
फ़िरोज़ाबाद में गर्भवती एचआईवी महिला की डिलीवरी में देरी, नवजात की मौत का आरोप, क्या है पूरा मामला ?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डिलीवरी के दौरान एड्स पीड़ित महिला के बच्चे की मौत से एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठ रहे हैं.
पश्चिम उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद के सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला की डिलीवरी में लापरवाही के आरोप के चलते नवजात की मौत का मामला सामने आया है.
गर्भवती महिला का प्रसव कराने उनके परिजन सरकारी अस्पताल लाए थे. महिला के पिता ने मीडिया से कहा, "इन्होंने मेरी बच्ची को हाथ नहीं लगाया, बच्ची मेरी ऐसे ही पलंग पर तड़पती रही.. 3 बजे से लेकर रात के 8 बज गए हाथ नहीं लगाया."
लेकिन दूसरी ओर अस्पताल प्रशासन का दावा है कि महिला को जब अस्पताल में लाया गया तो तीन डॉक्टर उनको देखने के लिए मौजूद थे और मरीज से ख़राब व्यवहार के चलते एक स्टाफ़ नर्स पर कार्रवाई की गई है.
महिला के साथ एचआईवी पर काम करने वाली एक स्वयं सेवी संस्था की फील्ड अफ़सर के मुताबिक़, 'महिला की रिपोर्ट देखने के बाद मेडिकल स्टाफ़ ने डिलीवरी में देरी कर दी क्योंकि वह एचआईवी पॉजिटिव थी. जिसके चलते गर्भवती महिला पांच घंटे से ज़्यादा समय तक डिलीवरी के लिए स्ट्रेचर पर तड़पती रही.'
पिता: तड़पती रही बेटी, नहीं मिला इलाज
महिला के पिता ने बताया कि पहले पहले वो प्रसव के लिए अपनी बेटी को एक निजी अस्पताल ले गए थे जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बच्चा 10 से 15 मिनट में हो जाएगा.
निजी अस्पताल ने डिलीवरी के लिए जब पिता से 15 से 20 हज़ार रुपये जमा कराने को कहा तो पैसे ना होने की वजह से वो उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए
पिता सोमवार दोपहर तीन बजे अपनी बेटी को लेकर अस्पताल पहुंचे थे. उन्होंने बताया, "ये तो हमें भी नहीं पता क्यों नही लगाया हाथ. ये तो वो ही बता सकते है. होगी कोई बात."
पिता का आरोप है कि उनकी बेटी को दोपहर तीन बजे से लेकर रात के आठ बजे तक किसी ने भी हाथ नहीं लगाया. वो कहते हैं, "हमारी मोड़ी (लड़की) के पेट में दर्द हुआ ,ना कोई इंजेक्शन लगाया ना कोई दवाई दी."
बाद में उन्होंने अहाना नाम के एक एनजीओ की फ़ील्ड अफसर सरिता यादव को फोन लगा कर मदद मांगी और पिता का कहना है कि सरिता यादव के अस्पताल पहुँचने के बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने उनकी बात सुनी.
उन्होंने कहा, "मुझे ये नहीं मालूम बच्चा ज़िंदा था या नहीं. उठा कर ले गए मशीन में रख दिया. मुझे आज सवेरे (22 नवंबर को) फोन करके बताया कि बच्चा आपका ख़त्म हो गया."
सरिता यादव: एक डॉक्टर ने कहा कि ज़्यादा पढ़ी लिखी हो तो खुद निकाल लो बच्चा

अहाना नाम के एनजीओ में एचआईवी के मरीज़ों के साथ करने वाली फ़ील्ड अफसर सरिता यादव का कहना है कि वो इस गर्भवती महिला के संपर्क में दो महीने पहले आईं और उसके सेहत पर लगातार नज़र रखे हुए थी और डिलीवरी अस्पताल में करवाने की नसीहत दे रही थीं.
उनका दावा है कि घटना से दो दिन पहले परिजन महिला को सरकारी अस्पताल लेकर गए थे लेकिन उनका कहना था कि वहां पर भी भर्ती करने से मना कर दिया था.
सरिता ने ही उन्हें प्राइवेट अस्पताल से पेल्विक एक्जामिनेशन करवाने को कहा था जिससे डिलीवरी टाइम पता चल जाए. निजी अस्पताल से जांच कराने पर डिलीवरी टाइम बस 10 से 15 मिनट का ही बताया गया. लेकिन पैसे ना होने की वजह से पिता को अपनी बेटी को सरकारी अस्पताल में फिर से ले जाना पड़ा.
सरिता कहती हैं कि जब वो अस्पताल पहुंचीं तो पीड़िता को, "स्ट्रेचर पर लेटा रखा था. मैंने डॉक्टर स्टाफ़ से बहुत विनती की लेकिन उनको किसी ने टच नहीं किया, उसका बच्चा फंसा हुआ था. कुछ पार्ट अंदर था कुछ निकला हुआ था. बच्चा एकदम से फंसा हुआ था."
