दिल्ली में स्मॉग फैलाने वाला 'गल्फ डस्ट' क्या है?
मौसम विभाग और सफर के अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली में स्मॉग के पीछे बड़ी वजह गल्फ डस्ट है.
दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में पिछले कई दिनों से छाए स्मॉग के पीछे खाड़ी देशों में उठने वाला तूफ़ान है. इसे 'गल्फ़ डस्ट' कहा जाता है. यह जानकारी भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) और भूविज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने दी है.
आईएमडी और सफ़र के एक अध्य्यन में यह निकलकर आया है कि इराक़, कुवैत और सऊदी अरब में अक्टूबर के अंत में आए तेज़ तूफान की वजह से दिल्ली में स्मॉग जैसे हालात पैदा हुए.
पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक स्तर तक पहुंच गया था. हालात इतने बदतर हो गए कि सरकार ने स्कूलों को कुछ दिन के लिए बंद करने का आदेश दे दिया साथ ही निर्माण कार्यों पर रोक से लेकर बाहरी राज्यों से आने वाले ट्रकों पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया.
अध्य्यन में बताया गया है कि 8 नवंबर को स्मॉग के पीछे लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा गल्फ डस्ट का है. जबकि किसानों के पुआल जलाने से 25 प्रतिशत प्रदूषण फैला है. इस दिन हवा की गुणवत्ता का औसत 478 था, इस आंकड़े को बेहद गंभीर माना जाता है.
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क्या होता है गल्फ़ डस्ट?
गल्फ़ डस्ट दरअसल खाड़ी देशों में उठने वाले तूफ़ान से पैदा होने वाली धूल को कहा जाता है.
एक्शन एड में जलवायु परिवर्तन के ग्लोबल हेड हरवीर सिंह ने गल्फ डस्ट के संबंध बीबीसी को विस्तार से बताया.
उन्होंने कहा, ''खाड़ी देशों में अक्सर रेत का तूफ़ान आता रहता है, इस बार 29 अक्टूबर से 4 नवंबर तक यह तूफ़ान आया. इस तूफ़ान की गति काफी तीव्र होती है. इससे लगभग डेढ़ से तीन किलोमीटर ऊपर तक रेत उठती है.''
हरवीर बताते हैं कि अमरीका के अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी नासा ने भी इस तूफान का जिक्र किया है, जिसमें बताया गया है कि खाड़ी देशों में 4 नवंबर तक तेज़ रेतीले तूफान आए हैं.
भारत कैसे पहुंच गया यह तूफान?
खाड़ी देशों में उठने वाला यह रेतीला तूफ़ान आखिर भारत और विशेषकर दिल्ली कैसे पहुंच गया. इस पर हरवीर सिंह बताते हैं, '' हल्की रेत तूफान की वजह से ऊपर उठने लगती है, फिर यह हवा की गति की तरफ ही मुड़ जाती है.''
''इस बार ऐसा संयोग बना कि जिस वक्त खाड़ी देशों में रेतीला तूफान आया उस समय हवा की दिशा भारत की तरफ थी. इस वजह से रेत के छोटे-छोटे कण भारत पहुंच गए, जिसका सबसे बड़ा शिकार दिल्ली बना.''
वे कहते हैं, ''इससे पहले भी भारत में गल्फ डस्ट आता था लेकिन उस समय प्रदूषण के बाकी कारक बहुत ज़्यादा प्रभावी नहीं होते थे, इसलिए हमें स्मॉग जैसे हालात का सामना नहीं करना पड़ता था.''
हरवीर सिंह के अनुसार कुछ साल पहले जर्मनी के कोयला प्लांट का धुआं लंदन की तरफ जाने लगा था. उस समय हवा का रुख जर्मनी से लंदन की तरफ था. उस वक्त लंदन में प्रशासन ने 48 घंटे पहले ही आपातकालीन कदम उठा लिए थे.
कितना ख़तरनाक है गल्फ डस्ट?
प्रदूषण के कारण कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें झेल रहे दिल्लीवासियों के लिए गल्फ डस्ट कितना ख़तरनाक साबित होगा. इस सवाल पर हरवीर ने बताया कि हवा में मिलने वाले रेत के छोटे कण हमारी सांस के ज़रिए शरीर के अंदर जा सकते हैं. इसका बहुत नुकसान होता है.
वे बताते हैं, ''इससे बचने के लिए सबसे बेहतर है कि हम घरों में ही रहें. बच्चों को ज़्यादा वक्त तक बाहर न जाने दें क्योंकि उन पर इसका बुरा प्रभाव न पड़े.''
मौसम विभाग के अध्ययन में दिल्ली में जारी स्मॉग के पीछे 40 प्रतिशत हिस्सा गल्फ डस्ट को बताया गया है. इस पर हरवीर सिंह कहते हैं कि हमें बाकी के 60 प्रतिशत कारणों को नहीं छोड़ना चाहिए. जिसमें खेतों में पुआल जलाना, निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल, वाहनों का प्रदूषण आदि शामिल है.
हरवीर सिंह कहते हैं, ''खाड़ी के तूफान पर तो हमारा वश नहीं है और ना ही हम हवा के रुख को रोक सकते हैं, लेकिन हम बाकी के 60 प्रतिशत कारणों पर तो नियंत्रण जरूर लगा सकते हैं.
कैसे करें नियंत्रित
मौसम विभाग के अध्ययन के अनुसार अगर गल्फ डस्ट का प्रभाव न होता तो हवा कि गुणवत्ता में पीएम 2.5 की मात्रा 640 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की जगह 200 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहती.
हरवीर सिंह का कहना है कि यह बात तो ठीक है कि स्मॉग में एक बड़ा हिस्सा गल्फ डस्ट का था लेकिन पीएम 2.5 का स्तर 200 तक पहुंचना भी हानिकारक ही है.
हरवीर सिंह कहते हैं, ''सरकार को प्रदूषण से लड़ने के लिए कुछ स्थायी कदम उठाने होंगे, ऐसा न हो कि जब भी प्रदूषण अपने सबसे ख़तरनाक स्तर पर पहुंचे तभी हम कुछ फौरी कदम उठाएं और बाद में उन्हें वापिस ले लें, इससे तो कुछ फायदा नहीं होने वाला.''
हरवीर सिंह मानते हैं कि गल्फ डस्ट स्मॉग के पीछे एक बड़ा कारण जरूर है लेकिन बाकी के कारणों पर जनता और सरकार मिलकर नियंत्रण कर सकती है.