गुजरात में जीरा बना हीरा, क्या है सीरिया कनेक्शन?
भारत में जीरे का सबसे अधिक उत्पादन गुजरात में ही होता है. क्यों आसमान छू रहे हैं जीरे के दाम?
गुजरात के मेहसाणा के जूना मांका गांव के रहने वाले जेठाभाई गंगाराम पटेल बीते चार दशक से जीरे की खेती कर रहे हैं लेकिन जितने दाम उन्हें इस साल अपनी फ़सल के मिले इतने कभी नहीं मिले.
भारत में जीरे के दाम मेहसाणा के ऊंझा में एपीएमसी (कृषि उत्पाद मंडी समिति) से तय होते हैं और यहां इस समय एक क्विंटल जीरे की ख़रीद 21000 रुपए में हो रही है.
इस साल नवंबर में जीरे ने पहली बार 20 हज़ार रुपए क्विंटल का आंकड़ा छुआ था. जीरे के दामों में बढ़ोतरी का सीधा असर किसानों की कमाई पर हुआ है.
जेठालाल बताते हैं कि वो अब एक बीघा फसल में 25 से 30 हज़ार रुपए आसानी से कमा लेते हैं. 90 दिनों में तैयार हो जाने वाली जीरे की फसल किसानों के लिए मुनाफ़े का सौदा बन गई है.
कम पानी और कम मेहनत में हो जाने वाली इस फसल को उगाने के लिए ख़ास मौसम और माहौल की ज़रूरत होती है जो सिर्फ़ गुजरात और राजस्थान में मिलता है. भारत में जीरे का सबसे अधिक उत्पादन गुजरात में ही होता है.
जीरे के दामों में बढ़ोतरी की दो वजहें हैं. पहला ये कि इस साल जीरे का स्टॉक बेहद कम है और दूसरा भारत के बाद जीरे के प्रमुख उत्पादक देशों सीरिया और तुर्की से इसके निर्यात में गिरावट आई है.
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ऊंझा मंडी समिति के अध्यक्ष गौरंग पटेल कहते हैं, "मांग मंडी में दाम तय करती है. डिमांड अधिक होने पर रेट बढ़ जाते हैं. जीरे का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक इस साल बेहद कम है जिसकी वजह से दाम बढ़े हुए हैं. फरवरी-मार्च तक नई फसल आने तक ये दाम बढ़े रहेंगे."
ऊंझा मंडी में इस समय तीन से चार हज़ार बोरी (एक बोरी में बीस किलो जीरा होता है) जीरा प्रतिदिन बिक्री के लिए पहुंच रहा है. फसल कटाई के मौसम में ये आंकड़ा पचपन-साठ हज़ार बोरी प्रतिदिन तक पहुंच जाता है.
ज़्यादा बुआई
दामों में बढ़ोतरी का एक असर ये भी हुआ है कि इस बार किसानों ने जीरे की बंपर बुआई की है. गौरंग पटेल के मुताबिक इस साल जीरे की बुआई डेढ़ गुना अधिक हुई है. ऐसे में जब नई फ़सल आएगी तब हो सकता है कि दाम कुछ कम हो जाएं.
वहीं ऊंझा मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष सीताराम भाई पटेल कहते हैं कि पूरे साल किसानों को जीरे का दाम बेहतर मिला जिसका नतीजा ये हुआ है कि इस साल बुआई का इलाक़ा बढ़ गया है. सीताराम पटेल कहते हैं, "बीते साल इस क्षेत्र में 2 लाख 95 हज़ार हेक्टेयर में जीरे की बुआई हुई थी. इस साल अब तक 3 लाख 48 हज़ार हेक्टेयर में अब तक बुआई हो चुकी है और ये आंकड़ा बढ़कर पौने चार लाख हेक्टेयर तक भी पहुंच सकता है."
सीताराम पटेल कहते हैं, "जीरे के दाम बढ़ने की एक वजह ये भी है कि तुर्की और सीरिया का जीरा बाज़ार में नहीं आ पा रहा है जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय जीरे की मांग बढ़ी है."
