7 साल बाद लावारिस रेनू के मां-बाप आए सामने, बच्ची को पालने वाला बोला- 'वो मेरे जिगर का टुकड़ा है'
गाजियाबाद। आप एक अनाथ बच्ची को सालों तक पालते हैं और फिर अचानक एक दिन उस बच्ची पर कोई और दावा कर देता है कि वह उनकी बेटी है। सोचिए आपके दिल पर क्या गुजरेगी। ऐसा ही हाल कुछ गाजियाबाद जिले के औलेढ़ा निवासी राजेंद्र कुमार का है। जो सात साल से रेनू उर्फ वांशिका को पाल रहे थे। अचानक एक दिन दिल्ली के एक दंपति आकर रेनू पर अपना दावा पेश कर देता है। पुलिस बच्ची पर दावा करने वाले दंपति का डीएनए टेस्ट करवाने जा रही है।
2010 में लावारिस बच्ची को दिया था पालने के लिए
औलेढ़ा के रहने वाले राजेंद्र कुमार पेशे से पेंटर हैं। राजेंद्र ने बताया कि 10 दिसंबर 2010 को मोहन नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज मिथलेश उपाध्याय ने लगभग दो साल की एक बच्ची पालने के लिए सौंपी थी। राजेश कुमार निसंतान थे। इसलिए उन्होंने बच्ची को अपने बच्चे की तरह पाला। उसके सभी कागजातों, आधार कार्ड, स्कूल में खुद को उसका पिता बताया है। राजेंद्र ने बताया कि उन्हें रेनू गांव के एक पुलिसकर्मी राजकुमार की मदद से मिली थी। जो उस समय मोहन नगर चौकी में तैनात था।
रेनू का कहना है कि वह अपने पापा को छोड़कर नहीं जाएगी
राजेंद्र ने बताया कि चौकी इंजार्ज मिथलेश ने उसे बच्ची को पालने के लिए दी थी। उसके साथ कहा था कि जब उसके मां-बाप का पता चल जाएगा तो वह उसे सौंप देंगे। अचानक सात साल बाद एक दंपति ने बच्ची पर दावा पेश किया है। रेनू अब लगभग नौ साल की हो चुकी है। पुलिस रेनू पर दावा करने वाले कपल का डीएनए टेस्ट करवाने जा रही है। यह बात रेनू को पता है कि, उसे लेने के लिए दिल्ली से कोई आया है। वह उसका कुछ और नाम बता रहे हैं। रेनू का कहना है कि वह अपने पापा को छोड़कर नहीं जाएगी।
डीएनए टेस्ट की तैयारी
वहीं राजेंद्र भावुक होते हुए कहते हैं कि रेनू मेरे जिगर का टुकड़ा है। उसके सिवा दुनिया में मेरा कोई नहीं है। कोर्ट का आदेश में मानूंगा लेकिन उसे छोड़ाना मेरे लिए कष्टकारी है। राजेंद्र की पत्नी का 2016 में देहांत हो गया है।
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