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दिल्ली विधानसभा चुनाव: क्या चाहती हैं ये दलित और मुसलमान औरतें?

चुनावों के बाद, वोट डालने के लिए लंबी कतार में खड़ी औरतों की तस्वीरें अख़बारों की सुर्खियां बनती हैं. मगर चुनाव से पहले इन औरतों के बारे में कितना सोचा जाता है? ये औरतें चुनाव के बारे में क्या सोचती हैं? अपनी-अपनी पार्टियों का घोषणापत्र बनाते समय क्या नेताओं के ज़हन में इनमें से किसी औरत की सूरत आती है? क्या उन घोषणापत्र के लिए वादे या योजनाएं 

By सिन्धुवासिनी
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तहरीमा अहमद और लता बेनीवाल
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तहरीमा अहमद और लता बेनीवाल

चुनावों के बाद, वोट डालने के लिए लंबी कतार में खड़ी औरतों की तस्वीरें अख़बारों की सुर्खियां बनती हैं. मगर चुनाव से पहले इन औरतों के बारे में कितना सोचा जाता है? ये औरतें चुनाव के बारे में क्या सोचती हैं?

अपनी-अपनी पार्टियों का घोषणापत्र बनाते समय क्या नेताओं के ज़हन में इनमें से किसी औरत की सूरत आती है? क्या उन घोषणापत्र के लिए वादे या योजनाएं बनाते वक़्त इन महिलाओं का ख़याल उनके ज़हन में आता है?

आठ फ़रवरी को दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए चुनाव होना है और हमने इस चुनाव को महिलाओं के नज़रिए से देखने की कोशिश की.

इस सिलसिले में हमने दिल्ली की दो विधानसभा सीटों ओखला के जामिया नगर और अंबेडकर नगर के दक्षिणपुरी में रहनी वाली महिलाओं से बात की.

48 वर्षीय तहरीमा अहमद जामिया नगर में अपने बेटे के साथ ग़फ़्फ़ार मंज़िल कॉलोनी के एक अच्छे-खासे घर में रहती हैं.

तहरीमा के शौहर का कुछ महीनों पहले ही इंतक़ाल हुआ है लेकिन ये दुख उन्हें शाहीन बाग़ में चल रहे विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बनने से नहीं रोक पाता. वो दिल्ली चुनाव में वोट करने के लिए उत्साहित हैं और अपने अधिकारों से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं.

कुछ साल पहले तक तहरीमा एक स्कूल में बतौर शिक्षिका काम करती थीं लेकिन फ़िलहाल वो अपना घर संभालती हैं.

तहरीमा अहमद
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तहरीमा अहमद

अपने ड्रॉइंग रूम में बैठी तहरीमा की नज़रें टीवी पर आ रही न्यूज़ पर टिकी हुई हैं. टीवी पर लगातार ब्रेकिंग न्यूज़ फ़्लैश हो रही है और बताया जा रहा है कि बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ सुनील यादव को मैदान में उतारा है.

तहरीमा कहती हैं कि उनके लिए बिजली, पानी, शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी और विकास से जुड़े मुद्दे हमेशा सबसे ऊपर होते हैं. लेकिन अभी जो सवाल उन्हें सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा है वो ये है कि सही मायनों में सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष पार्टी कौन सी है?

वो कहती हैं, "एक मुसलमान औरत होने के नाते मैं इस बात को लेकर फ़िक्रमंद ज़रूर हूं कि कौन सी पार्टी, कौन सा नेता अल्पसंख्यकों की रक्षा करेगा? कौन इस नफ़रत के माहौल को ठीक करेगा?"

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तहरीमा अहमद
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तहरीमा अहमद

'केजरीवाल खुलकर सामने नहीं आए'

बीते कुछ महीनों से दिल्ली नागरिकता क़ानून (सीएए) और एनआरसी को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बनी हुई है. दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए और ऐसे वीडियो सामने आए जिसमें पुलिस छात्रों को पीटती हुई नज़र आई.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र भी सीएए और फ़ीस बढ़ोतरी के विरोध में सड़कों पर उतरे थे.