सीताराम पटेल कहते हैं कि जीरे की फसल किसानों में ख़ुशहाली की वजह बन गई है. इसका असर स्थानीय बाज़ार पर भी हो रहा है. पटेल के मुताबिक किसानों के हाथ में अधिक पैसा आने से बाज़ार में अन्य सामान भी अधिक बिक रहे हैं.
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सीरिया के हालात
जीरा एक्सपोर्ट एसोसिएशन से जुड़े तेजस गांधी कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय जीरे की मांग बीते चार-पांच साल में लगातार बढ़ रही है. इस साल 15-20 फ़ीसदी अधिक जीरा एक्सपोर्ट हुआ है."
भारत सबसे ज़्यादा जीरा अमरीका, कनाडा, दक्षिण अमरीका और मध्यपूर्व के देशों में एक्सपोर्ट करता है.
गांधी कहते हैं, "भारत में उत्पादित होने वाला 70 फ़ीसदी जीरा स्थानीय बाज़ार में ही खप जाता है जबकि करीब तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट होता है. बीते साल हमने 90 हज़ार टन जीरा एक्सपोर्ट किया था. इस साल ये आंकड़ा और ज़्यादा बढ़ा है."
गांधी कहते हैं, "सीरिया और तुर्की के राजनीतिक हालातों की वजह से वहां से जीरा बाज़ार में नहीं आ पा रहा है जिसका सीधा फ़ायदा हमें हुआ है."
सीरिया में साल 2011 से गृहयुद्ध चल रहा है जिसकी वजह से यहां का जीरा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में नहीं पहुंच पा रहा है और सीरिया से जीरा आयात करने वाले देशों ने भारत का रुख किया है.
भारत में बढ़ रहा है उत्पादन
मसाला बोर्ड के मुताबिक भारत में साल 2012-13 में कुल 593980 हेक्टेयर में जीरे की बुआई हुई थी जिसमें कुल 394330 टन जीरे का उत्पादन हुआ था. 2016-17 में 760130 हेक्टेयर क्षेत्र में 485480 टन जीरे का उत्पादन हुआ. 2015-16 में ये आंकड़ा 808230 हेक्टेयर में 503260 टन उत्पादन का था.
जीरे से हो रही आमदनी के चलते किसान इस फसल को अधिक उगा रहे हैं. हालांकि जीरे की फसल पर मौसम की मार भी पड़ जाती है.
गौरंग पटेल कहते हैं, "मौसम ख़राब होने का असर जीरे पर होता है. यदि फसल को अनुकूल माहौल न मिले तो फसल बर्बाद होने की आशंका भी रहती है. बीते साल जीरे का उत्पादन फसल को हुए नुक़सान की वजह से घट गया था."
किसान जेठाभाई पटेल कहते हैं, "जीरे की फसल अगर सही से हो जाए तो फ़ायदा भरपूर होता है लेकिन मौसम की मार पड़ जाए तो फसल बर्बाद भी हो जाती है. यही वजह है कि एक बीघा में उत्पादन डेढ़ क्विंटल से लेकर चार क्विंटल तक हो जाता है."
वो कहते हैं, "फसल बर्बाद होने की आशंका के बावजूद हम जीरे की खेती बढ़ा रहे हैं क्योंकि इसके दाम बढ़ रहे हैं और हमें फ़ायदा मिल रहा है. हालांकि बाकी मसालों के मुक़ाबले जीरे के दाम अभी भी कम है."
कमोडिटी वर्ल्ड अख़बार के संपादक मयूर मेहता मानते हैं कि रबी की बाक़ी फसलों के मुकाबले गुजरात के किसानों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा जीरे की फसल में ही हो रहा है.
मेहता कहते हैं, "रबी की फसलों में बाकी कोई भी फसल ऐसी नहीं है जिसमें किसान को फ़ायदा हुआ है. सरसों, गेहूं, धनिया, मूंगफली के बेहतर दाम किसानों को नहीं मिल पाए. इन सबके मुकाबले इस बार किसानों को जीरे के दाम बहुत बेहतर मिले हैं."