अगर मोदी बहुमत नहीं ला पाते हैं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
नई दिल्ली। Lok sabha elections 2019 का मतदान सम्पन्न हो चुका है। इसी के साथ एग्जिट पोल भी आ गए हैं। अब 23 मई को फाइनल रिजल्ट आने हैं। फाइनल रिजल्ट क्या होगा और किसके पक्ष में होगा, कौन कहाँ से चूक गया आदि चीजों को जान लेने का इंतजार करना किसी रोमांच से कम नहीं है। इस दौरान हर पार्टी के समर्थक गुणा भाग करके अपना-अपना आंकलन कर रहे हैं। एग्जिट पोल भी सर्वेक्षण के गुणा भाग ही हैं।
Exit Polls क्या कहता है?
अधिकतर न्यूज चैनल्स और सर्वे के आंकड़े ये बता रहे हैं कि इस बार भी बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन प्रचंड बहुमत से सरकार में आ सकता है। इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया, सीवोटर, न्यूज 18-IPSOS, TIMES NOW-VMR, एबीपी-नीलसन आदि के सर्वे में एनडीए को बहुमत मिलने की बात कही गयी है।
क्या Exit Polls हमेशा सही ही होता है?
वैसे एग्जिट पोल का अनुमान कई बार गलत भी साबित हुआ है। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में अनुमान गलत हुये थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में Exit poll ने 'इंडिया शाइनिंग' के सहारे NDA की सत्ता में वापसी का अनुमान लगाया था। औसत रूप से एग्जिट पोल ने NDA को 252 सीटें मिलने की बात कही थी जबकि परिणाम में 187 सीटें मिली। ऐसा ही 2009 के लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल में था। NDA को 187 और UPA को 196 सीटें मिलने का अनुमान बताया गया था, लेकिन वास्तविक रिजल्ट में NDA को 159 और UPA को 262 सीटें मिली थी। हाल के चुनावों में उत्तरप्रदेश, पंजाब, बिहार और दिल्ली में एक्जिट पोल, अनुमानों से मेल नहीं खाए थे। यानी कि यह कहा जा सकता है की एग्जिट पोल का रडार हमेशा जनता के मूड के स्विंग को नहीं पकड़ पाती है।
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मोदी ने किन मुद्दों पर भरोसा जताया है?
वैसे तो चुनाव सम्पन्न हो जाने और एग्जिट पोल के रुझान आ जाने के बाद, लोकसभा चुनाव के मुद्दे क्या रहे जिनपर चुनाव लड़ा गया जैसी बातें करना ज्यादा प्रासंगिक नहीं है। लेकिन हाँ यह लोकसभा चुनाव इस मायने में अनूठा जरूर है कि इसमें आम जनता से जुड़े मुद्दे जिसमें रोटी-बेटी का संबंध होता है वह हाशिये पर रहा है। सत्ताधारी पार्टी ने अपने कार्यकाल में किये गये विकास की उपलब्धि के मुद्दे पर राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, सैनिक, बालाकोट, एयर स्ट्राइक, पुलवामा, पाकिस्तान आदि जैसे मुद्दों को तरजीह दी है। और Exit Poll के अनुमानों के आधार पर देखें तो जबरदस्त सफल होती भी दिख रही है।
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विपक्ष मुद्दों को कितना भुना सका?
विपक्ष ने हालांकि जनसरोकार के मुद्दे उठाए हैं जिसमें न्यूनतम आय योजना, नये स्कूल-कॉलेज, इंस्टीट्यूशन, किसान, रोजगार, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि जैसी मूलभूत बातें थीं लेकिन इन मुद्दों की पहुंच भाजपा के मुद्दों के जैसे ही आम लोगों तक हो पायी है, इसमें संदेह है। एग्जिट पोल के इशारे तो यही कह रहे हैं।
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यह लोकसभा चुनाव किन मायनों में अलग है?
Exit Poll 2019 को पीछे रखते हुए Lok sabha Elections 2019 की तुलना लोकसभा चुनाव 2014 से करें तो स्थितियों में फर्क नज़र आता है।
2014 लोकसभा चुनाव में मोदी ने प्रचंड बहुमत से सत्ता हासिल की थी। तब मोदी का गुजरात मॉडल सुपरहिट था। मोदी जनमानस में विकास पुरुष थे। यूपीए की सरकार पर नुकीला वार करने में मोदी हर समय सजग रहते थे। वह सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक थे। मोदी कहा करते थे कि मैं होता तो ऐसा न होता। उनकी ये बातें आम पब्लिक को सीधे रिलेट करती थी। और जनता ने इसका भरपूर ईनाम मोदी को दिया भी था।
लेकिन 2019 Lok sabha elections में परिस्थितियां अलग हैं। मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार चलाई है। अब जनता के सामने उनके कार्यकाल का लेखा-जोखा है। लेकिन मोदी के चुनावी मुद्दे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि, उन्हें अपने कार्यकाल में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के बेहतरी के लिये, किये गये कार्यों की उपलब्धि बताने की उतनी परवाह नहीं है। नोटबन्दी तक के बड़े फैसले की चर्चा भी गायब ही रही है। इन सब मुद्दों के ऊपर चुनाव के मध्यांतर में मोदी ने कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल के गड़े मुर्दे उखाड़कर उन पर राष्ट्रवाद का तड़का लगाकर आम जनता के भावनाओं को भुनाने का प्रयास किया था।
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क्या मोदी फिर से सफल होते दिखते हैं?
एग्जिट पोल के अनुमान यह दिखाते हैं कि मोदी इसमें भी सफल रहे हैं। वह मुद्दों को अपने तरीके से उछालना भी जानते हैं और इसे भुनाना भी। इसके अलावे शासन के पांच वर्षों में सोशल मीडिया समेत देश- विदेश में अपनी छवि बनाने की भरपूर कोशिश भी मतदाताओं में उनके प्रति एक सकारात्मक धारणा बनाने में मददगार साबित हुआ है।
मोदी अगर बहुमत नहीं ला पाते हैं तो कौन जिम्मेदार है?
दूसरी तरफ, विपक्ष भी जनता के बीच मोदी सरकार के उन मुद्दों को सही से उभार नहीं सका जिस पर मोदी सरकार बैकफुट पर थी। मोदी सरकार के खिलाफ एकजुटता का संकल्प भी आपसी महत्वाकांक्षा के चलते उतनी मजबूती से महागठबंधन का रूप नहीं ले सका जितने की उम्मीद की जा रही थी। कहीं न कहीं विपक्ष मोदी के उछाले गये मुद्दों में उलझता दिखा है। और भाजपा मोदी के सहारे फ्रंटफुट पर रही है। इसलिए अगर मोदी फिर से सत्ता में नही आते हैं या अपने गठबंधन को बहुमत नहीं दिला पाते हैं तो वजह विपक्ष से ज्यादा खुद उनकी होगी। मतदाताओं का यह संदेश होगा कि मोदी के तमाम मैनेजमेंट में चकाचौंध होने के वाबजूद उनका कामकाज असरदार नहीं रहा है।
अब किस पार्टी ने जीत की फिनिशिंग लाइन को आधिकारिक रूप से छू लिया है इसका पता 23 मई को ही चलेगा। इस दौरान lok sabha elections 2019 का रोमांच चरम पर रहेगा इसमें कोई संशय नहीं है।
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