Delhi violence: अपने तो चले गए, अब शव के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर
नई दिल्ली- दिल्ली हिंसा में कई घायलों की हालत बेहद नाजुक है। मौत का आंकड़ा 34 तक पहुंच चुका है। इस हिंसा के शिकार हुए लोगों में से ज्यादातर को दिलशाद गार्डन के जीटीबी अस्पताल में ही लाया गया है। लेकिन, जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उनके परिजनों को इस आफत की घड़ी में एक नई परेशानी झेलनी पड़ रही है। उन्हें शव लेने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। कई शवों की तो पहचान भी मुश्किल है। जबकि कई परेशानियां सरकारी औपचारिकताओं की वजह से पेश आ रही हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें पता ही नहीं है कि उनके अपने जख्मी हैं या उनकी मौत हो चुकी है। जीटीबी अस्पताल में ऐसे लोगों की तलाश में भटकने वालों की तादाद सैकड़ों में है। सबकी अलग-अलग कहानियां हैं, लेकिन अधिकतर का दर्द एक जैसा है और आंखें तकरीबन सबकी सूजी हुई हैं।
शव लेने के लिए भटक रहे हैं परिजन
दिल्ली
हिंसा
में
मौत
का
आंकड़ा
लगातार
बढ़ता
जा
रहा
है।
इसी
के
साथ
इस
हिंसा
के
शिकार
हुए
लोगों
के
परिजनों
के
सामने
एक
नई
मुसीबत
आ
रही
है।
वजह
ये
है
कि
कई
शवों
की
स्थिति
इतनी
खराब
है
कि
उनकी
पहचान
होनी
मुश्किल
है।
बाकी
का
काम
सिस्टम
पूरा
कर
रहा
है।
एक
तो
अपनो
को
खोने
का
पहाड़
सा
गम
है,
जिससे
उबरना
मुश्किल
है।
ऊपर
से
शव
लेने
के
लिए
शव
गृह
से
लेकर
इमरजेंसी
वार्ड
के
बीच
का
चक्कर
अलग
काटना
पड़
रहा
है।
मसलन,
मुस्तफाबाद
की
एक
महिला
जीटीबी
अस्पताल
के
शव
गृह
के
बाहर
अपनी
22
साल
की
बहन
का
शव
लेने
के
इंतजार
में
बैठी
रही।
वहीं
पर
एक
और
महिला
बैठी
है,
जिसका
33
साल
की
पति
दंगाइयों
के
हाथों
मारा
गया
है।
थोड़ी
दूर
पर
बैठे
एक
युवक
की
आंखों
से
आंसू
रुकने
का
नाम
नहीं
ले
रहे,
जिसका
दोस्त
इस
हिंसा
की
चपेट
में
आकर
अपनी
जान
गंवा
चुका
है।
(ऊपर
की
तस्वीर-
बहन
के
शव
का
इंतजार)
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हर दंगा पीड़ित का एक जैसा दर्द
हर
दंगा
पीड़ित
का
दर्द
एक
जैसा
है,
लेकिन
उनकी
अपनी
अलग-अलग
कहानियां
हैं।
36
साल
की
एक
महिला
मिली
जिसके
हाथों
में
मेंहदी
के
रंग
अभी
भी
गहरे
हैं।
14
फरवरी
को
ही
वह
अपने
भतीजे
की
शादी
में
शामिल
हुई
थी।
22
साल
का
उसका
भतीजा
150
दंगाइयों
के
हत्थे
चढ़
गया।
महिला
ने
बताया
कि,
'मेरा
भतीजा
इलेक्ट्रीशियन
था।
किसी
ने
उसे
बिजली
के
काम
के
लिए
बुलाया
था।
लेकिन,
दंगाइयों
ने
उसे
5
गोलियां
मारीं,
3
सीने
पर
और
2
सिर
में।
उसकी
पत्नी
घर
पर
है।
वह
गहरे
सदमे
में
है।'
एक
और
महिला
ने
बताया
कि
उसका
पति
करावल
नगर
में
दिहाड़ी
मजदूरी
करता
था।
'मंगलवार
को
वह
काम
पर
गए,
लेकिन
लौट
कर
नहीं
आए।
मेरे
3
बच्चे
हैं।
परिवार
में
वह
इकलौता
कमाने
वाला
था।
मैं
नहीं
जानती,
अब
मैं
क्या
करूंगी।'
उसके
रिश्तेदारों
को
उसे
संभालना
मुश्किल
हो
रहा
है।
(ऊपर
की
तस्वीर-
पति
के
शव
का
इंतजार)
कुछ शवों की पहचान मुश्किल
जीटीबी
अस्पताल
में
एक
और
महिला
मिली
जो
अपने
एक
रिश्तेदार
की
तलाश
में
शव
गृह
से
इमरजेंसी
वार्ड
का
चक्कर
लगा
रही
थी।
उसे
यह
तक
पता
नहीं
है
कि
उसका
रिश्तेदार
जिंदा
है
या
उसकी
मौत
हो
चुकी
है।
उसके
मुताबिक,
'मैं
मंगलवार
से
ही
उनको
तलाश
रही
हूं।
वह
घल
लौटकर
नहीं
आए।
वह
करावल
नगर
में
काम
करते
थे।
उन्होंने
25
फरवरी
को
कॉल
किया
था
कि
उनपर
कम
से
कम
100
लोगों
ने
हमला
कर
दिया
है।
तब
से
मैं
यहां
से
वहां
भटक
रही
हूं।
पहचान
करना
बहुत
ही
मुश्किल
है
क्योंकि
शव
गृह
में
शवों
की
स्थिति
बेहद
खराब
है।'
अपनों
की
तलाश
में
अस्पताल
में
बैठे
ऐसे
रिश्तेदारों
की
संख्या
सैकड़ों
में
है।
सब
तसल्ली
चाहते
हैं
कि
कम
से
कम
ये
खबर
मिल
जाए
कि
उनके
अपने
जिंदा
हैं।
लेकिन,
जिन्हें
मृत
घोषित
किया
जा
चुका
है,
उन्हें
उनका
शव
लेना
मुश्किल
हो
रहा
है।
(ऊपर
की
तस्वीर-
दोस्त
के
शव
का
इंतजार)
जीटीबी अस्पताल में चल रहा है ज्यादातर घायलों का इलाज
लोगों को हो रही मुश्किलों के बारे में जीटीबी अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट सुनील कुमार ने बताया है कि 'यह पुलिस और सरकार के स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि पोस्ट-मॉर्टम के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करे। हमने 4 पोस्टमॉर्टम किए हैं। मुझे उम्मीद है कि सक्षम अधिकारी बोर्ड का गठन करेंगे ताकि पोस्ट-मॉर्टम किया जा सके।' बता दें कि दिल्ली हिंसा में मारे गए या घायलों में से अधिकतर को लेकर दिल्ली पुलिस दिलशाद गार्डन के गुरु तेग बहादुर अस्पताल ही पहुंचा रही है। अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है और दो सौ से ज्यादा जख्मी हैं और इनमें से अधिकतर को जीटीबी में ही रखा गया है।
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