BBC रियलिटी चेक: दिल्ली में प्रदूषण के लिए क्या दिवाली के पटाखों को दोष देना ठीक है?
शुक्रवार को हवा की गुणवत्ता नापने का सूचकांक 600 के पार पहुँच गया. बीबीसी रियलिटी चेकप्रदूषण की इस स्थिति को लेकर पहले भी चिंता ज़ाहिर की गई थी. पिछले साल की तरह इस साल भी भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री में कमी लाने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट के आदेश का असर कम ही दिखा.
लेकिन दिल्ली समेत हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए दिवाली के पटाखे
भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद ख़राब बना हुआ है. दिवाली के दौरान हुई आतिशबाज़ी ने इस प्रदूषण को और भी ज़्यादा बढ़ा दिया है.
शुक्रवार को हवा की गुणवत्ता नापने का सूचकांक 600 के पार पहुँच गया जिसे 50 से ज़्यादा नहीं होना चाहिए.
प्रदूषण की इस स्थिति को लेकर पहले भी चिंता ज़ाहिर की गई थी. पिछले साल की तरह इस साल भी भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री में कमी लाने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट के आदेश का असर कम ही दिखा.
लेकिन दिल्ली समेत हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए दिवाली के पटाखे कितने ज़िम्मेदार हैं?
कुछ अध्ययन बताते हैं कि दिवाली के दौरान वायु प्रदूषण में कुछ ख़तरनाक तत्व तेज़ी से बढ़ जाते हैं. लेकिन इन अध्ययनों में ये भी माना गया है कि वायु की ख़राब गुणवत्ता के लिए कुछ अन्य कारक भी ज़िम्मेदार हो सकते हैं.
मौसमी प्रदूषण
हाल के वर्षों में वायु प्रदूषण भारत के लिए एक बढ़ती हुई समस्या बन गया है.
राजधानी दिल्ली में अक्तूबर की शुरुआत से लेकर दिसंबर तक स्मॉग का आतंक बना रहता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल ही में जारी 20 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों की लिस्ट में भारत के नौ शहरों को रखा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन शहरों में पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है.
पीएम 2.5 प्रदूषण में शामिल वो सूक्ष्म संघटक है जिसे मानव शरीर के लिए सबसे ख़तरनाक माना जाता है.
PM 2.5 क्या होता है?
- PM यानी पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की एक किस्म है. इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं.
- पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण के साइज़ को बताता है.
- आम तौर पर हमारे शरीर के बाल PM 50 के साइज़ के होते हैं. इससे आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि PM 2.5 कितने बारीक कण होते होंगे.
- 24 घंटे में हवा में PM 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए.
- इससे ज़्यादा होने पर स्थिति ख़तरनाक मानी जाती है. इन दिनों दोनों कणों की मात्रा हवा में कई गुना ज़्यादा है.
- हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर ख़ून में घुल जाते है. इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और साँसों की दिक्क़त हो सकती है.
- बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बूढ़ों के लिए ये स्थिति ज़्यादा ख़तरनाक होती है.
- दिल्ली के प्रदूषण से किसे हो रहा है फ़ायदा?
- प्रदूषण के कारण क्यों होती है बच्चों की मौत
- आपकी कार-बाइक पर बैन से प्रदूषण होगा कम?
प्रदूषण के कारण
लेकिन साल के इन दिनों में दिल्ली समेत उत्तरी भारत के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ता है और ऐसा दिवाली के पटाखों के साथ-साथ कई अन्य कारणों के मिश्रण से होता है.
इनमें शामिल है:
- पंजाब और हरियाणा के किसानों का पराली जलाना
- बड़े और भारी वाहनों से होने वाला उत्सर्जन
- दिल्ली एनसीआर में चल रहा भारी निर्माण कार्य
- और मौसम में बदलाव जो वायु में प्रदूषण के कणों को फंसा लेता है
जब दिल्ली में इन तमाम कारणों से वायु प्रदूषण की स्थिति रोज़ बिगड़ ही रही है, तो ऐसे में दिवाली के पटाखे इस मुश्किल को कितना बढ़ा देते हैं? इस बात को समझने की ज़रूरत है.
