। वहां भी कुछ नहीं मिलता। तभी शाका को कराहने की आवाज सुनायी पड़ती है। वह हैरान होता है कि इस महामारी में भला कौन घर में हो सकता है। वह रौशनदान से झांक कर देखता है तो पलंग पर लेटी हुई एक बीमार महिला (मीना कुमारी) दिखायी पड़ती है। शाका कमरा खोल कर वहां पहुंचता है। आहट सुन कर महिला पानी मांगती है। शाका उसे पानी पिलाता है। तब शाका उस महिला से पूछता है, तुम कौन हो और यहां क्यों पड़ी हो। तब वह कहती है कि मेरा नाम शांति है और मैं सेठ जीवन लाल की बहू हूं। मेरे पति की मौत हो चुकी है। महामारी फैली तो घर के लोग मुझे छोड़ कर चले गये। फिर शांति शाका से पूछती है तुम कौन हो ? तब शाका कहता है कि वह एक चोर है। चोरी के इरादे से ही इस घर में आया था लेकिन कुछ नहीं मिला।
महामारी और खुदगर्जी
मीना कुमारी की हालत देख कर शाका (धर्मेंद्र) चोरी की बात भूल जाता है। वह बुखार में तप रही शांति (मीना कुमारी) की सेवा में जुट जाता है। शांति के इलाज के लिए वह एक वैद्य को बुलाता है। शाका को इस बात से बहुत झटका लगता है कि सेठ जीवन दास ने शांति को महामारी के समय इसलिए मरने के लिए छोड़ दिया ताकि उससे छुट्टी मिल सके। सेठ गहने-पैसे तो अपने साथ ले गया लेकिन बहू को मरने के लिए घर में छोड़ दिया। धीरे- धीरे शांति ठीक हो जाती है। जब महामारी का असर कम होता है तो सेठ जीवन दास, उसकी पत्नी (ललिता पवार) और उसका छोटा बेटा (राम मोहन) घर लौटते हैं। घर आने के बाद सेठ और उसकी पत्नी शांति को जिंदा देख कर हैरान रह जाते हैं। वे यही सोच रहे थे कि शांति महामारी में मर-खप गयी होगी। लेकिन एक चोर (शाका) उसके लिए देवदूत बन कर आ गया। इसके बाद सेठ, उसकी पत्नी और उसका छोटा बेटा शांति पर जुल्म ढाने लगते हैं। तब शाका, शांति को अपने पास ले आता है और एक लंबे संघर्ष के बाद उसे नयी जिंदगी देता है।
कालजयी फिल्म है फूल और पत्थर
1966 में रिलीज हुई फूल और पत्थर ने कामयाबी के कई रिकॉर्ड बनाये थे। धर्मेंद्र 1960 से फिल्मों में सक्रिय थे पर कामयाब एक्टर नहीं बन पाये थे। लेकिन जैसे ही फूल और पत्थर रिलीज हुई धर्मेंद्र सुपर स्टार बन गये। कई सिनेमा हॉल में इस फिल्म ने गोल्डन जुबली मनायी। धर्मेंद ने एक सीन में मीना कुमारी को ढकने के लिए अपनी शर्ट उतार दी थी। हिन्दी सिनेमा में पहली बार कोई हीरो पर्दे पर शर्टलेस हुआ था। मजबूत कदकाठी के धर्मेंद्र को हीमैन कहा जाने लगा। निर्माता निर्देशक के रूप में ओपी रल्हन बुलंदियों पर पहुंच गये। जब ये फिल्म बन कर तैयार हुई थी तब कई वितरकों ने प्लेग और एक चोर को हीरो बनाये जाने की थीम पर एतराज जताया था। लेकिन रल्हन को अपने इस प्रयोग पर पूरा भरोसा था। फिल्म ने रिकॉर्डतोड़ कमाई की। इसकी स्टोरी लाइन की हर तरफ तारीफें होने लगीं। इसकी कामयाबी को तमिल, तेलुगू और मलयालम में भी भुनाया गया। उस समय एमजी रामचंद्रन तमिल सिनेमा के सबसे बड़े स्टार थे। 1968 में इसकी तमिल रिमेक बनी जिसका नाम था ‘ओली बिलाकू'। इस फिल्म में एमजीआर ने शाका का किरदार निभाया था। फिल्म फूल और पत्थर की तेलुगू रिमेक ‘निंदु मानासुलू' के नाम से बनी। इस फिल्म में शाका का किरदार एनटी रामाराव ने अदा किया था। मलयालम में यह ‘पुथिया वेलिचम' के नाम से बनी थी। ये तीनों फिल्में भी हिट साबित हुईं थीं।
शिकारा: विस्थापन के दर्द के बीच मोहब्बत बढ़ाती एक प्रेम कहानी