कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस केजरीवाल रोक सकते थे?
"राजद्रोह क़ानून की अपनी समझ में दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार से कम अनजान नहीं है." जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस में मुक़दमा चलाने की मंजूरी पर पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने ये बात कही. चिदंबरम की तरफ़ से ही नहीं बल्कि दूसरे हलकों से भी इस मंजूरी के पीछे केजरीवाल सरकार के भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
"राजद्रोह क़ानून की अपनी समझ में दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार से कम अनजान नहीं है."
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस में मुक़दमा चलाने की मंजूरी पर पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने ये बात कही.
चिदंबरम की तरफ़ से ही नहीं बल्कि दूसरे हलकों से भी इस मंजूरी के पीछे केजरीवाल सरकार के भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
ये भी पूछा जा रहा है कि उन्होंने ये मंजूरी देने में इतनी देर क्यों की.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कन्हैया कुमार केस पर अपना पक्ष रखते हुए चार फरवरी को एबीपी न्यूज़ से कहा था, "इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री या किसी मंत्री की कोई भूमिका नहीं है. ये मंजूरी दिल्ली का प्रॉसिक्यूशन डिपार्टमेंट देता है जो पूरी तरह से स्वतंत्र होकर काम करता है. जैसे जज काम करते हैं, वैसे ही वो लोग काम करते हैं. इसमें हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं होता है."
राजद्रोह कानून की अपनी समझ में दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार से कम अनजान नहीं है।
श्री कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए और 120 बी के तहत मुकदमा चलाने के लिए दी गई मंजूरी को मैं पूरी तरह से अस्वीकृत करता हूं।
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) February 29, 2020
पर क्या सचमुच ऐसा है और राजद्रोह के मामले में क़ानूनी प्रक्रिया क्या है? इसमें दिल्ली सरकार और पुलिस की भूमिका क्या है? हमने इन्हीं सवालों को समझने की कोशिश की है.
क़ानूनी प्रक्रिया क्या है?
कन्हैया कुमार के केस में क़ानूनी प्रक्रिया का सवाल पिछले साल जनवरी में भी उठा था.
तब दिल्ली हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की मंजूरी के बिना चार्जशीट फ़ाइल करने पर पुलिस को डांटते हुए पूछा था, "आपने बिना मंजूरी के चार्जशीट फ़ाइल क्यों की? क्या आपके यहां कोई विधि विभाग नहीं है."
राजद्रोह के मामलों में प्रक्रिया के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट शाहरुख आलम कहती हैं, "राजद्रोह के मामलों में प्रॉसिक्यूशन शुरू होने से पहले सरकार की मंजूरी ज़रूरी होती है. क्योंकि ये राज्य के ख़िलाफ़ एक गंभीर अपराध है. वैसे तो सभी आपराधिक मामलों में राज्य एक पक्ष होता है क्योंकि क़ानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य की जिम्मेदारी होती है. राजद्रोह या राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने, जैसे मामलों में अभियोजन शुरू करने से पहले मंजूरी इसलिए मांगी जाती है ताकि वैसे मामले साफ़ हो जाएं जो गंभीर किस्म के नहीं हैं."
"ये प्रक्रिया का हिस्सा है, जैसे ही राज्य इस बात की पुष्टि करता है कि हम इस भाषण को राजद्रोह की प्रकृति का मानते हैं या फिर किसी काम को हम वास्तव में राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना मानते हैं, तभी अभियोजन की वास्तविक कार्रवाई शुरू होती है. एफ़आईआर बिना मंजूरी के रजिस्टर होती है, चार्जशीट भी दाख़िल होती है लेकिन अदालत की कार्यवाही सरकार की मंजूरी के शुरू नहीं होगा."
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दिल्ली सरकार की भूमिका
बेल पर जेल से रिहा होने के बाद जेएनयू में दिए गए कन्हैया कुमार के पहले भाषण पर कभी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद ही उनकी तारीफ़ में कहा था, "कन्हैया ने कितना शानदार भाषण दिया है."
Heard Kanhaiya's speech many times. Amazing clarity of thought expressed wonderfully.He said wat most people have been feeling.God bless him
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 4, 2016
What a brilliant speech by Kanhaiya...
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 3, 2016
लेकिन राजद्रोह के लिए केस की मंजूरी देने के बाद उनकी आलोचना भी हो रही है. फ़िल्म निर्देशक अनुराग कश्यप जैसे लोगों ने केजरीवाल की आलोचना की है.
Mahashay @ArvindKejriwal ji.. aap ko kya kahein .. spineless toh compliment hai .. aap to ho hi nahin .. AAP to hai hi nahin .. कितने में बिके ? https://t.co/nSTfmm0H8r
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) February 28, 2020
हालांकि मुख्यमंत्री भले ही अपनी सफ़ाई में ये कहें कि दिल्ली का अभियोजन विभाग स्वतंत्र होकर काम करता है लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है?
