Delhi Assembly Elections 2020: ये दोनों फैक्टर तय करेंगे कौन जीतेगा चुनाव?
नई दिल्ली- दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद इस बात पर चर्चा शुरू हो चुकी है कि 8 फरवरी को जब मतदाता वोट डालने ईवीएम मशीनों तक पहुंचेंगे तो वे क्या फैक्टर हो सकते हैं, जिससे उनकी वोटिंग प्रभावित हो सकती है। हम यहां उन दो फैक्टर्स का विश्लेषण कर रहे हैं, जिससे दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे तय होने की संभावना है। ये विश्लेषण पिछले चार चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए एक सर्वे के आधार पर किए गए हैं।
पहला फैक्टर- क्या वोटिंग पैटर्न 2014-2015 के चुनाव वाला ही होगा?
पहला फैक्टर ये है कि 8-9 महीने पहले लोकसभा चुनाव के लिए वोट डालने वाले मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न वही रहेगा या प्रदेश का चुनाव होने की वजह से उसमें बदलाव आ जाएगा? अगर हम 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के पैटर्न को देखें तो दिल्ली के वोटरों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान अपना वोटिंग पैटर्न पूरी तरह से बदल दिया था। मसलन, जिन वोटरों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 60 विधानसभा सीटों पर बढ़त दिलाई थी और आम आदमी पार्टी मुश्किल से 10 सीटों में आगे रही थी, उन्हीं मतदाताओं ने फरवरी, 2015 के चुनावों में भाजपा को केवल 3 सीटों पर समेट दिया और 67 सीटें आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दिए। सबसे बड़ी बात ये है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में जिन मतदाताओं ने एएपी के लिए वोट दिया था, उनमें से ज्यादातर 2015 रे विधानसभा चुनावों में भी उसके साथ रहे थे। जबकि, आम चुनावों में भाजपा के साथ जाने वाले ज्यादातर मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में अपना रुख बदल लिया था। अब सवाल है कि क्या 2020 के चुनाव में दिल्ली के वोटर अपना वही वोटिंग पैटर्न दोहराएंगे? अगर, हम हाल के हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के साथ हुए ओडिशा विधानसभा चुनावों के पैटर्न को देखें तो वहां भी यही फैक्टर प्रभावी नजर आया है, जिसमें लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए मतदाताओं ने अलग-अलग फैसला सुनाया है।
दिल्ली के मतदाता किस पार्टी के साथ ज्यादा डटे रहे?
2019 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे में भी यही बात सामने आई थी कि दिल्ली विधानसभा और दिल्ली की लोकसभा सीटों के चुनावों में अलग-अलग दलों के पक्ष में वोटिंग करने के मामले में आम आदमी पार्टी की तुलना में भाजपा और कांग्रेस ज्यादा प्रभावित हुई है। मसलन, एएपी के ज्यादातर वोटरों ने दोनों चुनावों में उसी के लिए वोटिंग करने की बात कही। जबकि, लोकसभा चुनावों भाजपा को वोट देने वाले काफी सारे वोटरों ने कहा कि अगर अभी विधानसभा चुनाव हो जाय तो उनका फैसला अलग होगा। जैसे लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट देने वाले 82% लोगों का जवाब था कि अगर विधासभा चुनाव हो तो भी उसका वोट इसी पार्टी के पक्ष में जाएगा। लेकिन, बीजेपी के सिर्फ 56% वोटर और कांग्रेस के सिर्फ 57% वोटरों ने ही विधानसभा चुनावों में भी यही फैसला दोहराने की बात कही थी।
दूसरा फैक्टर- कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा?
इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में नतीजों का दारोमदार काफी हद तक कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी निर्भर करेगा। 2013 के विधानसभा चुनावों से लेकर 2019 के लोकसभा चुनावों तक के चुनाव परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव कांग्रेस के प्रदर्शन के भरोसे ही टिका रहा है। जब 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा तो आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक तरीके से 70 में से 67 सीटें जीत लीं। लेकिन, जैसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर दहाई अंकों में पहुंचा एएपी तीसरे नंबर पर खिसक गई और किसी भी विधानसभा क्षेत्र में वह बढ़त नहीं बना सकी। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में एएपी को जब 29.5% वोट मिले तो कांग्रेस ने 24.6% वोट हासिल किए और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज 15.2% वोट ला सकी तो बीजेपी ने भले ही सातों लोकसभा सीटें जीत लीं, लेकिन एएपी ने 33% वोट पाकर 10 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई। 2015 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब हुआ और उसे महज 9.7% वोट मिले तो आम आदमी पार्टी को 54.3% वोट भी मिले और वह 67 सीटें जीत गई। लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस फिर से 22.5% वोट लेकर 5 सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही तो आम आदमी पार्टी का वोट शेयर गिरकर 18.1% हो गया और यह उसका अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन साबित हुआ। यानि अगर आने वाले चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अपना प्रदर्शन अच्छा किया तो अरविंद केजरीवाल का खेल खराब हो सकता है।
क्या करेंगे मुस्लिम वोटर?
2019 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे से एक बात और जाहिर होती है कि मुस्लिम वोटरों का रुझान एएपी और कांग्रेस में से कांग्रेस की ओर बहुत बड़े पैमाने पर रहा। कांग्रेस और एएपी को मिले दलित वोटों का भी यही हाल रहा। जाहिर तौर पर बीजेपी को इस चुनाव में भी बहुत कम मुस्लिम वोटरों का ही साथ मिल सका। अब 11 फरवरी का चुनाव परिणाम इसी बात पर तय करेगा कि आम आदमी पार्टी क्या कांग्रेस के खाते में गए मुस्लिम और दलित वोटों को अपने खाते में लाने में कामयाब होगी? इसके अलावा बीजेपी के उन मतदाताओं को वह कितना रिझा पाएगी जो पिछली बार प्रदेश चुनाव में उसके साथ जुड़ गए थे। अगर केजरीवाल की पार्टी ऐसा नहीं कर पाई तो दिल्ली का नतीजा पूरी तरह पलट भी सकता है।