क्या अयोध्या फैसले का असर सबरीमाला समीक्षा याचिका पर पड़ेगा?
नई दिल्ली। देश के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अगले सप्ताह रिटायर्ड होने वाले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जस्टिस गोगोई के रिटायरमेंट से पहले सुप्रीम कोर्ट में लंबित चार बड़े मामलों पर फैसला अगले हफ्ते आ सकता है। इसमें एक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद को लेकर दिए गए फैसले के बाद सबरीमाला को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
शीर्ष अदालत द्वारा की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियों ने ऐसे कयासों को जन्म दे दिया है कि इसका असर अगले सप्ताह आने वाली सबरीमाला समीक्षा पर पड़ सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि राम जन्मभूमि कोई 'कानूनी व्यक्तित्व' नहीं है, लेकिन देवता एक न्यायिक व्यक्ति है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि अदालत को उपासकों के आस्था और विश्वास को स्वीकार करना चाहिए।
सबरीमाला मुद्दा इस धारणा के आसपास केंद्रित है कि मासिक धर्म की महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि, भगवान अय्यपा के ब्रह्मचर्य रूप की पूजा की जाती है। जिसके कारण सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कानूनी विशेषज्ञ एडवोकेट गोविंद भरथान ने कहा कि अयोध्या के फैसले का सबरीमाला समीक्षा पर भी असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि, दो महत्वपूर्ण अवलोकन में पहला 'विश्वास' और दूसरा 'न्यायिक व्यक्ति' सबरीमाला के मामले में भी लागू होगा। इसलिए, मुझे लगता है कि यह फैसला सबरीमाला की समीक्षा में भी प्रतिबिंबित हो सकता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता कुम्मनम राजशेखरन ने कहा कि शीर्ष अदालत की टिप्पणियों का सबरीमाला समीक्षा पर भी असर पड़ेगा। इस फैसले के मूल आधार के रूप में 'विश्वास 'को लिया गया है। इसी तरह, प्रभु के 'न्यायिक व्यक्तित्व' को स्वीकार कर लिया गया है। सबरीमाला में भी ऐसा ही है।
उन्होंने कहा कि, सरकार का विचार था कि विश्वास पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सरकार ने कहा कि लैंगिक समानता का महत्व होना चाहिए। हालाँकि, आज के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि पूजा करने की स्वतंत्रता विश्वास का हिस्सा है, और इसे संवैधानिक वैधता मिली है। इसलिए, हम मानते हैं कि इस फैसले का सबरीमाला समीक्षा पर असर पड़ेगा।
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