दिल्ली विधानसभा चुनाव: भाजपा की तरफ से फेंकी जा रहीं बाउंसर को क्यों डक कर रहे हैं केजरीवाल?
नई दिल्ली। दिल्ली चुनाव का अखाड़ा तैयार हो गया है। दिल्ली के दंगल में बाजी मारने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति के साथ कमर कस कर चुनावी अखाड़े में कूद चुकी है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जनता में आम सहमति बनाने के लिए भाजपा ने जिस डोर टू डोर कैम्पेन की शुरुआत करने की बात कही थी, उसी कैम्पेन से भाजपा दिल्ली में एक साथ 'एक तीर से दो निशाना' लगाने की कोशिश में है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी कहा है कि वह इस चुनाव में दिल्ली की जनता के डोर टू डोर तक जाएगी। वैसे तो अब इस चुनावी 'कैम्पेनिंग' की शुरूआत हो चुकी है। लेकिन दोनों पार्टियों के इस कैम्पेन में फर्क है। भाजपा जहां इस कैम्पेन में केजरीवाल सरकार के उन मुद्दों को भुनाने की कोशिश कर रही है जिसपर केजरीवाल सरकार पिछड़ी लगती है; तो वहीं अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अपनी सरकार की उपलब्धियों को बता रही है।
इन दो पार्टियों के बीच दिल्ली की सत्ता पर काफी समय तक काबिज रही कांग्रेस पार्टी शून्य से अपना सफर शुरू करेगी। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने भी ऐसी उम्मीद जगाई है कि वह भी दिल्ली के लोगों के लिए राजनीतिक वादे करने में भाजपा या आम आदमी पार्टी से पीछे नहीं रहेगी। चूंकि भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और लोकसभा चुनाव 2019 में दिल्ली की सभी सात सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है तो यह माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी को इस विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस से ज्यादा टक्कर देगी। भाजपा भी इस बात को अच्छी तरह से समझती है और लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित भी है; तभी उसने इस दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 को अपने सबसे मजबूत और सफल चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ने की बात कही है। अब जब ऐसा है तो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली की जंग फतह में बाधाएं भी आएंगी ही, ऐसा केजरीवाल भी समझते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में इन्हीं दोनों की रणनीति को हम आगे समझने की कोशिश करेंगे।
भाजपा (BJP) ने नहीं बताया सीएम चेहरा
भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सत्ता से काफी समय से दूर रही है। इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आगे होना और बहुत हद तक गृहमंत्री अमित शाह का चुनावी कमान संभालने से ऐसा लगता है कि भाजपा इस चुनाव में दिल्ली का फेवरेट बनने का हर संभव प्रयास करेगी। वह अपनी तरफ से इसबार किसी चूक की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है। शायद यह भी एक कारण है कि इसलिए भाजपा ने इस विधानसभा चुनाव में पिछली बार करिश्मा करने वाले अरविंद केजरीवाल के सामने अपनी पार्टी से किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया है। जबकि भाजपा का अमूमन यह स्टैंड रहा है कि वह चुनाव में चेहरे पर दांव लगाती है। और इसका फायदा भाजपा को केंद्र से लेकर राज्य चुनाव तक में मिलता भी रहा है। लेकिन यहां परिस्थिति भाजपा के अनुकूल नहीं है। चुनाव आयोग के द्वारा विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद हुए मीडिया के राजनीतिक सर्वे में अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता दिल्ली में मुख्यमंत्री के तौर पर अब भी बरकरार दिखती है।
भाजपा का ट्रेड मार्क क्या है जिसपर वह यकीन करती है?
जहाँ तक भाजपा के चुनावी ट्रेडमार्क की बात है तो भाजपा अपने चुनाव अभियान के केंद्र में राष्ट्रवाद को रखती आई है। इस राष्ट्रवाद के कैनवास पर वह पाकिस्तान, घुसपैठिया, मंदिर, सेना, हिंदू राष्ट्र, कश्मीर आदि जैसे मुद्दों की बात करती रही है। उसने इन मुद्दों पर निकट समय मे जबरदस्त सफलता भी पाई है। आज भी, जब भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार दूसरी बार बना चुकी है तब भी वह सबसे ज्यादा फोकस अपने कोर मुद्दे पर ही करती दिख रही है। रोजगार, अर्थव्यवस्था, शिक्षा-स्वास्थ्य, सड़क आदि जैसे मुद्दों पर वह वैसी चर्चा करती नहीं दिखती है जिससे लगे कि आम जनता से जुड़े ऐसे मुद्दे उसके कोर मुद्दे हों।
क्या भाजपा एक बार फिर अपने इसी कोर मुद्दे पर यकीन करेगी?