तहरीमा को इस बात का दुख का है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन मुद्दों पर बहुत खुलकर सामने नहीं आए. केजरीवाल ने यह स्पष्ट ज़रूर किया कि वो और उनकी पार्टी सीएए के ख़िलाफ़ है लेकिन इस पर वो उतने मुखर नहीं हुए, जितनी लोग उनसे उम्मीद कर रहे थे.

तहरीमा कहती हैं, "माना कि दिल्ली पुलिस केजरीवाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं है लेकिन कितना अच्छा होता अगर वो ख़ुद जेएनयू या जामिया जाकर घायल छात्रों से मिलते, उनकी हौसला अफ़ज़ाई करते. कितना अच्छा होता अगर वो शाहीन बाग़ जाकर प्रदर्शन करती महिलाओं से मिलते और उनका दुख-दर्द बांटते. धरनों के लिए पहचाने जाने वाले और धरने के बाद ही सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल का धरना देने बैठी औरतों से मिलने न जाना हैरान करता है, दुखी करता है."

तहरीमा कहती हैं कि हाल के दिनों में समाज में धर्म की खाई गहरी हुई है और ध्रुवीकरण तेज़ हुआ है.

वो कहती हैं, "जामिया में हुई हिंसा के बाद अब मुझे हमेशा अपने बेटे की फ़िक्र लगी रहती है. यहां तो हम मुसलमान बस्ती में रहते हैं लेकिन यहां से बाहर निकलते ही डर हावी हो जाता है.''

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तहरीमा अहमद
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तहरीमा अहमद

तहरीमा उम्मीद जताती हैं कि आने वाले वक़्त में हालात बेहतर होंगे. वो नई पीढ़ी पर हालात संभाल लेने का भरोसा जताती हैं.

हालांकि पिछले 27 वर्षों से दिल्ली में रह रही तहरीमा अहमद ये भी मानती हैं कि किसी केजरीवाल ने जाति-धर्म की राजनीति से थोड़ा आगे बढ़कर आम जनता के मुद्दों पर काम किया है.

वो कहती हैं, "मैंने जितना समझा है, उससे लगता है कि केजरीवाल की नीतियों से ग़रीब और कम आमदनी वाले लोगों को फ़ायदा हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य और सेहत के क्षेत्र में काम होने से निम्न-मध्यम वर्ग की स्थिति में सुधार हुआ है और सरकारी नीतियों का मक़सद भी यही होना चाहिए."

साथ ही तहरीमा की ये शिकायत भी है कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने अपने कई वादे पूरे करने में बहुत देरी की.

उन्होंने कहा, "चाहे वो सीसीटीवी कैमरे लगवाना हो या बसों में महिलाओं के लिए फ़्री सफ़र की सुविधा, ये क़दम उठाने में केजरीवाल ने ज़ाहिर तौर पर देरी की. मैं अब भी दिल्ली में देर रात अकेले बाहर नहीं रह सकती. अगर मुंबई में लड़कियां देर रात समंदर के किनारे ताज़ी हवा का लुत्फ़ उठा सकती हैं तो दिल्ली की सड़कों पर उन्हें अंधेरा होते ही डर क्यों लगने लगता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके डर को ख़त्म करने के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए गए."

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'बच्चे नाली का पानी पीने को मजबूर'

लता बेनीवाल
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लता बेनीवाल

ओखला सीट से आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह ख़ान उम्मीदवार हैं. यहां से कांग्रेस विजय कुमार और बीजेपी के ब्रह्म सिंह मैदान में हैं.

36 साल की लता बेनावाल चार बच्चों की मां हैं. उनका सबसे बड़ा बेटा 10 साल का है और सबसे छोटे दो बेटे महज़ नौ महीने के हैं. दोनों जुड़वा हैं. इसके अलावा उनकी सात साल की एक बेटी भी है.

लता वाल्मीकि समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. दक्षिणपुरी में उनका घर श्मशान से सिर्फ़ चंद किलोमीटर दूर है. घर से बाहर क़दम रखते ही 'राम-नाम सत्य है' कहती भीड़ किसी शव को कंधों पर टांगे गुज़रती दिखती है.

अपने घर में घुसते हुए लता जब नालियों की ओर इशारा करते हुए कहती हैं "पानी नहीं मिलने पर हम इसी नाली का पानी पीते हैं."

