दिल्ली में भी क्या लगने वाला हैं भाजपा को ये झटका !
बेंगलुरु। महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर होने के बाद महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी में अंतरकलह शुरु हो गई वहीं दिल्ली में भी पार्टी की मुश्किल बढ़ती नजर आ रही है। जहां एक ओर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले एनसीपी और कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए एक दर्जन जीते हुए विधायक और कुछ फडणवीस से नाराज नेता बगावती तेवर में दिख रहे हैं वहीं दिल्ली में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के सुर बिगड़े हुए हैं।
महाराष्ट्र में जिस तरह तकरीबन तीन दशक का भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया उसके बाद एनडीए के अन्य सहयोगी दलों के भीतर भी बगावती सुर उठने लगे हैं। भाजपा के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से नई मांग सामने रखी है। खबरों के अनुसार महाराष्ट्र और झारखंड के बाद अब दिल्ली में भाजपा की यह सहयोगी पार्टी मांग न माने जाने पर बड़ा झटका दे सकती हैं। बता दें दिल्ली समेत पंजाब में भाजपा में शिरोमणि अकाली दल अब तक साथ मिलकर चुनाव लड़ती आयी है। भाजपा सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल अगर भाजपा से अलग होती है तो भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं!
अधिक सीटों की मांग को लेकर भाजपा पर दबाव बनाने की तैयारी
बता दें भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच जो खटखट शुरु हुई है वह विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर है। अब तक जहां शिरोमणि अकाली दल महज चार सीटों पर चुनाव लड़ती आयी है वहीं इस बार पार्टी छह सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। दिल्ली शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने अपना फैसला पार्टी प्रमुख को बता दिया है। इतना ही पार्टी अपनी छह सीटों की मांग जल्द ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने रखने वाली हैं। शिअद के नेता भाजपा पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में और अधिक सीटों को लेकर दबाव बनाने की तैयारी कर चुके हैं।
दिल्ली में अकाली दल नेताओं के अनुसार दिल्ली में बढ़े जनाधार को देखते हुए चार से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए वो तैयार है। इतना ही नहीं हरियाणा में कुछ समय पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियों में गठबंधन नहीं हुआ था। दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी। इतना ही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान अकाली दल के नेताओं भाजपा पर खूब जमकर तीखे प्रहार किए थे।
गठबंधन टूटा तो भाजपा को होगा नुकसान
दरअसल अकाली दल भाजपा के साथ में दिल्ली में चुनाव लड़ती आयी है इसलिए भाजपा को सिखों का समर्थन प्राप्त हैं। अगर आने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन टूटता है तो भाजपा को सिख वोट का भारी नुकसान हो सकता है।उल्लेखनीय है कि पिछले दिनेां गुरुद्वारा कमेटी में लगातार दूसरी बार अकाली दल जीत हासिल कर चुका है। इतना ही नहीं दिल्ली उपचुनाव में राजौरी गार्डन में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ अकाली दल नेता ने जीत हासिल की थी। पार्टी सूत्रों के अनुसार राजौरी गार्डेन की जीत के बाद ही इस बार भाजपा से अधिक सीटों की मांग की जाएगी।
उपचुनाव में मिली जीत के बाद बढ़ा मनोबल
बता दें वर्ष 2013 एवं 2015 विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने राजौरी गार्डन, हरि नगर, शहदरा और कालकाजी क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। हरि नगर सीट पर अकाली दल ने अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा वहीं बाकी तीन सीटों भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ी थी। 2013 में जहां तीन सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी वहीं 2015 में सभी सीटों पर हार हो गयी थी। वहीं 2017 में उपचुनाव में राजौरी गार्डेन से मनजिंदर सिंह सिरसा ने जीत हासिल कर 2015 चुनाव में हारी हुई सीट पर कब्जा जमाने में सफल हुए थे।
यहां बता दें सिरसा दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष भी है। हालांकि मीडिया को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि दोनों पार्टियां साथ मिलकर दिल्ली चुनाव लड़ेगी। हमारा और भाजपा का गठबंधन बहुत पुराना है। वहीं अन्य नेताओं ने अनुसार उक्त चार सीटों के अलावा इस बार दिल्ली के मोती नगर और रोहताश नगर सीट पर भी चुनाव लड़ने के लिए भाजपा से मांगी जाएगी। इसके बावत शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को भी मंशा बतायी जा चुकी है।
महाराष्ट्र और झारखंड में लग चुका है भाजपा को ये झटका
गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी मुख्यमंत्री पद की मांग न माने जाने के बाद शिवसेना ने भाजपा का वर्षों पुराना साथ छोड़ दिया। इसके बाद भाजपा को ठेंगा दिखा कर शिवसेना ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हो चुकी है। कि झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव में एलजेपी को एनडीए ने 6 सीटें दी, जिससे नाराज एनलजेपी ने एनडीए से अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया। झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन भी भाजपा से अलग विधानसभा चुनाव लड़ रही है। जबकि यह वहीं पार्टी है जिसके बलबूते पिछले आम चुनाव में भाजपा को झारखंड में जबरदस्त जीत हासिल हुई थी।
एनडीए के सहयोगी दल पहले कर चुके हैं ये मांग
गौरतलब हैं कि महाराष्ट्र में जिस तरह से तकरीबन तीन दशक का भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया उसके बाद एनडीए के अन्य सहयोगी दलों के भीतर भी बगावती सुर उठने लगे हैं। एनडीए के अन्य सहयोगी दलों ने सम्मान व बेहतर समन्वय की मांग की है। नवंबर महीने में महाराष्ट्र एपीसोड के दौरान बिहार में एनडीए के सहयोगी दल जदयू और पंजाब में एनडीए के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से नई मांग सामने रखी थी। शिरोमणि अकाली दल के नेता और राज्य सभा सांसद नरेश गुजराल ने कहा था कि एक समय ऐसा था जब कोई भी
भाजपा के साथ गठबंधन में नहीं था और उस समय भी शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल भाजपा के साथ थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि जब आप पूर्ण बहुमत हासिल कर लें तो आप अपने सहयोगी दलों को कम महत्व दें। हर किसी का आत्मसम्मान होता है और ये नेता अपने लिहाज से सही हैं। गठबंधन के हर सहयोगी को यह उम्मीद है कि उसके साथ समानता का व्यवहार किया जाए और उन्हें सम्मान दिया जाए। गुजराल ने कहा कि वाजपेयी जी और आडवाणी जी की यही ताकत थी।
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