रामदेव की कोरोनिल दवा के ट्रायल के दौरान, बुखार उतारने के लिए दी गई एलोपैथ दवा
नई दिल्ली। योग गुरू स्वामी रामदेव की कंपनी पतंजलि योगपीठ ने कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की दवा बनाने का दावा किया था। उन्होंने बकायदा आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल को लॉन्च किया और दावा किया कि 3-15 दिन के भीतर 100 फीसदी मरीज इस दवा को खाने के बाद ठीक हुए हैं। लेकिन उनके दावे के बाद से ही लगातार इस दवा को लेकर सवाल खड़ा हो रहा है। इस दवा के लॉन्च के अगले ही दिन इस दवा के दावे और इसके ट्रायल को लेकर दी गई स्वीकृति पर प्रश्न खड़ा हो गया।
दावे पर खड़ा हुआ सवाल
बुधवार को आयुष मंत्रालय की ओर से पतंजलि को निर्देश दिया गया कि वह कोरोना के इलाज का दावा करने वाली दवा के प्रचार को रोक दे। यही नहीं उत्तराखंड की सरकार ने भी कहा कि उनकी लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने किसी भी कोरोना किट को परीक्षण की अनुमति नहीं दी थी। राजस्थान सरकार ने भी कहा कि उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च में इसका क्लीनिकल ट्रायल किया गया है।
Recommended Video
गंभीर मरीजों पर नहीं हुआ ट्रायल
अहम बात यह है कि जब हल्के लक्षण वाले सिंपटोमैटिक मरीजों में बुखार था तो उनपर यह ट्रायल किया गया, उनकी देखरेख एलोपैथिक दवा पर की गई। यह ट्रायल सिर्फ एसिंपटोमैटिक और हल्के सिंप्टोमैटिक मरीजों पर किया गया। गंभीर रूप से बीमार मरीज, जिन्हें सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही थी, उनपर यह ट्रायल नहीं किया गया है। निम्स जयपुर के प्रिंसिपल डॉक्टर गणपत देवपुरा ने कहा कि इन ट्रायल के आधार पर जो अध्ययन किया गया है उन्हें अन्य संस्थाओं ने मॉनिटर नहीं किया है।
एलोपैथ दवा दी गई
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब डॉक्टर देवपुरा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह शुरुआती रिपोर्ट है, जिसका सैंपल साइज 100 है। फाइनल रिपोर्ट और इसके तथ्य 15-25 दिनों में पब्लिश किए जाएंगे, इसके बाद अन्य संस्थाओं के पास इसके विश्लेषण के लिए भेजा जाएगा। जब डॉक्टर से पूछा गया कि क्या मरीजों पर एलोपैथिक दवा का इस्तेमाल किया गया था ट्रायल के दौरान, तो उन्होंने कहा कि हां, अगर मरीजों के अंदर लक्षण जैसे बुखार वगैरह आए तो उन्हें सिंप्टोमैटिक इलाज दिया गया।
प्लेस्बो ट्रायल में सिर्फ 50 फीसदी मरीजों का टेस्ट निगेटिव
डॉक्टर देवपुरा ने बताया कि यह डबल ब्लाइंड रैंडमाइज्ड ट्रायल है। 50 मरीज प्लेसबो पर थे और शेष 50 सक्रिय दवाओं (आयुर्वेदिक चिकित्सा) पर थे। हमने आरटीपीसी ट्रायल पहले दिन, दूसरे दिन , और 7वें दिन। पहले 3 दिन 69 प्रतिशत सक्रिय रोगियों का टेस्ट निगेटिव आया। जबकि प्लेसीबो समूह में केवल 50 प्रतिशत का परीक्षण नकारात्मक आया था।
इंटरल्यूकिन 6 लेवस संतोषजनक नहीं
7वें दिन जो एक्टिव मरीज थे जिनका टेस्ट निगेटिव नहीं था, उनमे से 65 फीसदी का टेस्ट निगेटिव आया और 35 फीसदी का पॉजिटिव आया। फिर से इन मरीजों को स्वसारी रस, अश्वगंधा का सत, गिलोय, तुलसी का सत दिया गया, साथ ही उनकी नाक में अणु तेल की बूंदें डाली गई। मरीजों को बराबर मॉनिटर किया जा रहा था और इस दौरान इंटरल्यूकिन 6 लेवल संतोषजनक नहीं था।
इसे भी पढ़ें- क्यों लगाया गया था देश में 'आपातकाल' और कौन थी 'रूखसाना सुल्ताना'?