अरविंद केजरीवाल ने कुछ हफ़्तों पहले ही दावा किया था कि पिछले 70 वर्षों से दिल्ली में सिर्फ़ 58 फ़ीसदी कॉलोनियों में ही पाइप से पानी पहुंच पाता था लेकिन आम आदमी पार्टी की कोशिशों के बाद अब 93 फ़ीसदी कॉलोनियों तक पाइप लाइन के ज़रिए पानी पहुंच रहा है.

लता बेनीवाल केजरीवाल सरकार के इन दावों से असंतुष्ट हैं.

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लता बेनीवाल
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लता बेनीवाल

वो कहती हैं, "हमारी पाइप लाइन टूटी हुई है और टैंकर का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिलता है. ऐसे में हमें कई बार नाली का गंदा पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है. गंदे पानी की वजह से हमारी तबीयत अक्सर खराब रहती है. बच्चे तो आए दिन बीमार रहते हैं.''

इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के यगुराज चौधरी, बीजेपी के खुशी राम और आम आदमी पार्टी के अजय दत्त के बीच मुकाबला है.

लता के पति सचिन बेनीवाल ड्राइवर हैं और काम के सिलसिले में वो अक्सर बाहर ही रहते हैं. ऐसे में लता अकेले ही चारों बच्चों को संभालती घर और बाहर की दुनिया से जूझती रहती हैं. सुबह सोकर उठने से लेकर रात में सोने तक, वो पानी की चिंता में ही घुलती रहती हैं.

वो कहती हैं, "ग़रीब आदमी को सरकार से क्या चाहिए होता है? हर साल वोट देने के बाद भी हमारे बच्चे नाली का पानी पीने को मजबूर हैं. मेरा 10 साल का बच्चा दूसरी गली से पानी भरकर लाता है. इस चक्कर में कई बार वो स्कूल नहीं जा पाता. पानी की बाल्टियां ढो-ढोकर मैं बीमार हो गई हूं. अगर हमें पीने के लिए साफ़ पानी भी नहीं मिल सकता तो सरकारों और चुनावों का क्या मतलब है?''

लता की बस्ती के कई लोग थोड़े से साफ़ पानी की मांग करके थक चुके हैं और इसी नाराज़गी में वो इस बार वोट न देने का फ़ैसला कर चुके हैं. मगर लता के मन में अब भी उम्मीद बाकी है.

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लता बेनीवाल
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लता बेनीवाल

लता इसी उम्मीद से वोट देने जा रही हैं कि सरकार को उनकी तकलीफ़ें दिखेंगीं और वो उन्हें दूर करने का कोई उपाय करेगी.

वो कहती हैं, "हम सरकार से कुछ ज़्यादा नहीं मांग रहे हैं. मैं पूछती हूं कि क्या हमारी बस्तियों में रोशनी नहीं होनी चाहिए? क्या हमारे आस-पास सफ़ाई नहीं होनी चाहिए? हमें पीने के लिए साफ़ पानी नहीं मिलना चाहिए? बस इतना ही तो मांग रहे हैं हम. हमें इतना ही दे दो. हम इसी में ख़ुश हैं.''

वैसे तो लता के मन में केजरीवाल और पहले की बाकी सभी सरकारों से नाराज़गी ही है लेकिन वो मानती हैं कि स्कूलों में शिक्षा सुधरी है.

वो कहती हैं, "मेरा बेटा बताता है कि अब उसके स्कूल में पढ़ाई पहले से अच्छी होती है. कुछ सुविधाएं भी बढ़ी हैं...जो बात है, सो है. मैं उससे क्यों इनकार करूं."

क्या धर्म का मुद्दा लता की ज़िंदगी में कोई फ़र्क डालता है? क्या धर्म उनके वोट को प्रभावित करेगा?

लता इसका दो टूक जवाब देती हैं. वो कहती हैं, "हमें तो बस वही सरकार चाहिए जो हमारी दिक्कतें सुलटा दे. धर्म से हमें कोई लेना-देना नहीं है."

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English summary
Delhi Assembly Elections 2020: What do these Dalit and Muslim women want
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