जानकार बताते हैं कि एक बार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति हो जाने के बाद तो वो स्वतंत्र रूप से काम करता है लेकिन मंजूरी के मामलों में भले ही क़ानूनी सलाह के बाद ही निर्णय लिया जाता हो पर अंतिम फ़ैसला तो चुनी हुई सरकार का होता है और उसकी अपनी राजनीतिक बाध्यताएं होती हैं. क़ानूनन केजरीवाल सरकार पर मंजूरी के फ़ैसले की कोई बाध्यता नहीं थी, वो चाहती तो इसे नामंजूर भी कर सकती थी या फिर यथास्थिति बनाए रख सकती थी.
मंजूरी का फ़ैसला अभी क्यों?
कन्हैया कुमार पर राजद्रोह के मामले में एफ़आईआर चार साल पहले दर्ज की गई थी. तकरीबन तीन साल की जांच पड़ताल के बाद दिल्ली पुलिस ने जनवरी, 2019 में चार्जशीट फ़ाइल की. दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के पास मंजूरी के लिए भी हाई कोर्ट की फटकार के बाद गई थी.
तब से ये मामला दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के पास लंबित था. इसी साल चार फरवरी को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक इंटरव्यू में ये स्पष्ट कर दिया था कि आने वाले कुछ समय में इस पर अभियोजन विभाग निर्णय ले लेगा. मंजूरी के फ़ैसले की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं, "कन्हैया कुमार के मामले में दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की. दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के मातहत है. लेकिन राजद्रोह के मामले में अभियोजन विभाग को मंजूरी के बाद ही मामला आगे बढ़ता है, जो दिल्ली सरकार के मातहत है. दिल्ली सरकार इस मामले को लंबे समय से पेंडिंग रखे थी. दिल्ली सरकार के अनिर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी मामला गया, जिसके बावजूद भी मंजूरी नहीं दी गई. दिल्ली के दंगो और आईबी अधिकारी की हत्या के आरोप में आप पार्षद ताहिर मोहम्मद के फंसने के बाद, मुस्लिमपरस्ती के आरोप से बचने के लिए, आपाधापी में यह फ़ैसला लिया गया लगता है."
फ़ैसला लेने में दिल्ली सरकार को साल भर क्यों लग गए, विराग गुप्ता इस पर भी सवाल उठाते हैं, "अगर इन्हें इतनी ही चुस्ती से इसे हैंडल करना था तो जब ये मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गया था, तब उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की. साल भर तक इसे लटकाया क्यों रखा गया. अब अचानक ऐसी कौन सी नई बात सामने आ गई कि फ़ैसला ले लिया गया. जब आप कहते हैं कि हमारे यहां निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज़ है तो साल भर इंतज़ार करने का क्या मतलब?"
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अब आगे क्या?
दिल्ली सरकार के फ़ैसले के बाद कन्हैया कुमार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "दिल्ली पुलिस और सरकारी वक़ीलों से आग्रह है कि इस केस को अब गंभीरता से लिया जाए, फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में स्पीडी ट्रायल हो और TV वाली 'आपकी अदालत' की जगह क़ानून की अदालत में न्याय सुनिश्चित किया जाए. सेडिशन केस में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट और त्वरित कार्रवाई की ज़रूरत इसलिए है ताकि देश को पता चल सके कि कैसे सेडिशन क़ानून का दुरूपयोग इस पूरे मामले में राजनीतिक लाभ और लोगों को उनके बुनियादी मसलों से भटकाने के लिए किया गया है."
दिल्ली सरकार को सेडिशन केस की परमिशन देने के लिए धन्यवाद। दिल्ली पुलिस और सरकारी वक़ीलों से आग्रह है कि इस केस को अब गंभीरता से लिया जाए, फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में स्पीडी ट्रायल हो और TV वाली ‘आपकी अदालत’ की जगह क़ानून की अदालत में न्याय सुनिश्चित किया जाए। सत्यमेव जयते।
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) February 28, 2020
इसमें कोई दो राय नहीं कि कन्हैया कुमार का मामला राजद्रोह क़ानून की ज़रूरत और बेजा इस्तेमाल की बहस से भी जुड़ा हुआ है लेकिन विराग गुप्ता एक और दिलचस्प सवाल की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं.
वे कहते हैं, "क़ानून और व्यवस्था की वजह से दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन, लेकिन अभियोजन विभाग पर अधिकार पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं. यदि अभियोजन विभाग दिल्ली सरकार के अधीन है तो फिर आपराधिक मुक़दमों में सरकारी वकील नियुक्त करने का अधिकार भी दिल्ली सरकार के पास ही होना चाहिए लेकिन निर्भया मामले में दोषियों के खिलाफ केंद्र सरकार के माध्यम से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में हाई कोर्ट के सामने सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है जिससे अभियोजन विभाग पर दिल्ली सरकार के अधिकार पर असमंजस की स्थिति बन रही है."