Delhi Assembly Elections 2020: BJP की यही कमजोरी AAP की सबसे बड़ी ताकत है
नई दिल्ली- दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। दिल्ली में हुए पिछले पांच अलग-अलग चुनावों में जिन तीनों पार्टियों के बीच मुकाबला रहा है, वही तीनों मुख्य पार्टियां आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही आमने-सामने हैं। इनमें शीला दीक्षित की मौत के बाद कांग्रेस बड़े नेतृत्व संकट से गुजर रही है। पिछले पांचों चुनाव के परिणाम ये भी बतातें हैं कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का प्रदर्शन एक-दूसरे से आपस में काफी कुछ जुड़ा हुआ है। जब एक पार्टी जरा ठीक प्रदर्शन करती है तो दूसरी पिछड़ जाती है। यहां पर हम ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि इन तीनों पार्टियों की ताकत क्या है, उनके सामने सबसे चुनौती क्या है और उनकी कमजोरियों क्या हैं।
जो बीजेपी की कमजोरी है, वही एएपी की ताकत है
दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव की तारीखों के ऐलान के एक दिन बाद बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी ये दिख रही है कि उसके पास मुख्यमंत्री का कोई उम्मीदवार नहीं है। पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा ही आगे रखकर चुनाव मैदान में उतरना पड़ रहा है। भाजपा की यही कमजोरी आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है, जिसके पास दिल्ली के मतदाताओं के लिए अरविंद केजरीवाल जैसे करिश्माई नेता मौजूद हैं। बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है कि जब बात दिल्ली की आई है तो वह केजरीवाल की काट के तौर पर किसी को भी आगे नहीं कर पा रही है। इसके अलावा दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा में सुधार के दावे और मोहल्ला क्लिनिक के बेहतर प्रदर्शन के दावे भी सत्ताधारी दल के पक्ष में जाते हैं। उपर से सस्ती बिजली और पानी के अलावा दिल्ली के लोगों के बीच आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से मुफ्त में बांटी गई कई सुविधाएं भी केजरीवाल की पार्टी के लिए बहुत बड़ी ताकत नजर आती है। इन दोनों पार्टियों के बीच कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण 2019 का लोकसभा चुनाव है, जिसमें उसने सत्ताधारी 'आप' को काफी पीछे छोड़ दिया था और उसके अल्पसंख्यक वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा दी थी।
आम आदमी पार्टी की कमजोरी और भाजपा की ताकत
ऐसा नहीं है कि कमजोरियां सिर्फ बीजेपी के ही खाते में गई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से पांच वर्षों में गंदे नाले में तब्दील हुई दिल्ली से गुजरने वाली यमुना में भी काफी पानी बह चुका है। सबसे बड़ी बात ये है कि अब केजरीवाल और उनकी पार्टी में कुछ भी नयापन नहीं बचा है और वह बाकी राजनीतिक दलों और राजनेताओं की जमात में ही शामिल हो चुके हैं। उनके और उनकी पार्टी के साथ भी तमाम विवाद जुड़े हैं। पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी तो पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम है, जिसमें वह खिसकर तीसरे पायदान पर पहुंच गई थी। इसके ठीक उलट पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन राजधानी में बहुत ज्यादा बेहतर हुआ है। पार्टी ने दिखाया है कि उसके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में तो सबसे बड़ी वोटों की मशीन तो हैं ही, दिल्ली के विकास में केंद्र की सहायता का भरोसा देकर वह लोकसभा की तर्ज पर विधानसभा के लिए भी वोट बटोर मशीन साबित हो सकते हैं। जबकि, शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस के पास भी कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा है जो वोट भी बटोर सकें।
सभी दलों के पास अलग-अलग अवसर
अगर केजरीवाल को लोकसभा चुनाव परिणामों के बारे में सोच कर डर लग रहा होगा तो हाल के महीनों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में उन्हें अपने लिए बड़ा अवसर भी दिख रहा होगा। हाल में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां क्षेत्रीय दलों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। झारखंड में तो भाजपा को सत्ता से बाहर कर हेमंत सोरेन को सरकार बनाने का भी मौका मिल गया है। इसके उलट बीजेपी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के जामिया, सीलमपुर और दिल्ली गेट इलाकों में हुई हिंसा को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है। उसके पास मेट्रो विस्तार में अड़ंगेबाजी, आम आदमी पार्टी के नेताओं में कलह और उनसे जुड़े गंभीर विवादों को उछालने और टकराव की राजनीति को राजधानी के विकास में बाधा के तौर पर पेश करने का भी मौका है। वहीं नागरिकता संशोधन कानून के बाद कांग्रेस के पास खुद को बीजेपी विरोधी मुख्य चेहरा के तौर पर पेश करने का मौका है, उसपर से महाराष्ट्र (चुनाव के बाद), हरियाणा और झारखंड के परिणामों से भी उसके हौसले बुंलद हुए हैं।
दिल्ली की तीनों मुख्य पार्टियों की बड़ी चुनौतियां
2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को दिल्ली की 67 सीटें मिलीं थीं और उनमें से ज्यादातर विधायक अभी भी उसके साथ हैं। ऐसे में उन सभी विधायकों को दोबारा टिकट देना पार्टी सुप्रीमो के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है और अगर उन्होंने कुछ के टिकट काटे तो उन्हें बागियों की जमात से निपटना भी भारी पड़ सकता है। दिल्ली में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत कुछ कांग्रेस पर निर्भर करता है। अगर पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा तो मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच सीधा हो सकता है, जो कि बीजेपी के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है। वहीं कांग्रेस की दिक्कत ये है कि आम आदमी पार्टी ने अपनी खोयी हुई ताकत फिर से वापस पा ली तो पार्टी भाजपा और 'आप' के बीच और ज्यादा दब कर रह जाएगी।