हिंदू-मुसलमान की जनसंख्या पर टेंशन लेने वाले नेता नपुंसकता दर भी जान लें
नई दिल्ली। धर्म के आधार पर जब सेंसस ने जनसंख्या का ब्योरा जारी किया, तो तमाम नेताओं ने अनरगल बयान देते हुए एक विशेष धर्म की जनसंख्या के बढ़ने को देश के लिये बड़ा टेंशन बता डाला। अरे नेताजी! टेंशन किसी धर्म विशेष की जनसंख्या नहीं है, टेंशन नपुंसकता है, जो बढ़ते क्रम में है। अगर आपको किसी विशेष धर्म की बढ़ती जनसंख्या से इतनी ही परेशानी है, तो उस धर्म के लोगों को 100 प्रतिशत शिक्षित बनाकर 100 प्रतिशत रोजगार दे डालिये, जनसंख्या की रफ्तार अपने आप धीमी पड़ जायेगी।
खैर हाल ही में सेंसस 2011 जारी हुआ तो पता चला कि कुल जनसंख्या में पिछले दस सालों में कमी आयी है। इसका श्रेय सरकार को जाता है। जनसंख्या वृद्धि की दर हर धर्म में नीचे आयी है, जिसका औसत 4.8 प्रतिशत है। हिंदुओं की जनसंख्या का शेयर 80.5 प्रतिशत से गिरकर 79.8 प्रतिशत हो गया, जबकि मुसलमानों का शेयर 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गया। वहीं हिंदुओं की जनसंख्या में 13.9 करोड़ लोगों का इजाफा हुआ है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या में 3.4 करोड़ लोग बढ़ गये हैं।
खैर सिक्के के दूसरे पहलु पर भारत फर्टिलिटी ट्रांज़ीशन से गुजर रहा है। धर्मों- हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, आदि सभी धर्मों में फर्टिलिटी रेट गिरा है, यानी सभी नपुंसकता के शिकार हो रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सवेक्षण के अनुसार 1992-93 और 2005-06 तक मुसलमानों के टोटल फर्टिलिटी रेट में तेजी से गिरावट आयी है। वास्तव में इसकी वजह धर्म नहीं, क्षेत्र है।
फर्टिलिटी रेट से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
-
उत्तर
प्रदेश
के
हिंदुओं
का
फर्टिलिटी
रेट
तमिलनाडु
के
हिंदुओं
की
तुलना
में
ज्यादा
है।
-
उत्तर
प्रदेश
के
मुसलमानों
का
फर्टिलिटी
रेट
केरल
के
मुसलमानों
की
तुलना
में
ज्यादा
है।
-
केरल,
तमिलनाडु
और
आंध्र
प्रदेश
में
लोग
तेजी
से
नपुंसकता
के
शिकार
हो
रहे
हैं।
-
तमिलनाडु
और
आंध्र
प्रदेश
में
गिर
रहा
फर्टिलिटी
रेट
किसी
विशेष
धर्म
से
ताल्लुक
नहीं
रखता।
-
फर्टिलिटी
रेट
वहां
ज्यादा
पाया
गया
है,
जहां
महिलाएं
ज्यादा
शिक्षित
नहीं
हैं
और
रोजगार
से
दूर
हैं।
- केरल के मुसलमानों का फर्टिलिटी रेट बिहार के हिंदुओं के फर्टिलिटी रेट से कम है। कारण अशिक्षा।
क्या कहती हैं विशेषज्ञ
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मटरेजा कहती हैं कि फर्टिलिटी रेट का गिरना साफ दर्शा रहा है कि सरकार के प्रयास सफल हो रहे हैं।
यहां पर फर्टिलिटी रेट कम होने का मतलब यह मत सोचिये कि उन राज्यों के लोगों में कोई स्वास्थ्य विकार है। कॉन्ट्रासेप्टिव यानी गर्भनिरोधक का बेहतर इस्तेमाल भी किसी विशेष राज्य के फर्टिलिटी रेट को नीचे लाता है।
पूनम ने आगे कहा कि सच पूछिए तो देश भर में गर्भनिरोधक तरीकों के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है। किसी विशेष धर्म की नहीं देश की जनसंख्या को नियंत्रित करना जरूरी है और इसके लिये लोगों की लाइफस्टाइल, शिक्षा, स्वास्थ्य और लाइफ को बेहतर बनाने की जरूरत है। जनसंख्या अपने आप नियंत्रित हो जायेगी।