क्या संवैधानिक होता है डिप्टी सीएम का पद? पढ़िए इसके पीछे का इतिहास
गुजरात में एक बार फिर कमल खिलने के साथ नितिन पटेल ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। मंगलवार को हुई शपथ ग्रहण समारोह में नितिन पटेल ने एक बार फिर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पद संवैधानिक नहीं है।
नई दिल्ली। गुजरात में एक बार फिर कमल खिलने के साथ नितिन पटेल ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। मंगलवार को हुई शपथ ग्रहण समारोह में नितिन पटेल ने एक बार फिर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पद संवैधानिक नहीं है। इस पद पर आसीन व्यक्ति को मुख्यमंत्री की शक्तियां प्राप्त नहीं होतीं और न ही वो मुख्यमंत्री अनुपस्थिति में प्रदेश की अगुवाई कर सकता है।
उप-प्रधानमंत्री के बाद बना उप-मुख्यमंत्री का पद
उप-मुख्यमंत्री पद की शुरुआत उप-प्रधानमंत्री पद से हुई थी। पहले उप-प्रधानमंत्री पद की उत्पत्ति हुई, इसके बाद उप-मुख्यमंत्री का पद बना। वैसे तो देश के पहले उपप्रधानमंत्री होने का गौरव सरदार वल्लभाई पटेल को हासिल है लेकिन इसका मूल विवाद 1989 में वीपी सिंह सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शुरू हुआ। तब राष्ट्रपति रहे आर.वेंकटरमण ने अपनी किताब 'कमिशन फॉर ऑमिशन ऑफ इंडियन प्रेजिडेंट' में लिखा है कि देवी लाल को मंत्री पद की शपथ दिलाई जा रही थी लेकिन वो प्रधानमंभी बोल रहे थे।
उप-प्रधानमंत्री पर जब अड़ गए देवी लाल
पूर्व राष्ट्रपति ने लिखा, 'मैंने अपने सचिव को वीपी सिंह को ये संदेश देने के लिए कहा कि देवी लाल अभी मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं और बाद में उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। फिर जल्दी में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन हुआ।' वेंकटरमण ने लिखा है कि वीपी सिंह के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जब देवी लाल के शपथ लेने की बारी आई तो वो 'उप प्रधानंत्री' पर अड़े रहे। 'मैं उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला रहा था, लेकिन वो उन्होंने उप-प्रधानमंत्री बोला। मैंने उन्हें दोबारा मंत्री कहकर सुधारा,लेकिन उन्होंने फिर 'उप-प्रधानमंत्री' बोला।'
सुप्रीम कोर्ट ने पद को लेकर कही ये बात
आर वेंकटरमण ने देवी लाल पर अपनी किताब में आगे लिखा है, 'शपथ ग्रहण का सीधा प्रसारण चल रहा था और मैं कोई दृश्य नहीं पैदा करना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें जो वो चाहते थे, वैसा करने दिया।' इस तरह से देवी लाल शपथ लेकर उपमुख्यमंत्री बन गए। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन उच्चतम न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल सोली सोराबाजी के तर्क को सही माना। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि उप-प्रधानमंत्री काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स के सदस्य हैं और उन्होंने केवल मंत्री की बजाए प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया है।
इसके बाद कई बने उप-प्रधानमंत्री और उप-मुख्यमंत्री
अटॉर्नी जनरल सोली सोराबाजी ने कोर्ट को कहा कि उप-प्रधानमंत्री का संविधान में कोई प्रमाण नहीं है और देवी लाल एक मंत्री की तरह ही रहेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने माना की ये पद उप-प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री की शक्तियां नहीं देता। इस तरह बाद में देश में कई उप-प्रधानमंत्री रहे और इसी की तर्ज पर उप-मुख्यमंत्री पद की उत्पत्ति हुई।