केजरीवाल की विपक्ष की दिल्ली रैली क्या फ़्लॉप रहीः नज़रिया
वहीं, आज शरद पावर बहुत जोश में बोले. बहुत समय बाद उन्हें ऐसे बोलते हुए देखा. उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमला हो रहा है और विपक्ष इससे चिंतित है.
हो सकता है कि आगे भी ऐसी ही रैलियां हों. उससे नरेंद्र मोदी और एनडीए के ख़िलाफ़ देश में एक माहौल बनाने की कोशिश है.
दिल्ली में बुधवार को एक बार फिर विपक्षी एकता देखने को मिली. दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुई मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रैली में कई विपक्षी दलों के नेता एकजुट हुए.
इस रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारुख़ अब्दुल्ला, सपा से रामगोपाल यादव और बीजेपी नेता व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा सहित विपक्ष के कई नेता मंच पर मौजूद थे.
रैली के दौरान एक-एक कर सभी बड़े नेताओं ने संविधान के ख़तरे में होने और मोदी सरकार पर लोगों को धर्म के नाम पर बांटने का आरोप लगाया.
उन्होंने केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करने का आरोप भी लगाया.
वहीं, आज लोकसभा के आखिरी सत्र का अंतिम दिन था और कई नेताओं का भाषण भी आज सुर्खियों में छाया रहा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आज सदन में संबोधित किया.
ऐसे में बजट सत्र के अंतिम दिन के साथ आज की रैली कितना प्रभाव छोड़ पाई और महागठबंधन को लेकर इससे क्या संदेश गया, इस संबंध में बीबीसी संवाददाता मोहम्मद शाहिद ने वरिष्ठ प्रत्रकार नीरजा चौधरी से बात की.
पढ़ें, उनका नज़रिया:
फ्लॉप शो या आगामी संकेत
मुझे नहीं लगता कि ये फ्लॉप शो था. आम आदमी पार्टी ने इसका आयोजन किया था और वहां 'आप' के बहुत समर्थक भी मौजूद थे.
दिलचस्प बात ये थी कि इस रैली में कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा भी आए थे. उन्होंने आम आदमी पार्टी के साथ स्टेज शेयर किया जबकि अभी कहा जा रहा है कि आप और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होगा. ऐसे में आनंद शर्मा का वहां जाना मायने रखता है.
दूसरा ये था कि उस स्टेज पर सीताराम येचुरी बोले और जैसे ही वो निकले तो ममता बनर्जी आईं और उन्होंने भाषण में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही.
ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल में लेफ़्ट और कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर हम इकट्ठे काम करने जा रहे हैं.
वहीं, एनसीपी और कांग्रेस भी इकट्ठे हैं. उनके बीच सीटों को लेकर सहमति बन गई है.
महागठबंधन की रैली एक तरह से एकजुटता दिखाना होता है. वो साथ आने की तस्वीर भर होती है लेकिन, राज्य स्तर पर जो गठबंधन हो रहे हैं उसका सबूत आज स्टेज पर दिखा.
एनसीपी और कांग्रेस इकट्ठी थी. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ थे. क्या वो बीजेपी के ख़िलाफ़ इकट्ठा होकर अभी भी हाथ मिला सकते हैं. संभावनाएं फिर से पैदा हो गईं.
ममता बनर्जी का ये कहना कि लेफ़्ट और कांग्रेस के विरोध दल होने के बावजूद भी राष्ट्रीय स्तर पर हम सहयोग करेंगे. मुझे लगता है कि कहीं न कहीं गठबंधन की कहानी राज्य स्तर पर आगे बढ़ रही है.
ये राज्य स्तर का गठबंधन है जो बीजेपी के नंबर कम करने में प्रभावी होगा.
गठबंधन से बढ़ेगी बीजेपी की मुश्किल
पांच-छह राज्यों में हो रहे गठबंधन मायने रखेंगे जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कनार्टक और झारखंड.
अगर वहां वास्तव में गठबंधन प्रभावी हो जाता है तो बीजेपी के लिए 80 से 100 सीटों पर मुश्किल हो सकती है.
वहीं, आज शरद पावर बहुत जोश में बोले. बहुत समय बाद उन्हें ऐसे बोलते हुए देखा. उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमला हो रहा है और विपक्ष इससे चिंतित है.
हो सकता है कि आगे भी ऐसी ही रैलियां हों. उससे नरेंद्र मोदी और एनडीए के ख़िलाफ़ देश में एक माहौल बनाने की कोशिश है.