Delhi Violence: जानिए दिल्ली के दंगों से निपटने में क्यों नाकाम रही दिल्ली पुलिस ?
बेंगलुरु। राजधानी दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाकों में हुई हिंसा ने अब तक 34 लोगों की जान जा चुकी है। जबकि 200 से अधिक लोग घायल हैं। हिंसा प्रभावित सड़कों पर टूटे कांच, जली हुई दुकानें, घर और वाहन का खौफनाक मंजर हर ओर दिखाई दे रहा हैं। दिल्ली के जिन इलाकों में हिंसा हुई उनमें मौजपुर, जाफराबाद, चांद बाग, यमुना विहार सहित कई अन्य इलाके शामिल हैं। फिलहाल इन इलाकों में शांति है। सुरक्षाबलों की संख्या को प्रभावित इलाकों सहित अन्य इलाकों में भी बढ़ा दिया गया है।
दिल्ली के जाफराबाद और मौजपुर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने और 34 लोगों की मौतों के बाद दिल्ली पुलिस सवालों के घेरे में है। खुद को हाईटेक बताने वाली दिल्ली पुलिस जब दंगे भड़के तो तमाशबीन बन कर देखती रही। उसकी मौजूदगी में दिल्ली के इन इलाकों में दंगे क्यों भड़के? आइए जानते हैं इस दंगे पर काबू पाने में दिल्ली पुलिस नाकाम क्यों रही?
क्यों पुलिस कर रही थी ऑडर का इंतजार
बता दें हिंसा पीड़ितों का कहना है कि जो पुलिस आज हर जगह दिखाई दे रही है, वही पुलिस उस वक्त मौजूद नहीं थी जब हिंसा अपने चरम पर थी। जब लोगों को पत्थर मारे जा रहे थे, उनके साथ मारपीट की जा रही थी, दुकान, वाहन और घर जलाए जा रहे थे, तब कोई नहीं था। हैरानी की बात ये है कि ये इलाके दिल्ली पुलिस के मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित हैं। अधिकतर पीड़ितों का यही कहना था कि जब यहां हिंसा का माहौल था, तब पुलिस गायब थी। ये भी आरोप हैं कि पुलिस अपने आला अफसरों के आर्डर का इंतजार कर रही थी। सोमवार की शाम जब हिंसा भड़की तो दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम में हर मिनट में लगभग 4 कॉल आए। ये सभी कॉल अपने-अपने इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की रिर्पोट करने और मदद के लिए किए गए थे।
नेतृत्व के अभाव में पुलिस से हुई ये बड़ी गलती
बता दें दिल्ली पुलिस को आर्डर दिए जाते तो उन निर्देशों का पालन जरूर होता। दिल्ली के मामले में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ये देखना रहा कि एक तरफ शहर जल रहा था। हिंसा हो रही थी, लोग मर रहे थे एक दूसरे को मार रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ हमारी दिल्ली पुलिस ये तक समझने में नाकाम थी कि ऐसा क्या किया जाए जिससे ख़राब स्थितियों को काबू किया जाए। सब कुछ दिल्ली पुलिस की नाक के नीचे हुए और चूंकि केंद्र और राज्य का भी एक दूसरे से छत्तीस का आंकड़ा है तो इसे भी दिल्ली के जलने की एक बड़ी वजह के तौर पर देखा जा सकता है। दिल्ली में जो हुआ वो दिल्ली पुलिस की विफलता नेतृत्व की खामी का परिणाम है।
इस तस्वीर ने बयां की पुलिस की हकीकत
दिल्ली पुसिल की जो दंगे के समय भूमिका रही उससे साफ लग रहा हैं कि दंगों से कैसे निपटा जाए इसका उन्हें वर्षों से शायद कोई अभ्यास ही नहीं किया शाायद इसलिए वो इस हालात में जरुरी एक्शन लेने में नाकामयाब रहे। इसके आलवा दिल्ली हिंसा की एक तस्वीर वो भी सामने आई है जिसमें शाहरुख़ नाम का हमलावर गोली चला रहा है और ड्यूटी में तैनात दिल्ली पुलिस का जवान खली हाथ उसे समझाने जा रहा है। इस तस्वीर से हकीकत से रू-ब-रू करा दिया।
पुलिस की इस चूक से ही हिंसा भड़की
