शरीर में मर चुका कोरोना वायरस भी दे रहा है झांसा, नए शोध से हुआ बड़ा खुलासा
नई दिल्ली- स्वास्थ्य मंत्रालय से जो खबरें छनकर आ रही हैं, वह किसी को भी परेशान कर सकती है। बताया जा रहा है कि मंत्रालय इस बात पर विचार कर रहा है कि कोरोना वायरस से संक्रमित जिन मरीजों में कम लक्षण होंगे, उन्हें अस्पतालों से जल्द डिस्चार्च करने पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से जल्द ही एक गाइडलाइंस भी आ सकती है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि, इसके चलते कोविड से गंभीर रूप से बीमार मरीजों को बेड मिलने में कोई भी वक्त जाया न चला जाय। महाराष्ट्र के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर अस्पतालों में हल्के लक्षणों वाले मरीजों ने बेड पर कब्जा जमा रखा है और जिन्हें तत्काल भर्ती होने की आवश्यकता है उन्हें बहुत ज्यादा देरी हो जा रही है। असल में मरीजों को अस्पताल में इलाज देने की सोच में आए इस बड़े बदलाव के पीछे कोरोना वायरस को लेकर हुए एक नया शोध हो सकता है, जिसके नतीजे चौंकाने में हैं।
हल्के लक्षणों वाले मरीजों की अस्पताल से होगी छुट्टी
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि जो लोग कोविड-19 के पॉजिटिव पाए जाते हैं, उनमें से 80 फीसदी लोगों में हल्के या बहुत ही मामूली लक्षण होते हैं। उनमें से अधिकतर मरीज हफ्ते भर के अंदर खुद से ही ठीक भी हो जाते हैं। इन तथ्यों को देखते हुए मंत्रालय की एडवाइजरी कमिटी के कुछ सदस्यों की सलाह है कि ऐसे मरीजों को अस्पताल के अंदर 14 दिन आइसोलेशन में बिताने की जरूरत नहीं है और उन्हें सात दिन बाद ही डिस्चार्च किया जा सकता है। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई के अस्पताल बिस्तरों की भारी कमी झेल रहे हैं, और इसलिए वहां ऐसे हल्के लक्षणों वाले मरीजों को पहले ही डिस्चार्ज की प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई है।
14 से 28 दिन होम आइसोलेशन में रहना होगा
इस तरह से सिर्फ उन मरीजों को डिस्चार्ज किया जाएगा, जो 55 साल से कम उम्र के हैं और उनमें खांसी, सर्दी, बुखार या स्वाद के खत्म होने या होश में कमी आने जैसे कोई लक्षण नहीं दिखाई देंगे। इसके अलावा उनमें स्वास्थ्य संबंधी कोई और समस्या भी नहीं होनी चाहिए। इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय में जारी इस तरह के विचारों की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया है कि मंत्रालय का यह नया नजरिया पिछले कुछ हफ्तों में बीमारी से जुड़े कुछ नवीनतम तथ्यों के सामने आने के बाद के हैं। चर्चा के मुताबिक जिन मरीजों को हल्के लक्षणों के आधार पर अस्पताल से जल्द छुट्टी दी जाएगी, उन्हें 'होम क्वारंटीन' का स्टैंप लगाकर घर में 14 से 28 दिनों तक अनिवार्य आइसोलेशन में रहने को कहा जाएगा।
कोरिया के वैज्ञानिकों ने चौंकाने वाला शोध किया
दरअसल, दक्षिण कोरिया में हुए एक शोध ने कोरोना वायरस के पॉजिटिव मरीजों को लेकर वैज्ञानिकों की सोच ही बदल दी है। इस शोध में पता चला है कि कोविड-19 के पॉजिटिव टेस्ट गलत भी साबित हो सकते हैं। कोरिया सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने कोरोना वायरस से स्वस्थ हो चुके 300 लोगों पर बड़ा रिसर्च किया है। इन लोगों में खांसी या बुखार जैसे कोई लक्षण नहीं थे। जब उनका फिर से कोविड-19 टेस्ट किया गया तो वे सारे पॉजिटिव निकल गए। डर हुआ कि वो दोबारा से संक्रमित हो चुके हैं और उनके शरीर में मजबूत एंटीबॉडी नहीं तैयार हो पाया है।
शरीर में कोविड-19 का मृत कण भी टेस्ट में पॉजिटिव दिखाता है
लेकिन, जब शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च का काम जारी रखा कि आखिर उन सबके साथ क्या हुआ है, तब यह बात सामने आई कि वे सारे लोग कोविड-19 जैसी बीमारी से तो छुटकार पा चुके थे, लेकिन उनके पूरे शरीर में कोरोना वायरस के मृत कण तैर रहे थे, जिसके चलते उनका टेस्ट बार-बार पॉजिटिव आ रहा था। ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि, कोरोना वायरस की जांच के लिए जो रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर्स चेन रियेक्शन (RT-PCR) टेस्ट कराया जाता है, वह वायरस के संक्रमण फैलाने वाले और उसके मृत अवशेषों में फर्क करने में सक्षम नहीं है।
होम आइसोलेशन के एक गाइडलाइंस पहले जारी हुए थे
इससे पहले पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्रालय ने हल्के और बिना लक्षणों वाले कोविड-19 के केस में होम आइसोलेशन की गाइडलाइंस जारी किए थे। इसके लिए आवश्यक था कि मरीजों के घर पर आवश्यकतानुसार सारी सुविधाएं उपलब्ध हो सकें और परिवार वाले भी क्वारंटीन में रहें। केयरगिवर के लिए 24X7 की उपलब्धता आवश्यक रखी गई थी जो अस्पताल या संबंधित लोगों के साथ संपर्क में रह सके। प्रोटोकॉल के तहत केयरगिवर को हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन लेने की भी सलाह दी गई थी।
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