सरिता कहती हैं कि उन्होंने मौजूद सीनियर डॉक्टर से बताया, "मरीज़ बोल रही है कि मुझे बच्चा महसूस नहीं हो रहा है एक बार इसकी धड़कन चेक करके मुझे बता दीजिए तो डॉक्टर ने कहा कि जो मशीन सामने लगी है उसको खींचो और मरीज के पास लगाओ और धड़कन देख लो."
सरिता का दावा है कि उन्होंने अस्पताल के सीएमएस को पहले से फ़ोन कर जानकरी दे दी थी कि अस्पताल में एक एचआईवी पॉजिटिव महिला को डिलीवरी के लिए लाया जा रहा है.
वो सीएमओ से भी बात करने का दवा करती हैं और कहती हैं, "सीएमओ साहब से मेरी बात हुई, तो उन्होंने कहा कि हम थोड़ी देर में किसी को भेजते हैं उसके बावजूद भी रात के नौ बज गए उस टाइम तक कुछ भी नहीं हुआ."
सरिता यादव यह भी कहती हैं कि जब उनसे देखा नहीं गया तो लेबर रूम के स्टाफ़ से उनका झगड़ा भी हुआ. उनका आरोप आरोप है कि, "एक डॉक्टर मुझसे बोली कि तुझे ज़्यादा पड़ी है तो अंदर लेबर रूम में जाकर बच्चे को खुद निकाल ले."
सरिता यादव का दवा है कि अंत में एक आया और स्टाफ़ नर्स ने डिलीवरी की लेकिन बच्चा मृत निकला और उसके बाद परिवार को संतुष्ट करने के लिए उसे कुछ इंजेक्शन दिए गए और एसएनसीयू में भेज दिया गया और हमसे कहा कि बच्चे में सांस है.
सरिता यादव कहती हैं, "फिर सुबह दूसरे दिन फोन आया था एसएनसीयू से कि बच्चा डेथ कर गया है बच्चे की बॉडी ले जाइए.”
' मरीज़ से थोड़ा ख़राब बोला तो की कार्रवाई ’
मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल संगीता अनेजा का कहना है कि जब महिला को अस्पताल लाया गया तो तीन डॉक्टर ड्यूटी पर थे.
उनका कहना है कि डॉक्टरों ने महिला का पीवी (पेल्विक एग्जामिनेशन) करके देखा तो वो डायलेटेड नहीं था.
महिला की पहली बार डिलीवरी हो रही थी. प्रिंसिपल संगीता अनेजा कहती हैं कि, "पेशेंट को बाहर नहीं छोड़ा गया था और उसे लेबर रूम में रखा गया."
उनका कहना है कि समय समय पर उनका डायलेशन चेक किया गया और रात के आठ बजे उनका तीन फिंगर डायलेटेड होने के बाद पौने नौ बजे डिलीवरी की गई.
प्रिंसिपल का दवा है कि बच्चा ज़िंदा निकला और, "बच्चे को थोड़ी ऑक्सीजन की कमी थी जिसके बाद उसे ऑक्सीजन लगा कर सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट में भर्ती भी किया गया और उसका इलाज किया गया लेकिन अगले दिन सुबह बच्चा एक्सपायर कर गया."
उन्होंने पीड़िता महिला यानी माँ का स्वास्थ्य ठीक बताया है.
प्रिंसिपल संगीता अनेजा ने बताया कि मरीज़ और उनके तीमारदारों से ठीक से बात ना करने के लिए एक स्टाफ़ नर्स का तबादला कर दिया है. वह दावा करती हैं कि, 'जांच के बाद यह कठोर कार्रवाई है.'
प्रिंसिपल का कहना है कि महिला के ब्लड टेस्ट से ही उन्हें पता चला कि वो एचआईवी पॉजिटिव है. उससे पहले स्टाफ़ को कोई जानकारी नहीं थी. प्रिंसिपल का दावा है की डिलीवरी के समय तीन डॉक्टर्स मौजूद थी और यह प्रमाणित करने के लिए उनके पास तस्वीरें भी है.
क्या बच्चा आधा बाहर निकल चुका था? इस बात को ग़लत बताते हुए संगीता अनेजा कहती हैं, "ऐसा नहीं है. यह बिल्कुल नहीं हुआ."
प्रिंसिपल संगीता अनेजा कहती हैं, "बच्चा मृत पैदा नहीं हुआ. उसे सिक न्यूबॉर्न यूनिट में शिफ़्ट किया था. उसकी 12 घंटे बाद मृत्यु हुई."
लेकिन अगर बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से हो गया तो 12 घंटे बाद उसकी मौत क्यों हो गई? इस बारे में प्रिंसिपल संगीता अनेजा कहती हैं, "इसे मीकोनियम एस्पीरेशन सिंड्रोम कहते हैं, बच्चे ने पानी निगला हुआ था, उससे सांस लेने में मुश्किल हो जाती है."
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