गौरतलब हैं कि नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में दिल्ली में पिछले 71 दिनों से बवाल हो रहा हैं। इस बवाल की शुरुआत जामिया मिल्लिया इस्लामिया से हुई फिर शाहीनबाग, फिर हौजरानी, सीलमपुर, जाफराबाद जैसे स्थानों पर यह विरोध फैलता गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान जाफराबाद में मेट्रो स्टेशन के नीचे धरना शुरु हुआ और तभी सीएए के समर्थन में भाजपा नेता कपिल मिश्रा आए और उनक भडकाऊ बयान से बवाल बढ़ गया। सवाल ये हैं कि सड़कों पर जब सीएए का विरोध करने वाले लोगों को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर एकत्र होने और वहां माहौल बिगाड़ने पहुंचे कपिल मिश्रा, आखिर दिल्ली पुलिस ने इन सभी लोगों पर तुरंत एक्शन क्यों नहीं लिया। पुलिस किस बात का इंतजार कर रही थी। यदि समय रहते उन्हें नियंत्रित कर लिया जाता तो आज हालात कहीं बेहतर होते। पुलिस भले ही इसे एक छोटी सी चूक कहकर नकार दे लेकिन ये छोटी सी चूक ही इस बड़ी हिंसा की जड़ बन गयी।
पुलिस को कैसे नहीं लगी भनक ?
तर्क दिया जा रहा है कि जिस समय बवाल हुआ पुलिस के लोग फ़ोर्स का आभाव झेल रहे थे। ऐसे में सवाल उठता हैं कि आखिर पुलिस का अपना इंटेलिजेंस या ये कहें कि स्थानीय सूत्र कहां थे? लोकल इंटेलिजेंस के रहते हुए पुलिस को ये जरूर बता था कि यहां बवाल हो सकता है जो किसी भी वक़्त उग्र रूप धारण कर सकता है! दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली बताने वाले वो तमाम वीडियो जो सोशल मीडिया पर फैल रहे हैं उन्हें देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता था। इसकी जानकारी पुलिस के पास नहीं थी तो सबसे बड़ा झूठ हैं। जिन इलाकों में दंगे हुए वहां लोगों ने पहले से ही अपने घरों में पत्थर इक्ट्ठा किए हुए थे। जिसके विडियो भी वायरल हुए लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। दंगा भड़कने पर सिर्फ लाठी पटकना और आंसू गैस के गोले चला देना दंगे के दौरान की जाने वाली कार्रवाई नहीं होती। ऐसी स्थिति में पुलिस को सजग रहना भी जरुरी हैं। सच कहे तो दिल्ली पुलिस के पास कोई प्लानिंग नहीं थी. जिस समय हिंसक वारदात को अंजाम दिया जा रहा था दिल्ली पुलिस के पास दिशा निर्देशों का आभाव था।
कहां थी रेपिड एक्शन फोर्स
रेपिट एक्शन फोर्स की गठन ऐसे ही दंगों पर लगाम लगाने के लिए हुआ हैं इसकी एक भी टुकड़ी इन दंगा ग्रस्त क्षेत्रों में तुरंत क्यों नहीं भेजी गई। बता दें ये फोर्स सीआरपीएफ की वो टुकड़ी होती है जिसका निर्माण 90 के दशक में इसलिए किया गया था ताकि वो दंगों और भीड़ को नियंत्रित कर ले. रैपिड एक्शन फ़ोर्स की ख़ास बात ये है कि ये हाई टेक है और इनके पास दंगे के दौरान भीड़ को तितर बितर करने के पर्याप्त संसाधन होते हैं. इन्हें भीड़ की साइकोलॉजी पता होती है और ये उस साइकोलॉजी से जनित चक्रव्यू को भेदना बखूबी जानते हैं। इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन दंगों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने वाली रेपिड एक्शन फोर्स कहां ही ? दिल्ली में जब इस कदर दंगा हो रहा था तो उस ठोस एक्शन लेने के लिए क्यों नहीं मौके पर रवाना किया गया। उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाके आग में धधक रहे थे। उन इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों की जान पर आन बनी थी लेकिन दिल्ली के दंगाग्रत क्षेत्रों में जब ये सब चल रहा था वहां रेपिड एक्शन फोर्स का न होना अपने आप में तमाम कड़े सवाल खड़े कर देता है।
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