Coronavirus:क्या है तबलीगी जमात, जिसने पूरे देश में मचाया हड़कंप ?
नई दिल्ली- कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच इस वक्त पूरे भारत में तबलीगी जमात और उसकी मरकज को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। क्योंकि, इस मुस्लिम धार्मिक संगठन ने नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर देश के कई राज्यों के लाखों लोगों की जान को संकट में डाल दिया है। वजह ये है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर पूरे देश में तमाम तरह की पाबंदियां लगी हुई हैं, लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है। बावजूद इसके दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी जमात के हेडक्वार्टर में न केवल हजारों लोग कई दिनों तक जुटे रहे, बल्कि वीजा कानूनों की ऐसी की तैसी करते हुए वहां सैकेड़ों विदेशी नागरिकों को भी छिपाए रखा। अभी तक की जानकारी के मुताबिक जो भी विदेशी नागरिक उस मरकज में शामिल हुए, वे टूरिस्ट वीजा पर आकर धार्मिक कार्यों को अंजाम देने में जुटे हुए थे। उनमें सऊदी अरब,इंडोनेशिया,मलेशिया और फिलीपींस जैसे देशों के नागरिक भी शामिल हैं, जो आज कोरोना से बहुत ज्यादा संक्रमित हो चुका है। भारत में अब तक जो लोग भी इस वायरस से संक्रमित हुए हैं या जिनकी मौतें हो चुकी हैं, उनमें से कई लोग इस मरकज में शामिल हो चुके थे। ऐसे में आइए जानते हैं कि ये तबलीगी जमात है क्या और संकट की एस घड़ी में यहां हो क्या रहा था?
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तबलीगी जमात की स्थापना
तबलीगी
जमात
की
स्थापना
1926
में
हरियाणा
के
नूंह
जिले
के
एक
गांव
से
हुई
थी।
इसे
एक
बड़े
इस्लामिक
धार्मिक
आंदोलन
के
तौर
पर
स्थापित
किया
गया
था।
दिल्ली
के
निजामुद्दीन
इलाके
में
बंगले
वाली
मस्जिद
इसका
हेडक्वार्टर
है,
जो
निजामुद्दीन
औलिया
की
दरगाह
और
गालिब
एकैडमी
के
पास
स्थित
है।
पूरी
दुनिया
के
213
देशों
में
इस
जमात
के
लोग
बताए
जाते
हैं,
जो
समय-समय
पर
इस्लाम
के
प्रचार-प्रसार
के
लिए
दुनिया
भर
का
रुख
करते
हैं।
एक
अनुमान
के
मुताबिक
इस
वक्त
दुनिया
भर
में
इस
जमात
के
करीब
15
करोड़
सदस्य
हैं,
जिनमें
पाकिस्तानी
क्रिकेटर
सईद
अनवर
जैसे
लोग
भी
शामिल
हैं।
तबलीगी जमात का मकसद
तबलीगी जमात का असल मकसद 'छह उसूल' यानि 'कालिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत और दावत-ओ-तबलीग' है। दरअसल, भारत में मुगलों के जमाने में अनगिनत हिंदुओं ने इस्लाम कबूल कर लिया था। लेकिन, उनमें से अधिकांश हिंदू ऐसे थे, जिन्होंने मुसलमान बनने के बावजूद भी कई सारे हिंदू रीति-रिवाजों को छोड़ा नहीं था। जब भारत में अंग्रेज आए और आर्य समाज ने शुद्धिकरण आंदोलनों के जरिए लोगों को फिर से हिंदू बनाने की कोशिशें शुरू की तो उस वक्त के मुस्लिम धर्म गुरुओं ने इस्लाम की शिक्षा-दीक्षा के विस्तार पर जोर देने की जरूरत महसूस की। इसके लिए मौलाना इलियास कांधलवी की अगुवाई में तबलीगी जमात के नाम से इस धार्मिक संगठन की शुरुआत हुई और वो काम आज पूरी दुनिया में जारी है।
तबलीगी जमात का काम
तबलीगी जमात का मूल मकसद दुनिया भर में इस्लाम यानि अल्लाह की बातों का उसके मूल रूप में प्रचार-प्रसार करना है। जमात का मतलब ये है कि जो लोग भी इस काम में शामिल होते हैं, उनका समूह। दुनिया भर में तबलीगी जमात के जो सेंटर्स काम करते हैं या जहां इसकी बैठकें आयोजित होती हैं, उन्हें मरकज कहकर बुलाते हैं। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में जमात का हेडक्वार्टर यानि बंगले वाली मस्जिद भी एक मरकज की तरह ही काम करती है। लेकिन, फिलहाल यहां कानून को तोड़कर जमात के 1500 से 3000 लोगों के जुटे होने की बात सामने आ रही है, जिसमें कम से कम 250 लोग विदेशी नागरिक बताए जा रहे हैं। आज तबलीगी जमात को लेकर हड़कंप इसीलिए मच गया है कि दिल्ली के मरकज में सऊदी अरब, मलेशिया,इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे कोरोना प्रभावित देशों के लोग भी जुटे हुए थे।
1941 में हुई थी पहली मरकज
तबलीगी जमात का गठन भले ही 1926 में हो गया हो, लेकिन इसकी पहली इस्लामिक मरकज होने में करीब 15 साल का वक्त लग गया था। इसका पहला जलसा या मरकज दिल्ली में 1941 में हुआ था, जिसमें करीब 25 हजार लोग शामिल हुए थे। इतने सालों तक इसका प्रभाव सिर्फ भारत तक ही सीमित थी। लेकिन, पहले जलसे के साथ ही इस धार्मिक आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी और दुनिया भर में इसके सदस्य बनने शुरू हो गए।
कैसे काम करती है तबलीगी जमात
वैसे तो इस जमात का सालाना जलसा कई देशों में होता है, लेकिन हर वर्ष बांग्लादेश में सबसे बड़ा कार्यक्रम आयोजित होता है। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान में भी इस तरह के कार्यक्रम होते हैं। तबलीगी जमात के मरकज से ग्रुप बनाकर इसके सदस्य निकलते हैं। ये जमातें कम से कम 3 दिन, 5 दिन, 10 दिन, 40 दिन या 4 महीने के लिए निकलती हैं। तबलीगी जमात में 8 से 10 लोगों का एक ग्रुप होता है, जो लोगों के बीच जाकर उनसे पास की मस्जिद में जाने के लिए कहते हैं। इस जमात में ही दो-तीन सदस्य होते हैं, जिन्हें जमात के बाकी सदस्यों के लिए खाना बनाना होता है। ये लोगों से जाकर हदीस पढ़ने, नमाज पढ़ने और रोजा रखने को कहते हैं।