जस्टिस मुरलीधर: जब गार्ड के कुर्सी खींचने पर तमतमा गए थे, दिए कई फैसले जो नजीर बने
नई दिल्ली। दिल्ली में जारी हिंसा पर सुनवाई कर रहे दिल्ली हाई कोर्ट के जज, जस्टिस डॉक्टर एस मुरलीधर का ट्रांसफर कर दिया गया है। जस्टिस मुरलीधर अब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे। उनके ट्रांसफर को जहां सरकार सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा बता रही है तो वहीं कुछ लोगों में तबादले को लेकर खासा गुस्सा है। जस्टिस मुरलीधर को जो लोग जानते हैं उन्हें मालूम है कि वह कभी भी ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते हैं, जो उनके पक्ष में बात करने वाले होते हैं। बतौर जज उनकी एक लंबी फैन फॉलोइंग है और लोग उन्हें काफी पसंद करते हैं।
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फिटनेस का ध्यान रखने वाले जस्टिस
वेबसाइट द प्रिंट की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया है कि जस्टिस मुरलीधर जो अपनी फिटनेस को लेकर खासे फिक्रमंद रहते हैं, रोजाना लोधी गार्डन के करीब सुबह वॉक और जॉगिंग पर जाना नहीं भूलते हैं। यहां तक की रविवार को जब छुट्टी होती है तो उस दिन भी वह साथी जजों के साथ साइकिल के साथ सैर पर निकल जाते हैं। जस्टिस मुरलीधर ने अपनी लॉ प्रैक्टिस साल 1984 में शुरू की थी और उनकी केस स्टडीज में भोपाल गैस पीड़ितों के केसेज तो शामिल थे ही साथ ही नर्मदा पर बांधों की वजह से विस्थापित हुए लोगों के केस भी उनके खाते में हैं।
हाई प्रोफाइल केसेज की सुनवाई
जस्टिस मुरलीधर को देश के कुछ हाई प्रोफाइल केसेज को लड़ने का क्रेडिट दिया जाता है। टेक्लोनॉजी लॉ एंड प्राइवेसी राइट्स एक्सपर्ट उषा रमानाथन के साथ उनकी शादी हुई है। उनके करीबियों को याद है कि कैसे एक बार केस की सुनवाई के दौरान कोर्टरूम के अंदर जब गार्ड ने उनके लिए कुर्सी खींची थी तो उस समय कैसे उन्होंने गार्ड को ऐसा करने से मना कर दिया था। बाद में उन्होंने खुद अपनी कुर्सी आगे खींची और फिर वह उस पर बैठे। सिर्फ इतनी ही नहीं उन्होंने वकीलों से यह तक अनुरोध किया हुआ है कि वह उन्हें 'लॉर्डशिप' जैसे संबोधनों से संबोधित न करें। दिल्ली बार एसोसिएशन में उनके साथी उन्हें कुछ केसेज में में साहसिक निर्णय देने वाले जज के तौर पर जानते हैं।
नाजुक केसेज में तुरंत फैसला
उनकी प्रतिष्ठा एक ऐसे जज के तौर पर है जिन्होंने नाजुक फैसले तक सुनाने में देरी नहीं की। साल 2009 में नाज फाउंडेशन का केस सबको याद है। जस्टिस मुरलीधर, दिल्ली हाई कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा रहे हैं जिसने देश में पहली बार होमोसेक्सुअैलिटी को अपराध के दायरे से बाहर किया था। नाज फाउंडेशन के केस में ही फैसला दिया गया था। साल 2018 में जस्टिस मुरलीधर ने उन केसेज में सबसे ज्यादा फैसले दिए जिन पर पूरे देश में चर्चा हो रही थी। इनमें सबसे चर्चित केस था एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को जमानत मिलने वाला। नक्सलियों के साथ संबंधों पर उन्हें जेल में रचाा गया था। इसके अलावा उन्होंने हाशिमपुरा केस में फैसला दिया था। 1986 का यह केस उत्तर प्रदेश का सबसे चर्चित केस था जिसमें कई हत्याओं के लिए उत्तर प्रदेश पीएसी के सदस्यों को दोषी ठहराया गया था।
सिख दंगों में सज्जन कुमार को करार दिया दोषी
साल 2018 में ही जस्टिस मुरलीधर ने साल 1984 के सिख दंगों के लिए कांग्रेस के नेता सज्जन कुमार को दोषी करार दिया। साथ ही उन्होंने इस केस में दोषियों के रिहाई वाले फैसलों को भी नकार दिया और फिर कई कड़े फैसले सुनाए। अप्रैल 2019 में जब दिल्ली में स्कूलों में बढ़ी हुई फीस के मुद्दे ने देशभर में हंगामा मचाया तो जस्टिस मुरलीधर की बेंच ने फैसला दिया कि शिक्षा निदेशालय के पास यह ताकत नहीं है कि वह प्राइवेट स्कूलों का ऑडिट कर सके। यह आदेश दिल्ली सरकार की उस याचिका पर आया था जिसमें स्कूलों में बढ़ी हुई फीस को चुनौती दी गई थी।