PM मोदी कितना बदल पाएंगे सासाराम का मूड ? BJP का अपना ही बागी होकर बिगाड़ रहा खेल
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में शुक्रवार को पीएम मोदी (Narendra Modi) जब सासाराम में चुनावी रैली करने पहुंचे तो एक बार फिर ये सीट चर्चा में आ गई है। सासाराम (Sasaram) की धरती से पीएम मोदी ने मतदाताओं को कभी बिहार के लालू शासन की याद दिलाई तो कभी पुलवामा और गलवान के शहीदों का जिक्र कर एनडीए की सरकार बनाने के लिए वोट मांगे। जाहिर है पीएम मोदी अपने चुनावी संबोधन में सिर्फ सासाराम ही नहीं बल्कि बिहार के वोटरों से मुखातिब थे लेकिन एनडीए के लिए सबसे बड़ी मुश्किल तो सासाराम सीट पर ही है।
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सासाराम में इस बार सियासी पारा पूरी तरह गर्म है। सासाराम में 28 अक्टूबर को होने वाले पहले चरण में वोटिंग होगी। पिछली बार यहां से राजद के टिकट पर अशोक कुमार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे लेकिन चुनाव से पहले अशोक कुमार ने जेडीयू का दामन थाम लिया। जेडीयू में शामिल होते ही उन्हें टिकट भी मिल गया और अब वह जेडीयू के टिकट पर एनडीए के उम्मीदवार हैं।
भाजपा
की
पारंपरिक
सीट
रही
सासाराम
कभी
सासाराम
विधानसभा
बीजेपी
की
पारंपरिक
सीट
हुआ
करती
थी।
अब
तक
16
बार
यहां
विधानसभा
चुनाव
हो
चुके
हैं
जिनमें
सबसे
ज्यादा
5
बार
बीजेपी
को
जीत
मिली
है।
2015
में
भी
यहां
से
बीजेपी
के
जवाहर
प्रसाद
मैदान
में
थे
जो
राजद
के
अशोक
कुमार
से
हार
गए
थे।
जवाहर
प्रसाद
5
बार
विधायक
रह
चुके
हैं।
ऐसे
में
बीजेपी
कार्यकर्ताओं
को
उम्मीद
थी
कि
सीट
बंटवारे
में
ये
बीजेपी
के
हिस्से
में
ही
आएगी।
बीजेपी
के
वरिष्ठ
नेता
रामेश्वर
चौरसिया
यहां
से
तैयारी
भी
कर
रहे
थे
लेकिन
ऐन
वक्त
पर
इसे
जेडीयू
को
दे
दिया
गया।
सीट जेडीयू के हिस्से में गई तो भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी फूट पड़ी। चौरसिया ने समर्थकों का मन टटोला और एनडीए से हाल ही में अलग हुई लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर मैदान में टूट पड़े। चौरसिया बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे हैं। यही वजह है कि कई सारे बीजेपी कार्यकर्ता उनका समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में यहां पर एनडीए की जीत के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये होगा कि क्या पीएम मोदी के आने से यहां पर बीजेपी का कैडर वोट जेडीयू के प्रत्याशी के लिए कितना ट्रांसफर होता है।
राजद
को
होगा
फायदा
सासाराम
विधानसभा
सीट
पर
एनडीए
के
बिखराव
का
सबसे
ज्यादा
फायदा
राजद
को
ही
होगा।
1990
के
बाद
से
यहां
बीजेपी
और
राजद
के
बीच
ही
मुकाबला
होता
रहा
है।
राजद
ने
यहां
राजेश
कुमार
गुप्ता
को
मैदान
में
उतारा
है।
यहां
जेडीयू
और
आरजेडी
में
कांटे
का
मुकाबला
होने
जा
रहा
है।
अगर वोटों के गणित की बात करें तो इस सीट पर कुल 3 लाख 41 हजार वोटर दर्ज हैं। इनमें 1 लाख 78 हजार पुरुष मतदाता और 1 लाख 63 हजार महिला मतदाता हैं। 347 मतदान केंद्रों पर मतदान होना है। पिछली बार यहां 53.27 प्रतिशत मतदान हुआ था। जातीय समीकरणों में यहां कोइरी और मुस्लिम वोटर प्रमुख भूमिका में हैं। यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के टिकट पर लड़ रहे चंद्रशेखर सिंह के वोटों पर भी नजर रखनी होगी। मुस्लिम मतदाता पारंपरिक रूप से राजद के साथ जाते रहे हैं लेकिन इस बार ओवैसी की एआईएमआईएम और कुशवाहा की रालोसपा साथ हैं। यहां पर राजपूत और यादव मतदाताओं की भी अच्छी संख्या में हैं।
1990
से
अब
तक
के
नतीजे
1990
से
अब
तक
इस
सीट
पर
7
बार
चुनाव
हो
चुके
हैं
जिनमें
5
बार
बीजेपी
को
जीत
मिली
जबकि
दो
बार
राजद
जीती
है।
1990
में
पहली
बार
बीजेपी
के
जवाहर
प्रसाद
यहां
से
जीते।
1995
में
भी
जवाहर
प्रसाद
ने
जीतकर
ये
सीट
बीजेपी
के
खाते
में
रखी।
2000
में
ये
सीट
राजद
के
हाथ
में
चली
गई।
अशोक
कुमार
यहां
से
चुनाव
जीते।
2005
में
फरवरी
और
अक्टूबर
दो
बार
चुनाव
हुए
और
दोनों
बार
बीजेपी
के
जवाहर
प्रसाद
जीते।
2010
में
भी
जवाहर
प्रसाद
ने
बीजेपी
के
टिकट
पर
एक
बार
फिर
जीत
दर्ज
की।
2015
में
राजद
के
टिकट
पर
अशोक
कुमार
ने
जवाहर
प्रसाद
को
19
हजार
वोट
से
हरा
दिया।
इस
बार
अशोक
कुमार
राजद
का
साथ
छोड़कर
जेडीयू
में
पहुंच
गए
हैं
और
जेडीयू
ने
उन्हें
टिकट
देकर
मैदान
में
उतारा
है।
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