दिल्ली: क्या सोनिया के फरमान के बाद कांग्रेस के इस दिग्गज को बेटे के खिलाफ ही लड़ना होगा चुनाव?
नई दिल्ली- कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक फरमान की वजह से दिल्ली में कांग्रेस एक बड़े नेता महाबल मिश्रा के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव में दिल्ली के अपने सभी उम्मीदवारों से कहा है कि वह विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमा सकते हैं। लेकिन, महाबल मिश्रा के सामने दिक्कत ये है कि जिस विधानसभा सीट से वह पिछला चुनाव लड़े थे और वहां से दो बार विधायक भी रह चुके हैं, उस सीट पर इस बार उनका बेटा चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में कांग्रेस के पूर्व सांसद के सामने धर्मसंकट ये है कि वह पार्टी अध्यक्ष से क्या कहेंगे या फिर कुछ नहीं कहेंगे तो अपने बेटे के सामने ही चुनावी मैदान में ताल ठोकने के लिए तैयार होंगे?
महाबल का बेटा द्वारका सीट से 'आप' का उम्मीदवार
कांग्रेस नेता महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पश्चिमी दिल्ली की द्वारका सीट से टिकट दिया है। उन्होंने सोमवार को ही सोनिया की कांग्रेस का हाथ छोड़कर केजरीवाल की झाड़ू थामी थी। लेकिन, केजरीवाल को 24 घंटे भी नहीं लगे और उन्होंने उनको उनके पिता की परंपरागत सीट से उम्मीदवार बनाने का फैसला कर लिया। जब विनय मिश्रा को टिकट देने की घोषणा की गई तब तक यह साफ नहीं हुआ था कि लोकसभा चुनाव में हार चुके महाबल मिश्रा को भी कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं को दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने को भी कह दिया है। यह फरमान दिल्ली की 7 में से 6 लोकसभा सीटों के उम्मीदवारों पर भी लागू होता है, जिसमें पश्चिमी दिल्ली से चुनाव लड़ने वाले पूर्व कांग्रेसी सांसद महाबल मिश्रा भी शामिल हैं। यही स्थिति उनके लिए भारी मुश्किलों की वजह बन गई है कि वह आलाकमान से क्या कहेंगे? सातवीं सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चुनाव लड़ीं थीं, जिनका निधन हो चुका है।
बेटे के खिलाफ मैदान में उतरेंगे महाबल मिश्रा?
अगर महाबल मिश्रा को सोनिया का निर्देश मानना पड़ा तो उन्हें अपने बेटे के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ सकता है। तथ्य यह है कि वे द्वारका सीट से पहले दो बार विधायक रह चुके हैं और 2015 के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने यहीं से भाग्य आजमाया था, लेकिन उन्हें हार मिली थी। वैसे अगर आलाकमान से सहूलियत मिल गई तो वे पश्चिमी दिल्ली की किसी दूसरी विधानसभा सीट से भी चांस ले सकते हैं, क्योंकि वे क्षेत्र के कद्दवार नेता हैं और पूर्वांचली वोटरों में उनका अच्छा-खासा प्रभाव है। ऐसे में अगर वे आलाकमान को राजी करने में कामयाब हो जाते हैं तो उनके सामने पालम या जनकपुरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का विकल्प बेहतर हो सकता है। इसलिए अभी इलाके के सियासी गलियारों में यह चर्चा दिलचस्प है कि वह किसी सीट से चुनाव लड़ेंगे या फिर कांग्रेस में रहकर ही द्वारका में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए काम करेंगे।
पिछला तीन चुनाव हार चुके हैं
महाबल मिश्रा 2009 में पश्चिमी दिल्ली से सांसद चुने गए थे। जबकि, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर की वजह से वे क्रमश: तीसरे और दूसरे स्थान पर रहे। पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में उनपर द्वारका सीट के लिए दांव लगाया, लेकिन केजरीवाल की लहर में वे उसमें भी फेल रहे। बिहार के मधुबनी जिले में जन्मे महाबल मिश्रा 1997 में पहली बार दिल्ली की डाबरी सीट से पार्षद चुने गए थे। लेकिन, एक साल बाद ही 1998 के विधानसभा चुनाव में उन्हें नसीरपुर विधानसभा क्षेत्र की जनता ने विधायक बना दिया। बाद में वह 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में लगातार द्वारका से विधायक चुने जाने में कामयाब रहे।
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