शाहीन बाग प्रोटेस्ट ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 को किस तरह बना दिया है दिलचस्प?
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार शाहीनबाग प्रोटेस्ट खूब चर्चा में है। भाजपा के दिग्गज और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक अपने चुनावी रैली में दिल्ली के लोकल मुद्दों पर मुखर होने के साथ साथ शाहीनबाग को भी उतना ही तवज़्ज़ो देते दिख रहे हैं। इस मायने में देखें तो दिल्ली चुनाव में शाहीनबाग परचम लहरा रहा है। CAA, NPR और NRC के मुद्दे पर देश भर में जारी विरोध प्रदर्शन के बीच शाहीनबाग इन प्रदर्शनों का केंद्र बन चुका है। ऐसा इसलिए भी हुआ है कि इस प्रदर्शन में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी ज्यादा है और महिलाएं करीब 2 महीने के बाद भी अपने मुद्दों से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका जोश कहीं से भी कम हुआ नहीं दिख रहा है।
शाहीनबाग से कैसे यह चुनाव रोमांचक हो गया
वैसे तो CAA, NRC मुद्दों की गूंज हाल में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भी रहा जहां भाजपा की सरकार थी, लेकिन इन मुद्दों से भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ था। अब दिल्ली में विधानसभा चुनाव है जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है और अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में सामने हैं। केजरीवाल जहां अपने पिछले कार्यकाल में किए गए कामों पर अगले कार्यकाल के लिए दिल्ली की जनता से जनादेश मांग रहे हैं तो भाजपा 'दिल्ली के दिल में है मोदी' जैसे स्लोगन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर जनादेश मांग रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी शीला दीक्षित के कार्यकाल में किए गए कामों को गिना रही है और कह रही है 'वादे निभाए थे वादे निभाएंगे'।
इन सब वादों और स्लोगन के वाबजूद इसी दिल्ली के एक कोने में शाहीनबाग है जिसने इस बार के दिल्ली चुनाव को हर पार्टी के लिए रोमांचक बना दिया है चाहे वह पार्टी आम आदमी पार्टी हो भाजपा हो या फिर कांग्रेस। शाहीनबाग से कैसे यह चुनाव रोमांचक हो गया है इसे समझने के लिए कुछ बातों पर गौर करते हैं।
दिल्ली में मुस्लिम समीकरण
दिल्ली की तकरीबन 2.3 करोड़ आबादी में 13 प्रतिशत मुसलमान हैं। आबादी के लिहाज से दिल्ली में यह तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। दिल्ली विधानसभा चुनाव ऐसे समय में हो रहा है जब पूरे देश में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है। वैसे तो इस कानून के विरोध में हर जाति सम्प्रदाय के लोग अपने अपने तरीके से हैं लेकिन मुसलमानों में इस कानून को लेकर असुरक्षा की भावना पुरजोर है। शाहीनबाग मुस्लिम बहुल इलाका है। इन 13 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के किसी एक राजनीतिक पार्टी की तरफ शिफ्ट होने से पुराने समीकरण ध्वस्त और नए समीकरण बन सकते हैं। दिल्ली की करीब आठ से दस सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। इन सीटों में ओखला, सीलमपुर, तुगलकाबाद, बल्लीमारान, मुस्तफाबाद आदि काफी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हर पार्टी की कोशिश रहती है कि इन बहुल मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारे। वहीं करीब 32 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का असर है।लेकिन भाजपा की रणनीति और रहती है।
भाजपा की रणनीति