दरअसल ऐसी बातें इसलिए उठ रही हैं क्योंकि हाल में हुए हरियाणा और झारखण्ड विधानसभा चुनाव में भाजपा का यह कोर मुद्दा उसके लिए मददगार साबित नहीं हुआ है जबकि इसी समय भाजपा अपने एक्शन में अपने कोर मुद्दों पर चरम पर थी। चुनाव प्रचार में तीन तलाक, राम मंदिर और आर्टिकल 370 से लेकर नागरिकता संशोधन बिल तक का मुद्दा उछालते रहे लेकिन ये सारे मुद्दे, वोटों को पार्टी के पक्ष में कन्वर्ट नहीं कर पाए। भाजपा को हाल में खुद के ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं ही होगी इसलिए दिल्ली की जंग में वह इसबार ज्यादा सजग है। इसबार यह चुनौती खुद भाजपा को है कि वह इस चुनाव में फिर से आर्टिकल 370 से लेकर नागरिकता कानून तक पर खुलकर बोलती है या नहीं। लेकिन बढ़ती बेरोजगारी, लुढ़कती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई जैसे कारकों ने भाजपा के सामने ज्यादा विकल्प खुले नहीं रखे हैं जिसपर पार्टी मुखर होकर इस चुनाव में अपनी उपलब्धियां गिना सके। अमित शाह ने भी हाल के अपने रैली में लगभग इन मुद्दों को न छूते हुए जनता से 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' को सबक सिखाने की अपील की है। भाजपा का जामिया, जेएनयू विवाद पर विपक्ष को घेरना यह दिखाता है कि वह अंत तक अपने कोर मुद्दे पर ही आएगी जहां दिल्ली की जनता से वायदा इसके संग-संग चलेगा; जैसे कच्ची कॉलोनियों को नियमित कर देने की बात हो या फिर आप सरकार की दी हुई सुविधाओं को पांच गुना कर देने जैसी बातें। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि भाजपा अपने कोर मुद्दों का चयन अधिक सजगता से इस चुनाव में नफा-नुकसान देखकर करेगी।
अरविंद केजरीवाल इस बार क्यों भाजपा के कोर मुद्दों पर नहीं बोल रहे हैं?
अरविंद केजरीवाल भले ही खुद के लिए यह कहते हैं कि उन्हें राजनीति नहीं आती है लेकिन हाल के दिनों में उनका किसी विवादों में नहीं पड़ना उनके राजनीतिक कौशल को दिखाता है। केजरीवाल सत्ता में आने के बाद जब-जब मोदी सरकार के साथ विवादों में पड़े हैं तब-तब वो आलोचना के शिकार हुए हैं भले ही उनका कहना हो कि उनका सरकार से टकराना आम जनता के हितों से जुड़े हुए मामलों को लेकर हुआ है। केजरीवाल यह समझ चुके हैं कि भाजपा के कोर मुद्दों पर उनसे मुकाबला नहीं किया जा सकता है। भाजपा की यह रणनीति होती है कि वह विपक्ष को अपने मुद्दों के पिच पर लाए जहां वह लगभग अजेय है। केजरीवाल का नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से खड़ा होना और लोकसभा चुनाव में आक्रामक होना ऐसी ही गलती थी जिसे वह समझ चुके हैं।
अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक मुद्दे और रणनीति
समय के साथ साथ केजरीवाल की राजनीति भी बदली है। इसलिए केजरीवाल इस बार विनम्र दिख रहे हैं। भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी अरविंद केजरीवाल इस चुनाव में मुद्दों पर भटक नहीं रहे हैं। वे सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं या सवाल जवाब कर रहे हैं जिससे दिल्ली की जनता का सीधा सरोकार है। वे अब आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से थोड़ा दूर हटकर विपक्ष को काम करके दिखाने वाली राजनीतिक चुनौती दे रहे हैं। विपक्ष के आरोपों पर वह सबूत समेत जवाब दे रहे हैं। तो वहीं वे चुनाव के मुख्य मुद्दों में एक तरफ आम आदमी पार्टी का दिल्ली स्कूल और अस्पताल का मॉडल रखते हैं तो दूसरी तरफ भाजपानीत दिल्ली एमसीडी और पुलिस का मॉडल। केजरीवाल का पिछले चुनाव में किया गया वायदा हिट रहा था। इसलिए केजरीवाल पिछले चुनाव में किए गए अपने वादों पर बात करते हैं और इस चुनाव में फिर नए वायदों के साथ आते हैं जिसमें यमुना नदी को साफ करना, साफ पानी की पर्याप्त पहुँच सुनिश्चित करना, प्रदूषण को कम करना आदि जैसे मुद्दे प्रार्थमिकता में हैं। उनकी इस राह पर इस बार अन्य विपक्षी दल भी चल रहे हैं।