कोरोना काल में क्या किराएदारों के पास है कोई ऑप्शन, दिल्ली हाई कोर्ट की जज ने बताया
नई दिल्ली। मार्च के माह से पूरा देश कोरोना वायरस संकट से जूझ रहा है। मार्च में लॉकडाउन के बाद लोग जहां थे वहीं पर रहने को मजबूर हो गए। केंद्र सरकार ने मकान मालिकों से अपील की कि किराएदारों से कुछ समय का किराया न लिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और कई लोग आज तक अपना किराया अदा कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए एक वेबीनार के जरिए दिल्ली हाई कोर्ट की जज जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कई अहम बातें बताई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उददाहरण
उन्होंने कहा कि देश के कानून में ऐसे प्रावधान मौजूद हैं जिनकी मदद से लोग कोरोना जैसे संकटकाल में अपना किराया देने से बच सकते हैं। जस्टिस प्रतिभा ने बताया कि आईपीसी के सेक्शन 32 के तहत ऐसा प्रावधान है कि लोग महामारी, युद्ध या फिर ऐसे संकट के समय अपना किराया अदा करने से बचने के लिए कोर्ट की शरण ले सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने 60 के दशक के एक ऐसे केस का उदाहरण भी दिया जिसमें बंटवारे के बाद जमीन को लेकर मालिकाना हक के लिए दो लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि 19 अक्टूबर 1967 में बंटवारे के बाद एक जमीन से जुड़ा विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। इस केस को हयालीराम जग्गनाथ केस के नाम से जानते हैं जो सात जुलाई 1958 में शुरू हुआ था। इस केस में जूट की 2000 गठरियों को पाकिस्तान से लाना था। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसमें साफ कहा गया था कि कोर्ट के पास इस तरह की कोई ताकत नहीं है कि वह किसी कॉन्ट्रैक्ट से किसी पार्टी को अलग कर दे। जस्टिस प्रतिभा ने कहा कि महामारी की वजह से इस तरह के केसेज की भरमार होने वाली है। ऐसे में वकीलों को अपने क्लाइंट्स को सही और उचित सलाह देनी होगी कि उन्हें किस तरह से अपने मसले को आगे बढ़ाना है।