भाजपा का अपना एक अलग ही स्टैंड है जिसमें वह हिंदुत्व की राजनीति करती आई है। वैसे तो उसने कभी इस बात को छिपाई नहीं थी लेकिन अमित शाह के भजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से यह खुलकर सामने आ गया। भाजपा अपने स्टैंड में क्लियर है। वह चुनाव में उन मुद्दों को तरजीह देती है जिससे हिंदू वोट उनके पक्ष में हो। केंद्रीय गृह मंत्री जब चुनावी सभा से यह बोलते हैं कि 'बटन इतने जोर से दबाना कि करेंट शाहीनबाग में लगे' तो वह अपने उसी स्टैंड को दुहरा रहे होते हैं। चूंकि इस बार कि परिस्थितियां भी पिछले विधानसभा चुनाव से अलग है। पिछले चुनाव के मुद्दे अमूमन देश में होने वाले चुनावी मुद्दे से अलग थे। केजरीवाल उससे पहले राजनेता नहीं थे। इस बार चूंकि केजरीवाल अपना एक कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और अब वे राजनीति के कुशल खिलाड़ी हैं तो उनके सामने भी इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की चाल से पार पाने की चुनौती पहले से अधिक है। भाजपा का अपना एक कोर वोट बैंक है, जिसके सहारे उसने मोदी के नाम पर लोकसभा की सभी सात सीटों पर कब्ज़ा किया था। अब इस चुनाव में भाजपा खुलकर अपने स्टैंड पर है। इसलिए अगर इस विधानसभा चुनाव में किसी दल को सबसे कम परेशानी है तो वह भाजपा ही है। भाजपा दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से हिंदू वोटर निर्णायक 38 सीटों पर फोकस करती दिखती है। वह इन्हीं सीटों के सहारे दिल्ली का तिलिस्म तोड़ना चाह रही है। अब शिरोमणि अकाली दल का साथ मिलने से उसकी उम्मीदें कुछ और बढ़ गई हैं।
कांग्रेस की रणनीति
भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व तेवर ने कांग्रेस के ना चाहते हुए भी उसे मुस्लिम समर्थक पार्टी केरूप में प्रचारित करने में कामयाब हुई है। CAA, NPR, NRC जैसे मुद्दों पर कांग्रेस का साफ स्टैंड और इसके विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों को उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन देने से मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो जाए तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होगी। कांग्रेस को इस बात का भरोसा है कि भाजपा से नाराज वोटर इस बार उसे वोट करेंगे। खासकर के मुस्लिम वोटों का इस बार बंटवारा नहीं होगा क्योंकि मुस्लिम अपने कौम में उत्पन्न असुरक्षा की भावना के लिए किसी राष्ट्रीय पार्टी के 'शेल्टर' में जाने को प्रार्थमिकता देगी। और अपने कोर वोटर के सहारे इस समीकरण से इस चुनाव में वह निर्णायक हस्तक्षेप करेगी।
आम आदमी पार्टी की रणनीति
वैसे तो आम आदमी पार्टी की रणनीति काम पर वोट मांगने की है। लेकिन राजनीति में जो चीजें जितनी सीधी दिखती हैं उतनी होती नहीं। शाहीनबाग चूंकि अब देश भर में ख्यात है। और यह दिल्ली में है। तो शाहीनबाग प्रोटेस्ट से इस विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चुनौती अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ही दिख रही है। एक तो केजरीवाल की पार्टी सत्ताधारी पार्टी है जिसनें 70 में से 67 सीटों पर वोटरों का बहुमत प्राप्त किया था। शाहीनबाग का प्रोटेस्ट राष्ट्रीय स्तर का प्रोटेस्ट बन गया है जिसमें अन्य कौमों के साथ मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना चरम पर है। केजरीवाल का इस मुद्दे पर मध्यम मार्ग में चलना ही उसके गले की हड्डी बन सकती है। एक तरह से देखें तो भाजपा और कांग्रेस का स्टैंड इस मामले में साफ है। लेकिन आम आदमी पार्टी अपने हिंदू बेस वोटर को बचाने के चक्कर में मुसलमानों के लिए संदिग्ध बनती जा रही है। इसी से थोड़ी बहुत राहत पाने के लिए मनीष सिसौदिया शाहीनबाग प्रोटेस्ट का समर्थन करते हैं। लेकिन हिंदू और सिख वोटर के अप्रत्यक्ष दबाव के चलते वहाँ केजरीवाल शिरकत नहीं करते हैं। मनीष सिसौदिया ने तो यहाँ तक कहा था कि अगर भाजपा वाले उन्हें आंदोलन के साथ देख लेते हैं तो भाजपा को उन्हें बदनाम करने का मौका मिलेगा। लेकिन भाजपा ने इस चुनाव में जिस तरह की राजनीति शुरू की है उससे आम आदमी पार्टी जिस स्थिति से बचना चाहती थी उसी में अनजाने फंस गई दिख रही है।