चक्रवात महा और बुलबुल- क्या वायु प्रदूषण से है इनका कोई संबंध?
बेंगलुरु। पंजाब में पराली जलने के बाद दिल्ली को धुएं की चादर ने ढक लिया। पूरे देश में हाहाकार मच गया। हर कोई दिल्ली की बात करने लगा। उसी बीच चक्रवात बुलबुल और महा की तीव्रता बढ़ने लगी और देश के पश्चिम और पूर्वी हिस्सों के तटीय इलाकों में एलर्ट जारी कर दिया गया। चक्रवात महा की तीव्रता कम हो गई है, लेकिन बुलबुल का खौफ अभी बरकरार है। लेकिन क्या आपको लगता है प्रदूषण का चक्रवात से कोई लेना देना है? इसी पर हमने बात की कुछ वैज्ञानिकों से और खंगाले कुछ शोध!
महा और बुलबुल
तमाम रिसर्च और अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि चक्रवात यानी साइक्लोन का प्रदूषण से सीधा संबंध है। किसी भी चक्रवात की तीव्रता बढ़ाने में प्रदूषण एक बड़ा काम करता है। चक्रवात महा की बात करें तो यह अरब सागर पर है और जल्द ही गुजरात के तटीय इलाकों पर पहुंचेगा। वहीं बुलबुल बंगाल की खाड़ी में है और यह ओडिशा और पश्चिम बंगाल में 100 से 150 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफतार से आंधी और साथ में बारिश ला सकता है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार फिलहाल महा की तीव्रता कम हो गई है, लेकिन फिर भी भारी बारिश से इंकार नहीं किया जा सकता है।
2011 में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक चक्रवातों का वायु प्रदूषण से इतना संबंध है कि लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण मॉनसून के बाद आने वाले चक्रवात और अधिक विनाशकारी होते हैं। चूंकि मॉनसून के पहले वातावरण गर्म होता है, जिसकी वजह से बादल पानी को रोक लेता है। वही बादल मॉनसून के बाद जब कोई भी चक्रवात आता है, तब मूसलाधार बारिश करते हैं। हम सभी जानते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। तापमान जितना अधिक होगा, चक्रवात के समय बारिश उतनी ही ज्यादा अधिक होगी। यही कारण है कि पिछले एक दशक में पूरी दुनिया में रिकॉर्ड तोड़ बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि तापमान बढ़ने के कारण चक्रवातों की पुनरावृत्ति भी बढ़ने की आशंका है।
वातावरण में बढ़ रहा कार्बन का स्तर
वैज्ञानिक मानते हैं कि 1930 से लेकर अब तक वातावरण में ब्लैक कार्बन और सल्फेट की मात्रा छह गुनी बढ़ गई है। जिन-जिन जगहों पर प्रदूषण अधिक है, उन-उन जगहों पर चक्रवात आने पर विनाश ज्यादा होता है। दूसरी ओर समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है, जिसके चलते तटीय इलाके पहले ही बाढ़ के खतरे में हैं। पिछले वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण ही समुद्र का जलस्तर करीब 23 सेंटीमीटर तक बढ़ा है। खास बात यह है कि भारतीय महासागर का जलस्तर बाकी महासागरों की तुलना में तेजी से बढ़ा है।
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शोध पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में अरब सागर में नवम्बर में आने वाले चक्रवातों की संख्या बढ़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि महासागर पहले की तुलना में अधिक गर्म हो रहा है। समुद्र की सतह और पानी के अंदर तापमान बढ़ने के कारण ही चक्रावत पैदा होता है। यानी गर्मी जितनी अकिधक होगी चक्रवात उतना अधिक विनाशकारी होगा। वहीं समुद्री सतह पर तापमान अधिक होने का मतलब चक्रावत के दौरान हवा की गति उतनी अधिक होगी। यानी आने वाले समय में चक्रवात और अकिधक भयावह होंगे।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
इंडियन इंस्टीट्यूट मीटीओरोलॉजी, पुणे की वैज्ञानिक डा. रॉक्सी कोल मैथ्यू का कहना है कि 2017 में हुए एक अध्ययन और आईपीसीसी की रिपोर्ट पर गौर करें तो अरब सागर में चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हुई है। चूंकि टॉपिकल साइक्लोन वाश्व से ऊर्जा एकत्र करते हैं, इसलिये समुद्र की गर्माहट और समुद्री सतह का तापमान दोनों मिलकर इसकी तीव्रता को बढ़ाने का काम करते हैं। अरब सागर में 2014 में जब चक्रवात निलोफर आया था, हालांकि भारत के तटीय इलाकों पर उसका प्रभाव अधिक नहीं था। वहीं उसी के अगले साल दो चक्रवात आये चपाला और मेघ दोनों मॉनसून के बाद आये। वहीं चक्रवात क्यार और महा भी मॉनसून के बाद आये। जिस तरह से भारतीय महासागर का तापमान बढ़ रहा है, उसे देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले समय में चक्रवात तटीय इलाकों पर कहर बरपायेंगे।
क्लाइमेट, एटमॉसफियरिक साइंस एंड फिजिकल ओशीनोग्राफी के प्रोफेसर जो स्क्रिप इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशीनोग्राफी में कार्यरत हैं, ने कहा कि भारत के कई हिस्सों में प्रदूषण का स्तर सुरक्षित मानकों से कहीं ऊपर हो गया है जिसके चलते भविष्य में अरब सागर की ओर से आने वाले चक्रवात और अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।