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दिल्ली दंगा: जूलियो रिबेरो को जाँच में इंसाफ़ होता क्यों नज़र नहीं आता

भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर्ड अधिकारी जूलियो रिबेरो दिल्ली दंगों में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हैं.

By सलमान रावी
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दिल्ली दंगा: जूलियो रिबेरो को जाँच में इंसाफ़ होता क्यों नज़र नहीं आता

दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस की चार्जशीट इस समय चर्चा बटोर रही है. पिछले दिनों इसी मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को भी गिरफ़्तार किया गया.

दिल्ली पुलिस के इस क़दम की कई हलकों में कड़ी आलोचना की गई. देश के नौ पूर्व आईपीएस अधिकारियों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव को पत्र लिखकर दिल्ली दंगों की जाँच पर सवाल उठाए हैं.

लेकिन इन नौ पूर्व आईपीएस अधिकारियों से अलग भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर्ड अधिकारी जूलियो फ्रांसिस रिबेरो ने भी दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों लिया है. दिल्ली पुलिस कमिश्नर से उनका पत्राचार ने भी ख़ूब सुर्ख़ियाँ बटोरीं.

रिबेरो ने अपने पत्र में दिल्ली पुलिस की जाँच पर सवाल उठाए, तो जवाब दिल्ली पुलिस कमिश्नर का भी आया. उन्होंने कहा- हमारी जाँच तथ्यों और सबूतों पर आधारित होती है. यह इससे प्रभावित नहीं होती कि जाँच के दायरे में आया शख़्स कितना नामी है या कितने बड़े व्यक्तित्व वाला है.

इस साल फ़रवरी के आख़िरी हफ़्ते में दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे. दिल्ली पुलिस का कहना है कि मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 12 हिंदू थे. एक व्यक्ति की पहचान नहीं हो पाई थी.

हाल ही में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 17 हज़ार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है, जिनमें 15 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है. अभियुक्तों पर यूएपीए, आईपीसी और आर्म्स एक्ट के तहत कई धाराएँ लगाई गई हैं.

क्या कहते हैं रिबेरो

दिल्ली दंगा: जूलियो रिबेरो को जाँच में इंसाफ़ होता क्यों नज़र नहीं आता

बीबीसी के साथ ख़ास बातचीत में रिबेरो ने कहा कि अब वो दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के साथ पत्राचार को विराम देना चाहते हैं. उनका कहना है कि जिन बातों की तरफ़ दिल्ली पुलिस का वो ध्यान आकृष्ट करना चाहते थे, वो उन्होंने कर दिया है.

उन्होंने कहा कि सिर्फ़ इंसाफ़ होना मायने नहीं रखता, जब तक कि वो होता हुआ ना दिखे. वो कहते हैं कि दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में जो पुलिस जाँच का तरीक़ा अब तक रहा है, उससे ऐसा होता हुआ बिल्कुल नहीं दिखता.

अलबत्ता उनके हिसाब से दिल्ली पुलिस की कार्रवाई ही कठघरे में खड़ी नज़र आ रही है. जूलियो रिबेरो का मानना है कि जिन आशंकाओं को उन्होंने ख़त में ज़ाहिर किया था, उस पर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया.

ये पहली बार नहीं है जब जूलियो रिबेरो ने किसी उच्चासीन पदाधिकारी को चिट्ठी लिखी हो. जूलियो रिबेरो का कहना है कि उनके साथ कुछ सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं, जिन्होंने 'कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप'नाम की एक संस्था बनाई है.

जूलियो रिबेरो कहते हैं कि पिछले तीन साल से ये ग्रुप ऐसे मुद्दों को लेकर हस्तक्षेप करता रहा है, जहाँ लगता है कि संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार किया जा रहा है.

वो राष्ट्रपति से लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे कई लोगों को पिछले तीन साल से ख़त लिखते रहे हैं. ये बात और है कि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को लिखी उनकी चिट्ठी की ख़ूब चर्चा हुई है.

निष्पक्ष जाँच की मांग

दिल्ली दंगा: जूलियो रिबेरो को जाँच में इंसाफ़ होता क्यों नज़र नहीं आता

अपनी पहली चिट्ठी का ज़िक्र करते हुए जूलियो रिबेरो कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से ये 'आग्रह' किया था कि दिल्ली दंगों के संबंध में जो 753 प्राथमिकियाँ दर्ज की गई हैं, उनकी निष्पक्ष जाँच हो ताकि धर्म के आधार पर कोई भेदभाव ना किया जाए.

वो बताते हैं, "इसके अलावा मैंने भारतीय जनता पार्टी के तीन नेताओं का नाम भी लिया, जिनके ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने कोई संज्ञान नहीं लिया, जबकि उन पर भड़काने के आरोप हैं. लेकिन पुलिस ने प्राथमिकता के आधार पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों को ही दंगों का अभियुक्त बनाया और उन्हें गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया."

रिबेरो का इशारा बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के बयानों की ओर था, जिन पर आरोप लगे थे कि उन्होंने भड़काऊँ भाषण दिए.

दिल्ली दंगा: जूलियो रिबेरो को जाँच में इंसाफ़ होता क्यों नज़र नहीं आता

इस साल जनवरी में बीजेपी सांसद और केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री और दिल्ली चुनाव में बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे अनुराग ठाकुर ने रैली के दौरान लोगों से नारे लगवाए- 'देश के गद्दारों को, गोली मारो ....को.'

चुनाव आयोग ने अनुराग ठाकुर पर तीन दिन का प्रतिबंध भी लगाया था. वही परवेश वर्मा ने भी नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. चुनाव आयोग ने उन पर भी चार दिनों के लिए चुनाव प्रचार करने की रोक लगाई थी.

