कानपुर में कोरोना से मरने वालों की संख्या यूपी में सबसे ज़्यादा, क्या है वजह?
12 सितंबर तक कोरोना से कानपुर में 527 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि लखनऊ में 516 लोगों की.
लखनऊ में एक न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर रहे 30 साल के युवा शख़्स की कानपुर में कोरोना से बीते दिनों मौत हो गई. कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि होने के बाद से वह कानपुर में अपने घर पर ही होम आइसोलेशन में थे.
कोरोना पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के चौथे दिन उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. जिसके बाद उन्हें पहले एक प्राइवेट कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया. हालत में सुधार नहीं होने पर कानपुर कैंट में स्थित सेवन एयरफ़ोर्स हॉस्पिटल में रेफ़र कर दिया गया.
परिवार वालों के मुताबिक़ इलाज के दौरान उन्हें दो बार प्लाज़्मा थेरेपी दी गई, साथ ही रेमडेसिवीर इंजेक्शन भी लगाए लगे. उन्हें लगातार वेंटीलेटर पर ही रखा गया. उनके बड़े भाई ऋषि शुक्ला बताते हैं कि रात तक डॉक्टर्स ने भाई की हालत स्थिर होने की जानकारी दी थी, लेकिन सुबह जब वह अस्पताल पहुंचे तो उनको भाई की मौत की ख़बर मिली.
शुक्ला परिवार जिस असमय दुख के दौर से गुज़र रहा है, वैसा दुख कानपुर के कई परिवारों को झेलना पड़ रहा है और हर दिन उनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
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भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से सबसे ज़्यादा मौतें कानपुर में ही हुई हैं. हालांकि, प्रदेश की राजधानी लखनऊ बहुत पीछे नहीं है. 12 सितंबर तक कोरोना से कानपुर में 527 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि लखनऊ में 516 लोगों की.
लेकिन कानपुर की स्थिति इसलिए भी ज़्यादा गंभीर है क्योंकि लखनऊ की तुलना में कोरोना संक्रमण के मरीज़ों की संख्या कानपुर में आधी है. रविवार को लखनऊ में जहां 847 नए संक्रमण के मामले सामने आए वहीं, कानपुर में महज़ 338. लखनऊ में कुल सक्रिय मरीज़ों की संख्या नौ हज़ार से ज़्यादा है जबकि कानपुर में 4500 से ज़्यादा.
इस हिसाब से देखें तो 12 सितंबर तक कानपुर में कोरोना से होने वाली मृत्यु दर 2.65 प्रतिशत है जबकि लखनऊ में मृत्युदर 1.31 प्रतिशत है. मृत्युदर के हिसाब से कानपुर के बाद यूपी में मेरठ दूसरे नंबर पर है जहां कोरोना संक्रमण से होने वाली मृत्युदर 2.63 प्रतिशत है. अभी तक वहां 171 लोगों की मौत हुई है.
कोरोना मरीज़ों के लिए क्या है व्यवस्था
कानपुर स्थित जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध लाला लाजपत राय चिकित्सालय में कोरोना वायरस के सबसे गंभीर मरीज़ों के लिए लेवल-3 स्तर का 200 बेड का अलग हॉस्पिटल तैयार किया गया है. इसमें 100 बेड क्रिटिकल केयर के लिए रखे गए हैं.
कानपुर में कोरोना से सबसे ज़्यादा मौतें भी इसी अस्पताल में हो रही हैं. अस्पताल के न्यूरो साइंस सेंटर में बने कोविड आईसीयू के सुपरिटेंडेंट प्रो. प्रेम सिंह बताते हैं, "कोरोना वायरस के मरीज़ गंभीर हालत होने पर आ रहे हैं. जिन मरीज़ों की मौत हुई है, उनमें से ज़्यादातर को पहले से किडनी, लीवर, हार्ट से संबंधित बीमारियां, डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर की शिकायत थी. शासन से रेमडेसिवीर इंजेक्शन मुहैया कराया जा रहा है, लेकिन किडनी, लीवर और हार्ट के पेशेंट्स को यह दवा नहीं दी जाती. ऐसे में मौतें ज़्यादा हैं."
प्रेम सिंह दूसरी कमी के बारे में भी बताते हैं, "हमने शासन से टॉक्सीजुमैव ड्रग समेत कुछ नई दवाओं की माँग की है. जिनका लखनऊ में तो इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन कानपुर में कोरोना के मरीज़ों को अभी यह ड्रग नहीं मिल पा रही है. अगर यह दवा हमें मुहैया हो जाती है तो हम ज़्यादा क्रिटिकल मरीज़ों को बचा सकते हैं. मालूम हो कि कानपुर के इस सबसे बड़े अस्पताल में आस पास के कई ज़िलों के क्रिटिकल कोरोना मरीज़ भी आते हैं."
