Covid-19: बड़े पैमाने पर टेस्टिंग नहीं हो पाने की असल वजह ये है ?
नई दिल्ली- भारत ने अब तक कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए जितने कदम उठाए हैं, तमाम एक्सपर्ट उसे अप्रत्याशित बता रहे हैं। करीब 135 करोड़ की आबादी वाले विकासशील देश को जैसे एक झटके में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन कर दिया गया है, दुनिया के तमाम विकसित देश सोच भी नहीं पाए हैं। अमेरिका में अब ये मांग जोर से उठ रही है। ये भी सच है कि कोविड-19 पॉजिटिव केस या उससे हुए हताहतों की संख्या में भी दुनिया की दूसरी सबसे आबादी वाला चीन का पड़ोसी मुल्क आज भी काफी पीछे है। लेकिन, इतने भर से हमें छाती चौड़ी कर लेने के भ्रम में नहीं रहना चाहिए। क्योंकि, ये भी हकीकत है कि हम अभी संदिग्ध केसों की जांच की संख्या मुकम्मल तौर पर नहीं बढ़ा पा रहे हैं। हालांकि, अब सरकार ने सरकारी लैब्स के अलावा कुछ प्राइवेट लैब्स को भी कोविड-19 की टेस्टिंग करने की इजाजत दे दी है और उनसे यह भी कह दिया गया है कि वे किसी भी सूरत में टेस्ट के लिए 4,500 रुपये से ज्याया नहीं लेंगे। लेकिन, फिर भी टेस्टिंग की संख्या उम्मीदों से कहीं कम है। आइए कुछ निजी जांच प्रयोगशालाओं से बातचीत के आधार पर जानने की कोशिश करते हैं कि अब किस बात की देरी हो रही है?
कई लैब्स को आईसीएमआर से मंजूरी का इंतजार
देश 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन से गुजर रहा है, लेकिन कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में स्वास्थ्य सेवा जिस एक चीज से सबसे ज्यादा संघर्ष कर रही है, उसमें संदिग्धों की पहचान के लिए टेस्टिंग की व्यवस्था है। क्योंकि, इसके लिए अभी तक बड़े पैमाने पर कोई ठोस बुनियादी ढांचा खड़ा नहीं हो पाया है। ये जानकारी रिडिफ डॉट कॉम ने टेस्टिंग क्षेत्र से जुड़े देश के कई अहम नामों से बातचीत के आधार पर बताया है। मसलन, एसआरएल हेड डॉक्टर अजय फड़के का कहना है कि कि इसकी इजाजत देने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने अभी तक सारे लैब्स चेन को इसकी मंजूरी नहीं दी है। मसलन इसने मुंबई के एसआरएल गोरेगांव और गुरगांव को तो जांच की इजाजत दी है, लेकिन कई लैब्स को मंजूरी मिलने का इंतजार है।
लॉजिस्टिक में आ रही है मुश्किल
इसी तरह आईसीएमआर ने इन लैब्स को सैंपल के होम कलेक्शन की सलाह दी है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन्हें लॉजिस्टिक में मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। इन टेस्टिंग लैब्स के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती है। आधे से ज्यादा स्टाफ लैब तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। जो आ रहे हैं, उन्हें मशीनों की तरह भागना पड़ रहा है। इनका कहना है कि होम कलेक्शन के लिए इनके पास अलग टीम है, जिनकी हिफाजत के लिए इन्होंने किट तैयार कर रखी है, जिसमें एन95 मास्क भी शामिल हैं। एक दिक्कत ये भी है कि मोलेक्युलर टेस्ट होने की वजह से ये लैब्स अपने सभी सेंटरों पर इसकी जांच कर भी नहीं सकते।
अभी सिर्फ 10 निजी लैब्स में हो रही है जांच
इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग बताते हैं कि अगले महीने तक बाजार में कुछ प्वाइंट ऑफ केयर टेस्टिंग डिवाइसेज आने की उम्मीद है, जिसके बाद ये ज्यादातर केंद्रों में टेस्ट करने में सक्षम हो सकेंगे। इसके बाद किसी बड़े प्रयोगशालाओं की जरूरत नहीं पड़ेगी एक छोटे से बक्से में सैंपल डाला और सीधे मशीन पर लोड कर दिया। इन्हें भारत में ये टेस्टिंग किट जल्दी ही उपलब्ध होने की उम्मीद है। इनका कहना है कि आपात स्थिति में अमेरिकी एफडीए से इसकी मंजूरी लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। अभी आईसीएमऐर ने सिर्फ दो भारतीय सप्लायरों को ही मंजूरी दे रखी है, आईटोना, माई लैब्स। आज की तारीख में एसआरएल लैब्स एक दिन में लगभग 800 टेस्ट करने में सक्षम हैं। अभी दिक्कत ये भी है कि जब किट के लिए इन कंपनियों के पास डिमांड जाती है तो उन्हें डिलिवरी में दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि भारत की विशालता को देखते हुए एनएबीएल से मान्यता प्राप्त सभी लैब्स को टेस्टिंग के लिए खोल देना चाहिए, क्योंकि फिलहाल सिर्फ इनके जैसे सिर्फ 10 लैब्स में ही कोविड-19 की जांच हो रही है।
स्टाफ और पीपीपी किट की हो रही है दिक्कत
जब इनसे सवाल हुआ कि कुल मिलाकर जो लैब्स जांच कर रही हैं, उनके सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती क्या आ रही है। तो उनका साफ कहना है कि लौजिस्टिक ही सबसे बड़ी समस्या बन रही है। टेस्टिंग में जुड़े लोगों के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट किट्स (पीपीई) की काफी कमी है। इसकी कीमतों पर लगाम लगाना भी जरूरी है, क्योंकि वेंडर मोटी रकम वसूल रहे हैं। यही नहीं इससे जुड़े कचरे को वैज्ञानिक तरीके से निपटाना भी एक बड़ी चुनौती है और वो बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण भी है। सरकार ने लॉकडाउन किया है, जो बहुत जरूरी है। लेकिन, अब राज्य सरकार से संपर्क करने की कोशिश में हैं कि किसी तरह से हमारे पूरे स्टाफ काम पर लग सकें।
वायरस सैंपलिंग किट से भी टेस्ट का दावा
वहीं सेल कल्चर एंड इम्मयुनोलॉजी, हाईमीडिया लैब्रोट्रीज के डॉक्टर अजय वर्के अलग कहानी कहते हैं। उनके साथ समस्या ये आई कि पुलिस ने हमारे कर्मचारियों की पिटाई कर दी और इसीलिए वे लोग फैक्ट्री तक पहुंच ही नहीं आ पा रहे। हमने कमिश्नर ऑफिस जाकर इसकी इजाजत ली है, जिससे कि किट का निर्माण हो सके। इनका ये भी दावा है कि उन्हें इसके लिए अमेरिकी एफडीए से मंजूरी की आवश्यकता भी नहीं है। न ही हम कोविड-19 टेस्ट किट बनाते हैं। हम वायरस सैंपलिंग किट बनाते हैं, जो कि कोविड19 की जांच में इस्तेमाल होता है। हम पिछले 13 साल से ये किट बना रहे हैं। पहली बार स्वाइन फ्लू से पहले ही इसे लॉन्च कर दिया था। 2008-2009 में पूरा देश हमारी किट के ही भरोसे था और इसको नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे से मान्यता मिली हुई है। इनका कहना है कि नाक और गले से स्वैब का सैंपल लेकर इसे एक ट्यूब में रख लिया जाता है। इस ट्यूब को पीसीआर (पॉलीमिरेज चेन रिएक्शन ) के लिए एसआरएल या अस्पतालों में भेज दिया जाता है, जहां इसका कोविड-19 टेस्ट किया जा सकता है। ये देश के एयरपोर्ट पर और दुबई एयरपोर्ट पर भी अपनी किट सप्लाई करने का दावा करते हैं। इनका कहना है कि इनकी कंपनी रोजाना एक लाख से तीन लाख तक किट तैयार कर सकते हैं।