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दूसरी ओर 23 फ़रवरी के दिन मौजपुर में कपिल मिश्रा ने सीएए के समर्थन में एक रैली में कहा था, ''डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं. मैं आप सबके बिहाफ़ पर कह रहा हूँ, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे अगर रास्ते ख़ाली नहीं हुए तो... ट्रंप के जाने तक आप (पुलिस) जाफ़राबाद और चांदबाग़ ख़ाली करवा लीजिए ऐसी आपसे विनती है, वरना उसके बाद हमें रोड पर आना पड़ेगा. ''

इसी दिन शाम में सीएए समर्थकों और एंटी सीएए प्रदर्शनकारियों के बीच पत्थरबाज़ी हुई, और यहीं से दिल्ली दंगों की शुरुआत हुई थी.

लेकिन दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किए गए एक हलफ़नामे में कहा कि अब तक उन्हें ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सके कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर ने किसी भी तरह लोगों को 'भड़काया हो या दिल्ली में दंगे करने के लिए उकसाया हो.'

जवाब

जूलियो रिबेरो की चिट्ठी का जवाब दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने दिया और कहा कि वो (रिबेरो) आरोपपत्रों को बिना पढ़े ही दिल्ली पुलिस की जाँच पर टिप्पणी कर रहे हैं.

यही सवाल जब बीबीसी ने जूलियो रिबेरो से पूछा तो वो कहते हैं कि दिल्ली पुलिस की अबतक की कार्रवाई बताती है कि वो पक्षपात से काम कर रही है.

जूलियो रिबेरो को जब बताया गया कि जिन 1751 लोगों को दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है, उनमें दोनों धर्म के लोग हैं, तो रिबेरो कहते हैं कि उन्हें ये देखने का इंतज़ार रहेगा कि दिल्ली पुलिस अपनी जाँच में किन लोगों के ख़िलाफ़ क्या सबूत अदालत के सामने पेश करती है.

ये पूछे जाने पर कि क्या वास्तविकता की बजाय रिबेरो उन बातों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनका प्रचार किया जा रहा है तो उन्होंने 'यूएपीए' यानी 'गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम' क़ानून के तहत दिल्ली पुलिस की कार्रवाई का ज़िक्र किया.

पुलिस की कार्यशैली

उत्तर पूर्वी दिल्ली का सीलमपुर इलाक़ा
Getty Images
उत्तर पूर्वी दिल्ली का सीलमपुर इलाक़ा

हाल ही में मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली दंगों पर अपनी स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं.

रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस पर दंगे ना रोकने, उनमें शामिल होने, फ़ोन पर मदद मांगने पर मना करने, पीड़ित लोगों को अस्पताल तक पहुंचने से रोकने, ख़ास तौर पर मुसलमान समुदाय के साथ मारपीट करने जैसे संगीन आरोप लगाए गए हैं.

दिल्ली दंगों पर अपनी जाँच रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप

हालाँकि दिल्ली पुलिस कई मौक़ों पर इन आरोपों से इनकार कर चुकी है और रिबेरो को अपने पत्र में भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने यही कहा कि दिल्ली पुलिस की जाँच तथ्यों और सबूतों पर आधारित है.

जूलियो रिबेरो कहते हैं, "दंगों के संभावित षड्यंत्र रचने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने जिन लोगों के ख़िलाफ़ मामला क़ायम किया है, उनमें ज़्यादातर महिलाएँ और पीएचडी के छात्र हैं. क़ानून के प्रावधानों के अनुसार अगर किसी को गिरफ्तार किया जाता है, तो तीन महीनों के अंदर पुलिस को आरोपपत्र अदालत में दायर करना होता है. तीन महीने से दो दिन पहले इस मामले में अगर किसी की गिरफ़्तारी की जाती है तो उसका मतलब है कि जो पहले से जेल में हैं, उन्हें फिर तीन और महीने जेल में ही रहना होगा. कुछ एक मामलों में तीन महीने पूरे होने से ठीक दो दिन पहले ही पुलिस ने किसी और को गिरफ्तार किया. ये कार्यशैली की तरफ़ साफ़ इशारा है."

दिल्ली दंगों में
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दिल्ली दंगों में

सिर्फ 'यूएपीए' ही नहीं जूलियो रिबेरो ने सामजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद को 'गांधीवादी' बताते हुए उनको इन मामलों में खींचे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

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हालाँकि दिल्ली पुलिस ने कहा है कि योगेंद्र यादव, येचुरी, अपूर्वानंद और जयती घोष दिल्ली दंगों के मामलों में अभियुक्त नहीं हैं.

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रिबेरो कहते हैं, "मैंने तो इन्हें हमेशा शांति की बात करते हुए ही देखा और सुना है. इन पर ये आरोप कैसे लगा, इसे दिल्ली पुलिस के बड़े अधिकारियों को फिर से देखना चाहिए."

वहीं अपने पत्र में दिल्ली पुलिस के कमिश्नर ने रिबेरो से कहा कि अगर किसी को पुलिस की जाँच में त्रुटियाँ नज़र आतीं हैं, तो वो अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं.

उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कई शक्तियाँ ऐसी हैं, जो दिल्ली पुलिस की 'ख़राब छवि प्रस्तुत करने के लिए बिल्कुल ग़लत धारणाओं पर आधारित तथ्यहीन बिन्दुओं' का प्रचार कर रहीं हैं.

जूलियो रिबेरो मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके हैं. साथ ही वो गुजरात और पंजाब पुलिस के महानिदेशक भी रह चुके हैं.

BBC Hindi
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English summary
Delhi violence: why Julio Ribeiro is not judged in the investigation
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