यहाँ के डॉक्टर्स मरीज़ों का काफ़ी ज़्यादा भार होने की बात कहते हैं. साथ में पैरा मेडिकल स्टाफ़ भी बेहद कम है.
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इलाज को लेकर प्रशासन का दावा
कानपुर में 12 सितंबर तक कोरोना पॉज़िटिव मामलों की संख्या 19,858 तक पहुँच गई थी. स्वास्थ्य विभाग की ओर से रोज़ाना जारी होने वाले अपडेट के मुताबिक़ कानपुर में अब तक 14,582 कोरोना संक्रमित ठीक हो चुके हैं. कानपुर में कोरोना के सक्रिय मरीज़ों की संख्या 4750 है जिनका अलग-अलग कोविड अस्पतालों और होम आइसोलेशन में इलाज चल रहा है.
कानपुर में कोरोना वायरस के इलाज के सरकारी दावों पर ग़ौर करें तो जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अलावा दो प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को भी ज़िला प्रशासन ने कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए अधिग्रहित किया है. सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के कुल 21 अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ों के इलाज की व्यवस्था का दावा किया जा रहा है. इन अस्पतालों में कुल 2883 बेड उपलब्ध हैं. क्रिटिकल पेशेंट्स के ट्रीटमेंट के लिए लेवल-2 और लेवल-3 अस्पतालों में बेडों की कुल संख्या 1390 ही है. लेकिन इन सभी अस्पतालों को मिलाकर कानपुर में कुल वेंटीलेटर्स की संख्या महज़ 120 ही है.
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समय पर इलाज मिलने की चुनौती
कानपुर में तैनात स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. आरपी यादव बताते हैं, "पूरे प्रदेश में कोरोना वायरस से मृत्यु दर 1.5 प्रतिशत के क़रीब है. वहीं कानपुर में शनिवार तक मृत्यु दर 2.65 प्रतिशत रही. ज़्यादातर मौतें लाला लाजपत राय चिकित्सालय और कांशीराम चिकित्सालय में हो रही हैं. कई मामलों में देखा गया कि मरीज़ के भर्ती होने के तीन दिनों के भीतर उसकी मौत हो गयी. इससे साफ़ है कि कोरोना संक्रमित समय पर अस्पताल में भर्ती नहीं हो पा रहे हैं."
इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है, पूछे जाने पर डॉ. यादव कहते हैं, "हमने जाँच की क्षमता बढ़ाई है. रोज़ाना छह हज़ार से ज़्यादा लोगों की टेस्टिंग हो रही है. अगर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का ठीक से पता चले तो संक्रमितों की जल्दी पहचान के साथ उनका इलाज शुरू किया जा सकता है."
कानपुर में अब हर दिन कोरोना संक्रमण के 300 से ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं लेकिन इन लोगों को समय पर अस्पताल में भर्ती करा पाना अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. कानपुर के ही गायत्री नगर में रहने वाली एक बुज़ुर्ग महिला को सांस में तकलीफ़ होने पर उनके बेटों ने उन्हें पहले कांशीराम अस्पताल में भर्ती कराया और फिर एलएलआर हॉस्पिटल में शिफ़्ट किया.
उनके बेटे पुष्पेंद्र ने बताया, "मां की हालत बिगड़ती चली गई तो एलएलआर हॉस्पिटल में आठ सितंबर को शिफ़्ट किया. 10 सितंबर की रात को मां की तबीयत अचानक बिगड़ गई. डॉक्टर ने बताया कि उन्हें वेंटीलेटर पर ले जा रहे हैं, लेकिन आधे घंटे में ही मां ने दम तोड़ दिया."
शवदाह गृह पहुंचे रहे शव
कोरोना संक्रमितों की मौतों के बाद कानपुर के दो विद्युत शवदाहगृहों में पहली बार इतने अंतिम संस्कार हो रहे हैं. भैरोघाट और भगवतदास घाट में बने इन विद्युत शवदाहगृहों में कोरोनाकाल से पहले बेहद कम अंतिम संस्कार होते थे. भगवतदास घाट में विद्युत शवदाहगृह के प्रभारी जगदीश के मुताबिक अभी तक कोरोना काल में 300 से ज़्यादा कोरोना संक्रमित मरीज़ों के शवों का अंतिम संस्कार हुआ है.
जगदीश ने बताया, "यहाँ रोज़ एंबुलेंस से कई शव आते हैं. हमने ऐसी आपदा पहले कभी नहीं देखी. जिसमें किसी अपने को खोने के बाद उसके घर वाले आख़िरी बार उसका चेहरा भी नहीं देख पा रहे हैं."