चौंकाने वाले हैं न्यायपालिका के ये आंकड़े, गरीबों के लिए न्याय है महंगा
लखनऊ। अगर आपको न्याय देरी से मिले तो उस न्याय का कोई महत्व नहीं रह जाता है। देश में जिस तरह से जजों की संख्या में भारी कमी है उसका दर्द चीफ जस्टिस की आंखों से भी छलका। लेकिन जजों की कमीं के अलावा भी कई ऐसी दिक्कतें है जिनसे लोगों को दो चार होना पड़ता है। उनमें से एक सबसे बड़ी दिक्कत पैसा भी बड़ी अड़चन है।
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बेगलूर के गैर सरकारी संगठन दक्ष ने एक्सेस टू जस्टिस नाम का एक अध्ययन जारी किया है इसके मुताबिक 90 फीसदी याचिकाकर्ता सालाना तीन ला रुपए से कम कमाते हैं। यहां सबसे चिंता की बात यह है कि अधिकतर लोग एक निचले कोर्ट में पैसों के अभाव में उच्च अदालतों मे अपील नहीं कर पाते हैं। अधिकतर मामले में पैसों के अभाव में जमानत से भी लोग वंचित रह जाते हैं, बावजूद इसके कि इन लोगों को उक्त मामलों में जमानत मिल सकती है।
24 राज्यों में किया गया अध्ययन
24 राज्यों के 305 स्थानों और 9329 याचिकाकर्ता पर किया गया है अध्ययन।
करोड़ो खर्च होते हैं याचिकाओं की सुनवायी पर
याचिकाकर्ता 80 हजार करोड़ रुपए प्रति याचिकाओं के लिए कानूनी फीस पर खर्च करते हैं।
संपत्ति के सबसे अधिक मामले
66 फीसदी मामले जमीन और संपत्ति से संबंधित हैं।
पुरुष करते हैं सबसे अधिक मामले
84.3 फीसदी पुरुष हैं जबकि 15 फीसदी महिलाओं याचिकाकर्ता हैं।
सामान्य वर्ग के लोग हैं सबसे ज्यादा परेशान
44.7 फीसदी सामान्य वर्ग, 34.3 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग, 10.8 फीसदी अनुसूचित जाति, 3.2 फीसदी अनुसूचित जनजाति के मामले, जबकि 7 फीसदी अन्य मामले हैं।
गरीबों के लिए है सबसे बड़ी समस्या
43.8 फीसदी लोगों की आय एक लाख से कम आय वाले लोग हैं, 34.3 फीदी एक लाख से तीन लाख रुपए की आये वाले लोग हैं, 10 फीसदी लोग तीन लाख से अधिक आय वाले लोग हैं।