चीन की धमकियों को नजरअंदाज करते हुए दलाई लामा पहुंचे असम, यहां से जाएंगे तवांग
चीन की धमकियों को नजरअंदाज कर दलाई लामा पहुंचे नार्थईस्ट के दौरे पर। 13 दिनों के दौर पर पहला पड़ाव असम और यहां से पहुंचेंगे अरुणाचल प्रदेश। चीन ने दी दलाई लामा के दौरे से पहले भारत को कई बार धमकी।
गुवाहाटी। चीन की ओर से लगातार आती वॉर्निंग को नजरअंदाज करके तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा शनिवार को नार्थ ईस्ट के दौरे पर पहुंच गए हैं। वह 13 दिनों तक नार्थ ईस्ट का दौरा करेंगे और उनका पहला पड़ाव है असम। चीन की धमकियों को दलाई लामा 'एक सामान्य बात' ही करार दिया है।
चीन की धमकियां सामान्य बातें
गुवाहाटी पहुंचने के बाद दलाई लामा ने अपनी ट्रेडमार्क मुस्कुराहट में कहा, 'यह सारी चीजें सामान्य हैं।' यह बात उन्होंने उस समय कही जब उन्हें बताया गया चीन उनके इस दौरे को लेकर खुश नहीं है। उसने भारत को कई बार धमकियां दी हैं। शुक्रवार को ही चीन ने भारत से कहा है कि उसने दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश के तवांग का दौरा करने की मंजूरी देकर बहुत बड़ी गलती की है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ल्यू कांग ने शुक्रवार को धमकी देते हुए कहा, 'यह कदम दोनों देशों के संबंधों को खासा प्रभावित करेगा। चीन, दलाई लामा की अरुणाचल में गतिविधियों का पुरजोर विरोध करता है और भारत के सामने इससे जुड़ी चिंताएं साफ जाहिर कर दी गई हैं।'
13 दिन तक क्या-क्या करेंगे दलाई लामा
दलाई लामा असम में रविवार को होने वाले नमामी ब्रह्मपुत्र महोत्सव में शामिल होंगे। इसके बाद वह गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करेंगे। शनिवार को नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने कड़े सुरक्षा इंतजाम के बीच 'ह्यूमन एप्रोच टू वर्ल्ड पीस' नामक कार्यक्रम में आयोजित चर्चा में शिरकत की। दलाई लामा के असम दौर से पहले उग्रवादी संगठन उल्फा की ओर से भी धमकी दी गई थी। सोमवार को दलाई लामा डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान लोगों को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह तवांग के निकट लुम्ला नामक जगह के लिए चले जाएंगे। दलाई लामा तवांब में रुकेंगे जो कि मैकमोहन रेखा से सिर्फ 25 किलोमीटर ही दूर है जो भारत और चीन को बांटती है। सात अप्रैल तक दलाई लामा तवांग में रुकेंगे। 10 अप्रैल को दिरंग और 11 अप्रैल को बोमदिला में शिक्षा देने बाद वह अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के लिए चले जाएंगे। 11 और 12 अप्रैल को उनका दौरा खत्म हो जाएगा। दिरंग और बोमदिला वही जगहें जहां सन 1962 की जंग में चीन की सेना दाखिल हो गई थी।