दिल्ली हिंसा: बुजुर्ग को जिंदा जला दिया, नेत्रहीन पति संग पिता की एक अंगुली तक पाने को भटक रही बेटी
नई दिल्ली। 24 फरवरी 2020- यही वो तारीख थी, जिस दिन दिल्ली हिंसा की तांडव की गवाह बनी। जिस तरह दिल्ली का पूर्वोत्तर हिस्सा नफरती आग में जला, उसके बाद बचे राख ने दिल्ली के माथे पर बदनुमा दाग लगा दिया। दिल्ली को आगे बढ़ने में अब लंबा वक्त लगेगा क्योंकि विभाजन और सिख दंगों का दर्द ने इसे पहले ही तोड़ रखा था। दंगे की इस भेट अबतक 47 जानें चढ़ चुकी हैं। कुछ तो परिवारों से बिछड़ गए हैं जिनके इंतजार में घरवालों की आंखे पथरा गई हैं। यमुनापार के शिव विहार इलाके में बुजुर्ग मोहम्मद अनवर भी राम लीला ग्राउंड के पास से गायब हो गए थे। अनवर सब्जी का ठेला लगाते थे।
नेत्रहीन पति के साथ पिता की लाश के लिए भटक रही बेटी
दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल स्थित मॉर्चरी में गुलशन और उनके शौहर नसरुद्दीन (नेत्रहीन) ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने बताया कि पिता की लाश के लिए वह दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। गुलशन के मुताबिक, "मैं पिता के अवशेष चाहती हूं। फिर चाहे ही मुझे उनकी टांग या फिर अंगुली ही क्यों न मिले।" गुलशन ने बताया "मेरे पिता शिव विहार के रामलीला ग्राउंड में रहते थे। वह बकरी के बच्चे पालते थे। रेहड़ियां किराए पर देते थे। इन्हीं चीजों से उनका खर्च चलता था, जबकि हम लोग यूपी के हापुड़ में रहते हैं।"
दिल्ली में पहली बार डीएनए से हुई शव की पहचान
दिल्ली में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मरने वाले की पहचान डीएनए से की गई है। जीटीबी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि अनवर का शव बुरी तरह झुलस गया था, ऐसे शव की पहचान सिर्फ डीएनए से ही की जा सकती थी। डीएनए जांच के लिए अनवर और उसके बेटी गुलशन का ब्लड का सैंपल लिया गया।
उपद्रवियों ने जला दिया, बचा सिफ पैर, बाकी सब राख
अनवर के बेटी गुलशन का दावा है कि उपद्रवियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी और फिर आग के हवाले कर दिया। आलम ये था कि उनकी लाश तक नहीं मिली। मगर रिश्तेदारों और आस-पास के लोगों द्वारा बताई गई बातों के आधार पर गुलशन का कहना है कि घटना के बाद पिता की लाश भी नहीं बची। सिर्फ एक पैर बचा, जो कि घटनास्थल के आस-पास ही बरामद हुआ। वह इसी अवशेष को हासिल करने कई दिन से मुर्दाघर के चक्कर लगा रही हैं।