दिवाली का असर
एक नये अध्ययन से इस सवाल का जवाब मिलता है जिसमें कहा गया है कि दिवाली के पटाखों का वायु प्रदूषण पर कम लेकिन आंकड़ों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण असर देखा जाता है.
ये अध्ययन दिल्ली की पाँच जगहों से जुटाए गये आंकड़ों पर केंद्रित है. इसके लिए साल 2013 से 2016 के बीच डेटा इकट्ठा किया गया था.
दिवाली का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार सामान्य तौर पर अक्तूबर के तीसरे हफ़्ते से नवंबर के दूसरे सप्ताह के बीच मनाया जाता है.
अक्सर यही वो समय भी होता है जब किसान खेतों में पराली जलाते हैं. ऐसे में अध्ययनकर्ताओं ने सबसे ज़्यादा ग़ौर दिवाली वाले सप्ताह पर किया.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में से एक धनंजय घई ने बीबीसी को बताया, "पराली जलाने की घटनाओं को स्थापित करने के लिए हमने नासा से सैटेलाइट तस्वीरें लीं और उनका इस्तेमाल किया."
साल 2013 से लेकर 2016 के बीच, चार में से दो बार दिवाली का त्योहार उस वक़्त नहीं पड़ा था जब किसान अपने खेतों में पराली जला रहे थे.
इन सालों में दिल्ली की एक लोकेशन पर कोई बड़ी औद्योगिक गतिविधि रुकने से वायु प्रदूषण और मौसम पर जो असर हुआ वो भी अध्ययनकर्ताओं ने दर्ज किया.
रिसर्चरों ने पाया कि दिवाली के अगले दिन हर साल पीएम 2.5 की मात्रा क़रीब 40 फ़ीसदी तक बढ़ी.
जब इस आंकड़े को घंटों के आधार पर देखा गया तो रिसर्चरों ने पाया कि दिवाली के दिन शाम 6 बजे से अगले पाँच घंटे बाद तक (यानी क़रीब 11 बजे तक) पीएम 2.5 में 100 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई.
दिल्ली के प्रदूषण को मापने वाले प्राधिकरण ने भी पाया है कि साल 2016 और 2017 में दिवाली के बाद प्रदूषण तेज़ी से बढ़ा.
- दिल्ली से ज़्यादा ज़हरीली है यूपी की हवा
- कितने प्रभावी होते हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश?
- जादुई तस्वीर में दिखा दिल्ली के 'प्रदूषण का भूत'
प्रदूषण में शामिल तत्व
जमशेदपुर में हुई एक रिसर्च में भी पाया गया कि दिवाली के दौरान प्रदूषण तेज़ी से बढ़ता है. लेकिन इस रिसर्च से ये भी पता चल पाया कि पटाखों के कारण वायु में कौन-कौन से संघटक तेज़ी से बढ़ जाते हैं.
रिसर्च के अनुसार, वायु में बढ़ने वाले संघटक
- पीएम 10
- सल्फ़र डाइऑक्साइड
- नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
- ओज़ोन
- आयरन
- मैगनीज़
- बैरीलियम
- निकेल
भारत का केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भी मानता है कि पटाखों से 15 ऐसे तत्व निकलते हैं जिन्हें मानव शरीर के लिए ख़तरनाक और ज़हरीला माना जाता है.
लेकिन ये भी मानना होगा कि इनमें बहुत सारे तत्व गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण में भी पाये जाते हैं.
अन्य कारण
ये भी पाया गया है कि सभी पटाखे अधिक मात्रा में पीएम 2.5 नहीं छोड़ते. बड़े पटाखों में ही पीएम 2.5 की सघनता ज़्यादा होती है.
दिवाली के दौरान लोग तोहफ़े बाँटने के लिए निकलते हैं और इस कारण से लगने वाला ट्रैफ़िक जाम भी प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारण माना जाता है.
क्या दिवाली के दौरान गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण शहर में वायु प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण कहा जा सकता है?
इस सवाल पर रिसर्चर कहते हैं कि आगामी रिसर्च में उन्हें इस तथ्य पर भी ग़ौर करना होगा.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आपयहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)